Lunar mission campaign : कहा तो यह जाता है कि चंद्रमा की बनावट को जानने-समझने का अर्थ है सौरमंडल और पृथ्वी के इतिहास को समझना। पर पांच दशक पूर्व चंद्रमा पर अपने अंतरिक्ष यात्री भेज चुका अमेरिका (और इस बीच रूस और चीन भी) उसे अपना उपनिवेश बनाने और उसके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने की लालसा से प्रेरित हैं। अतः उचित ही है कि दुनिया का सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश भारत भी चंद्रमा पर अपना झंडा गाड़ना चाहता है।
भारत ने अपना चंद्रयान-1 22 अक्टूबर 2008 को और चंद्रयान-2 22 जुलाई 2019 को प्रक्षेपित किया था। चंद्रयान-1 ने 312 दिनों तक चंद्रमा की 3400 बार केवल परिक्रमा की। चंद्रयान-2 को चंद्रमा की परिक्रमा करने के साथ-साथ एक रोवर सहित एक लैंडर (अवतरण यान) वहां उतारना था, जो सफल नहीं रहा। चंद्रयान-1 ऐसा पहला यान था, जिसने चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव वाले क्षेत्र में बर्फ के रूप में पानी होने का पता लगाया। वहां एल्यूमीनियम, मैग्नेशियम और सिलीकॉन होने के संकेत भी उसे मिले। इस समय भारत का चंद्रयान-3 चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा है। यदि सबकुछ योजनानुसार चला तो वह 23 अगस्त को रोवर वाले अवतरण यान को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतारेगा।
भारत के चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर पानी और कई खनिज पदार्थों का पता अवश्य लगाया, पर आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से भारत अभी इस स्थिति में नहीं है कि वह चंद्रमा पर के प्राकृतिक संसाधनों से लाभान्वित हो सके। इस समय अमेरिका ही ऐसा करने के सबसे अधिक सक्षम है। इसलिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने चंद्रमा पर मनुष्य के रहने लायक बस्तियों की नींव रखने और वहां मिले अनुभवों के आधार पर अन्य ग्रहों का भी उपनिवेशीकरण करने के सक्षम होने की एक बड़ी योजना बनाई है।
बड़ी-बड़ी कंपनियों को मिले हैं ठेके : नासा ने स्पेसएक्स, ब्ल्यू ऑरिजिन, नोकिया, लॉकहीड मार्टिन और जनरल मोटर्स जैसी बड़ी-बड़ी निजी कंपनियों से कहा है कि वे उसके लिए चंद्रमा पर चलने लायक वाहन, इंटरनेट स्ट्रीमिंग, GPS नेविगेशन प्रणाली तथा अन्य आवश्यक चीज़ें विकसित करें। चंद्रमा के उपनिवेशीकरण का यह प्रयास इन कंपनियों के लिए 100 अरब डॉलर से भी अधिक का बाज़ार बनेगा।
अंतरिक्ष संबंधी कारोबार में विशेषज्ञता रखने वाली शोध एवं परामर्श फर्म NSR (नॉर्दर्न स्काई रिसर्च) की भारतवंशी वरिष्ठ विश्लेषक प्राची कावड़े का कहना है कि चंद्रमा निश्चित रूप से बहुत बड़ा व्यवसाय होगा। कुछ ऐसा होगा, जो पहले कभी नहीं किया गया है। 1960 और 70 वाले दशक के अपने 'अपोलो मिशन' द्वारा अमेरिकी यह दिखाना चाहते थे कि क्या मनुष्य चंद्रमा तक पहुंच सकता है? अपने वर्तमान आर्तेमिस मिशन द्वारा वे वहां रहने, काम करने तथा वहां से और आगे जाने की सोच रहे हैं।
शुरू-शुरू के चंद्र मिशन चंद्रमा पर बेस कैंप बनाकर वहां कुछ हफ्ते या महीने रहने तक ही सीमित हो सकते हैं, पर समय के साथ चंद्रमा को मानवीय और रोबोटिक गतिविधियों का केंद्र और मंगल ग्रह तक जाने के रास्ते में एक पड़ाव बनाने का विचार है।
