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जिंदा इंसानों के लिए ध्वस्त किए जा रहे हैं कब्रिस्तान, बदले जा रहे हैं सदियों पुराने अंतिम संस्कार के अनुष्ठान

हमें फॉलो करें जिंदा इंसानों के लिए ध्वस्त किए जा रहे हैं कब्रिस्तान, बदले जा रहे हैं सदियों पुराने अंतिम संस्कार के अनुष्ठान
, गुरुवार, 10 जून 2021 (18:30 IST)
नताशा मिकल्स, टेक्सास स्टेट यूनिवर्सिटी
 
सैन  मार्कोस (अमेरिका)। जैसे-जैसे वैश्विक आबादी बढ़ती जा रही है, मृतकों को दफनाने के लिए जगह कम होती जा है। अमेरिका में कुछ सबसे बड़े शहरों में मृतकों को दफनाने के लिए भूमि कम हो गई है, और कई अन्य देशों में भी यही हालत है।
ऐसे में कई राष्ट्र अंतिम संस्कार के समय किए जाने वाले अनुष्ठानों को बदल रहे हैं, कब्रिस्तानों के संचालन के तरीके को बदल रहे हैं और यहां तक ​​​​कि ऐतिहासिक कब्रिस्तानों को नष्ट कर रहे हैं ताकि इस जमीन को जिंदा इंसानों के इस्तेमाल के लिए दोबारा तैयार किया जा सके। उदाहरण के लिए सिंगापुर में सरकार ने पारिवारिक कब्रों को जबरन ध्वस्त कर दिया है। शहर-राज्य में एक कब्र के स्थान का उपयोग केवल 15 वर्ष के लिए ही किया जा सकता है, जिसके बाद अवशेषों का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है और स्थान का उपयोग दूसरे दफन के लिए किया जाता है।
 
हांगकांग में कब्रें प्रति वर्ग फुट सबसे महंगी अचल संपत्ति में से हैं और सरकार ने लोगों को भौतिक दफन की जगह दाह संस्कार के प्रति जागरूक करने के लिए पॉप सितारों और अन्य हस्तियों की मदद ली है।
 
बौद्ध अंत्येष्टि अनुष्ठानों और परवर्ती जीवन के बारे में आख्यानों का अध्ययन करने वाले विद्वान के रूप में मुझे कुछ बौद्ध बहुसंख्यक देशों की नवीन प्रतिक्रियाएं और पर्यावरणीय आवश्यकताएं जब धार्मिक विश्वासों से टकराती हैं तो इससे होने वाला तनाव दिलचस्प लगता है।
 
वृक्षों को दफनाने की रस्म : 1970 के दशक की शुरुआत में जापान में सरकारी अधिकारी शहरी क्षेत्रों में पर्याप्त दफन स्थान की कमी के बारे में चिंतित थे। उन्होंने दूरदराज के शहरों में कब्रिस्तान बनाने को लेकर तरह तरह के सुझाव दिए। उनका कहना था कि परिवार कब्रिस्तानों पर जाने के लिए एक साथ यात्रा का आयोजन कर सकते हैं। इसी तरह किसी परिजन को दफनाने के लिए बसों में भरकर ग्रामीण इलाकों तक जा सकते हैं। 1990 के शुरू में ग्रेव फ्री प्रोमोशन सोसायटी नामक सामाजिक स्वयंसेवी संगठन ने मानव अवशेषों को बिखेरने की सार्वजनिक रूप से हिमायत की।
 
1999 के बाद से उत्तरी जापान में शौंजी मंदिर ने जुमोकुसो, या 'वृक्ष दफन' के माध्यम से इस संकट का एक और अधिक अभिनव समाधान पेश करने का प्रयास किया है। इन कब्रों में परिवार अंतिम संस्कार के अवशेषों को जमीन में रखते हैं और कब्र को चिह्नित करने के लिए अवशेषों के ऊपर एक पेड़ लगाया जाता है। 
 
शौंजी मूल मंदिर ने एक छोटे से जंगल वाले क्षेत्र में चिशोइन नाम से एक छोटा मंदिर स्थापित किया है। यहां, एक छोटे से पार्क में, जहां परंपरागत जापानी कब्रिस्तान की तरह बड़े पत्थर नहीं होते, बौद्ध पुजारी मृतक के लिए वार्षिक अनुष्ठान करते हैं। परिवार जब चाहे अपने प्रियजन की अंतिम आरामगाह पर आ सकते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करवा सकते हैं।
 
बहुत से परिवार, जो वृक्ष दफन को अपने मृत परिजन को दफनाने के लिए चुनते हैं, बौद्ध या बौद्ध मंदिर के साथ संबद्ध नहीं पाए गए हैं, यह परंपरा जापानी बौद्ध धर्म की पर्यावरणीय जिम्मेदारी में बड़ी रुचि को दर्शाती है। यह इस शिंटो मान्यता से प्रभावित लगता है कि देवता प्रकृति में वास करते हैं। जापानी बौद्ध धर्म ऐतिहासिक रूप से पर्यावरण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बौद्ध परंपराओं में अद्वितीय रहा है।
 
प्रारंभिक भारतीय बौद्ध विचार जहां पौधों को अचेतन के रूप में पेश करता है वहीं जापानी बौद्ध धर्म ने वनस्पतियों को पुनर्जन्म के चक्र के एक जीवित घटक के रूप में पेश किया और इसलिए, इनकी हिफाजत करना जरूरी माना।
 
आज जापानी बौद्ध संस्थाएं पर्यावरण पर मानवता के प्रभाव की चुनौती को विशेष रूप से धार्मिक सरोकार के रूप में प्रस्तुत करती हैं। शौंजी मंदिर के प्रमुख ने वृक्षों के दफन को प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण के लिए एक विशिष्ट बौद्ध प्रतिबद्धता के हिस्से के रूप में वर्णित किया है।
 
सामाजिक परिवर्तन : पेड़ों को दफनाने का विचार जापान में इतना लोकप्रिय साबित हुआ है कि अन्य मंदिरों और सार्वजनिक कब्रिस्तानों ने इस पद्धति की नकल की है, कुछ अलग-अलग पेड़ों के नीचे दफन स्थान प्रदान करते हैं और कुछ अन्य एक कोलंबियम में एक पेड़ के चारों ओर स्थान प्रदान करते हैं। 
 
पारंपरिक अंत्येष्टि प्रथाओं की तुलना में वृक्षों को दफनाने की लागत भी काफी कम है, जो कई पीढ़ियों को संभालने का दायित्व निभा रहे कई जापानी लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण विचार है। जापान में जन्म दर दुनिया में सबसे कम है, इसलिए परिवार के एक बच्चे को भाई बहनों के अभाव में अपने माता-पिता और दादा-दादी को संभालना पड़ता है। (द कन्वरसेशन, भाषा)

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