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पाकिस्तान ने दो आतंकवादियों को फांसी पर लटकाया

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इस्लामाबाद , बुधवार, 7 जनवरी 2015 (22:48 IST)
इस्लामाबाद। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों द्वारा आलोचना के बावजूद आतंकवादियों को फांसी पर लटकाने के अपने फैसले पर आगे बढ़ते हुए पाकिस्तान ने बुधवार को प्रतिबंधित जातीय संगठन सिपाह-ए-सहाबा के दो आतंकवादियों को फांसी पर लटका दिया।
पेशावर के स्कूल में पिछले माह आतंकवादियों द्वारा नरसंहार किए जाने के बाद पाकिस्तान ने मौत की सजा से अनाधिकारिक रोक हटा ली है। इस फैसले के बाद से अब तक फांसी पर लटकाए जाने वालों की संख्या नौ हो गई है। स्कूल पर हुए आतंकी हमले में 150 लोग मारे गए थे जिनमें ज्यादातर बच्चे थे। 
 
अहमद अली उर्फ शेषनाग और गुलाम शब्बीर उर्फ फौजी उर्फ डॉक्टर प्रतिबंधित संगठन सिपाह-ए-सहाबा से ताल्लुक रखते थे और उन्हें आज सुबह मुल्तान के केंद्रीय कारागार में फांसी दे दी गई। 
 
डॉन अखबार के अनुसार, झांग जिले के शोरकोट निवासी अहमद अली को 1998 में हुई तीन लोगों की हत्या के मामले में फांसी दी गई। 
 
खानेवाल जिले में तलांबा क्षेत्र के निवासी गुलाम शब्बीर ने वर्ष 2000 में बोहर गेट रोड पर पुलिस उपाधीक्षक अनवर खान और उनके चालक गुलाम मुर्तजा की हत्या कर दी थी। उसे 2002 में आतंकवादरोधी एक विशेष अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी।
 
पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा दोषियों की दया याचिकाएं खारिज किए जाने के बाद आतंकवादरोधी अदालतों ने वारंट जारी किए थे। पेशावर में सेना द्वारा संचालित स्कूल पर भीषण आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान ने आतंकवाद से जुड़े मामलों में फांसी पर लगी छह साल पुरानी अनाधिकारिक रोक हटा दी थी। 
 
रोक हटाए जाने के बाद राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने मौत की सजा पाए 17 दोषियों की दया याचिकाएं खारिज कर दी हैं। 
 
तब से अब तक नौ दोषियों को फांसी दी जा चुकी है। पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वाच की चिंताओं के बावजूद इस कदम को अंजाम दिया है। 
 
जिन लोगों को अब तक फांसी दी जा चुकी है उनमें से छह को वर्ष 2003 में तत्कालीन सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ की हत्या की कोशिश करने का दोषी पाया गया था। सातवें को 2009 में सेना मुख्यालय पर हुए हमले का दोषी ठहराया गया था। पाकिस्तान में करीब 8,000 कैदी मृत्युदंड की कतार में हैं। (भाषा)

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