सबसे बड़ा व्यावसायिक आकर्षण : चंद्रमा का सबसे बड़ा व्यावसायिक आकर्षण वहां के प्राकृतिक संसाधनों के खनन और उनके उपयोग के तरीके खोजने में देखा जा रहा है। एक ऐसा ही दिलचस्प संसाधन 'रेजोलिथ' है, जो चंद्रमा की धूल-मिट्टी का वैज्ञानिक नाम है। इसका खनन हीलियम-3 के लिए किया जा सकता है, जो हीलियम का एक ऐसा दुर्लभ, विकिरण-विहीन आइसोटोप है, जिसका उपयोग पृथ्वी पर परमाणु संलयन (फ्यूजन) रिएक्टरों से स्वच्छ बिजली प्राप्त करने के लिए या चंद्रमा पर होने वाले निर्माण कार्यों के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, चीन ने कहा है कि वह चंद्रमा पर अपना आधार शिविर रेजोलिथ से ही बनाना चाहता है।
चंद्रमा पर खनन के लिए दूसरा बड़ा आकर्षण 'रेअर अर्थ्स' कहलाने वाले ऐसे दुर्लभ पदार्थ हैं, जो वहां गिरने वाले उल्कापिंडों (मीटिओराइट्स) की देन हैं। चंद्रमा के पास अपना कोई वायुमंडल नहीं होने से लाखों-करोड़ों वर्षों से वहां जो उल्कापंड गिरते रहे होंगे, वे टूटे-फूटे तो होंगे, पर जले नहीं होंगे। उनमें ऐसी-ऐसी धातुएं आदि हो सकती हैं, जो पृथ्वी पर नहीं मिलतीं या दुर्लभ हैं। NSR की प्राची कावड़े का मानना है कि इनका खनन इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के काम आ सकता है।
ध्रुवों के पास पानी के भंडार : वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के ध्रुवों के पास पानी के भंडार पाए हैं। पानी के विघटन द्वारा उसे ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के रूप में ईंधन में बदला जा सकता है। यह इंधन चंद्रमा पर से मंगल ग्रह जाने वाले रॉकेटों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। परामर्श फर्म NSR का अनुमान है कि अगले 10 वर्षों में यह कारोबार 137 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है और तब तक 400 से अधिक चंद्र मिशन देखने में आ सकते हैं।
अमेरिकी आर्तेमिस मिशन : आर्तेमिस मिशन एक बड़ी योजना का हिस्सा है। उद्देश्य है, वाणिज्यिक क्षेत्र को अंतरिक्ष के अन्वेषण में सक्षम बनाना। दो दशक पूर्व तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने यह सुझाव दिया था। नासा से उन्होंने कहा था कि अंतरिक्ष यात्रा का शटल यान कार्यक्रम जब पूरा हो जाए, तो उसके बाद नासा को चाहिए कि वह निजी कंपनियों को अपनी भावी रणनीति के केंद्र में रखने का प्रयास करे।
तब से नासा ने अपने लिए एक नई 'व्यावसायिक मानसिकता' विकसित की है। उसने एक निश्चित धनराशि के बदले रॉकेट, लैंडर या अन्य सेवाओं अथवा उत्पादों के लिए निजी कंपनियों को ठेके देना शुरू किया। इस तरह नासा के लिए अपने स्वयं के अनुसंधान और विकास की लागत को घटाना संभव हो गया है, जबकि उसका अनुबंध पाने की इच्छुक कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा होती है। वे महत्वाकांक्षी तकनीकें विकसित करने का जोखिम इसलिए उठाती हैं, क्योंकि उनका ग्राहक नासा है। ब्लू ऑरिजिन और स्पेसएक्स जैसी कंपनियों का नासा की चंद्रमा पर जाने की महत्वाकांक्षा के बिना शायद अस्तित्व ही नहीं होता।
सस्ते में सामान ढुलाई : दीर्घकालिक मिशनों के प्रोत्साहन का एक तरीका पृथ्वी से चंद्रमा तक सस्ते में कोई सामान भेजना संभव बनाना भी है। नासा ने ऐसी ही एक व्यावसायिक भारवहन सेवा के रूप में अपने CLPS यानी 'कमर्शियल लूनर पेलोड सर्विसेज' कार्यक्रम के हिस्से के रूप में चंद्रमा पर सामान और सेवाएं पहुंचाने में सक्षम, कृत्रिम बुद्धि वाले रोबोट के विकास में भारी निवेश किया है। अमेरिका की एयरोस्पेस और रोबोटिक्स कंपनी एस्ट्रोबोटिक टेक्नोलॉजी CLPS कार्यक्रम में शामिल एक प्रमुख खिलाड़ी है। उसे नासा के कई पेलोड (सामग्रियां) चंद्रमा पर पहुंचाने का 32 करोड़ डॉलर का अनुबंध मिला है।
ऐसा ही एक पेलोड, 'वोलाटाइल्स इन्वेस्टिगेटिंग पोलर एक्सप्लोरेशन रोवर' (VIPER), 2024 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भेजे जाने के लिए निर्धारित है। यह रोवर-नुमा एक रोबोट है, जो चंद्रमा पर बर्फीले पानी के निशान ढूंढेगा। टेक्सास स्थित 'इंटुइटिव मशीन्स' को भी तीन पेलोड मिशनों के लिए नासा से 7 करोड़ 70 लाख डॉलर का अनुबंध मिला है। तीन में से दो पेलोड की डिलीवरी इसी साल होनी है।
बिजली ग्रिड और 4G नेटवर्क : चंद्रमा को 4G नेटवर्क से जोड़ा जाना है। चंद्र-यात्रियों को बिजली की भी जरूरत होगी। इसलिए एक योजना चंद्रमा पर परमाणु रिएक्टर पहुंचाने और वहां एक स्थानीय बिजली ग्रिड बनाने की भी है। अमेरिका की ही लॉकहीड मार्टिन कंपनी चंद्रमा के लिए उपयुक्त वाहन विकसित करने में जुटी है। वहां की जनरल मोटर्स बैटरी चालित एक ऐसा रोबोट विकसित करने के लिए लॉकहीड मार्टिन के साथ मिलकर काम कर रही है, जो अतीत के अपोलो मिशन के समय इस्तेमाल किए गए वाहनों की तुलना में बहुत दूर तक जा सकता है।
अभी चंद्रमा पर कोई रहता नहीं, इसलिए स्वाभाविक है कि अभी वहां किसी जगह की सटीक स्थिति बताने के लिए GPS नेविगेशन सिस्टम या वाईफाई भी नहीं है। इसका मतलब यह है कि जब तक वहां इस तरह की सुविधाएं नहीं हो जातीं, तब तक पृथ्वी पर के इंजीनियरों को हर मिशन की लगातार निगरानी करनी पड़ेगी। कहा जा रहा है कि अगले दशक में लांच होने वाले सैकड़ों मिशनों को देखते हुए यह काम तेजी से असंभव होता जाएगा। इस कमी को दूर करने के लिए नासा ने नोकिया कंपनी को 1 करोड़ 40 लाख डॉलर का ठेका दिया है। नोकिया 2024 तक चंद्रमा पर 4G नेटवर्क के लिए आवश्यक चीज़ें वहां भेजना चाहती है।
स्पेसएक्स सबसे आगे : आगामी आर्तेमिस चंद्र मिशनों के लिए नासा ने अपने अंतरिक्षयान 'ओरायन', उसे ले जाने वाले रॉकेट SLS (स्पेस लांच सिस्टम) तथा 'ओरायन' से निकलकर चंद्रमा की सतह पर आने-जाने के शटल यान HLS (ह्यूमन लैंडिंग सिस्टम) के विकास को निजी कंपनियों के हाथों में सौंप दिया है। एलन मस्क की स्पेसएक्स कंपनी इस अनुबंध की दौड़ में सबसे आगे है। उसने नासा के आर्तेमिस-3 और 4 मिशनों के लिए HLS विकसित करने हेतु अरबों डॉलर के अनुबंध हासिल किए हैं। मस्क ने भावी मिशनों की लागत घटाने के लिए अपने रॉकेटों को पुन: प्रयोज्य (री-यूज़ेबल) बनाने का वादा किया है।
इसी प्रकार लॉकहीड मार्टिन कंपनी को आर्तेमिस मिशन 3 से 8 तक के लिए 6 ओरायन अंतरिक्ष यानों की आपूर्ति करनी है। इसके लिए 2 अरब 70 करोड़ डॉलर का अनुबंध है। ज़रूरत पड़ने पर यह धनराशि लगभग 2 अरब डॉलर अतिरिक्त तक बढ़ाई भी जा सकती है। अमेरिका की कई दूसरी कंपनियां चंद्रमा पर जाकर वहां मूल्यवान खनिज पदार्थों की खोज और खनन के लिए अभी से पैसा जुटाने में लग गई हैं।
अंतरिक्ष में अमेरिकी दबदबा : रूस, चीन और जापान की अंतरिक्ष एजेंसियां भी भला पीछे क्यों रहें! चंद्रमा के प्राकृतिक संसाधनों को हथियाने की दौड़ के लिए वे भी कमर कसने लगी हैं। अंतरिक्ष में अमेरिका का दबदबा तब भी लंबे समय तक बना रहेगा। इस समय 3433 अमेरिकी उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं। चीन के 541 उपग्रह हैं।
2021 में अमेरिका ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर 60 अरब डॉलर ख़र्च किए, चीन ने 16 अरब डॉलर। पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा चीन का अपना एक अलग स-मानव अंतरिक्ष स्टेशन भी है। चीन अब तक पांच बार अपने अंतरिक्षयान चंद्रमा पर भेज चुका है। चांगे-5 नाम का उसका चंद्र-मिशन 2020 में चंद्रमा की दो किलो मिट्टी भी पृथ्वी पर ला चुका है। पांच दशक बाद रूस ने भी इन्हीं दिनों अपना एक यान चंद्रमा पर भेजा है।
'आर्तेमिस एकॉर्ड : अमेरिकी सरकार की पहल पर, 2020 में 'आर्तेमिस एकॉर्ड' नाम का एक ऐसा अबाध्यकारी बहुराष्ट्रीय समझौता हुआ है, जिस पर 9 अगस्त 2023 तक अमेरिका और भारत सहित दुनिया के 28 देश हस्ताक्षर कर चुके थे। चीन और रूस ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं। हस्ताक्षर करने वाले देश यदि चाहें, तो वे भी अमेरिका के आर्तेमिस मिशन में भाग ले सकते हैं। प्रधानंत्री मोदी की पिछली अमेरिका यात्रा के समय भारत को भी आर्तेमिस मिशन में भाग लेने लिए आमंत्रित किया गया। आर्तेमिस समझौता चंद्रमा संबंधी अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए नासा द्वारा विकसित नियमों का एक सेट है।
चंद्रमा और अन्य आकाशीय पिंडों से संबंधित 1979 का एक और समझौता है, जो कहता है कि उनसे जुड़ी गतिविधियां अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के अनुकूल होनी चाहिएं यानी चंद्रमा या किसी दूसरे आकाशीय पिंड पर पहुंचने वाले देश वहां अपनी मनमानी सीमाएं नहीं खींच सकते या संसाधनों की लूट-खसोट नहीं कर सकते, लेकिन अंतरिक्ष में अपने लोग या उपग्रह भेजने वाले किसी भी देश ने इस समझौते की आज तक पुष्टि नहीं की है, अमेरिका, रूस या चीन ने भी नहीं यानी हर देश अपने भावी दावे का अधिकार सुरक्षित रखना चाहता है।
इसलिए कहने की आवश्यकता नहीं कि जिन देशों के चंद्रयात्री चंद्रमा की जिस या जिन जगहों पर अपने पैर पहले रखेंगे, वे देश उस या उन जगहों को अपनी ज़मीन या अपना इलाक़ा बताने से परहेज़ नहीं करेंगे। हो सकता है कि इस कारण भी, ठीक इस समय अमेरिका, रूस और चीन चंद्रमा पर पहुंचने की उतावली में हैं। भारत का चंद्रयान-3 तो काफ़ी देर और लंबी प्रतीक्षा के बाद प्रक्षेपित किया गया है। तब भी यदि चंद्रमा की ज़मीन की कभी बंदरबांट हुई तो भारत भी एक दावेदार तो बन ही सकता है।