जब से डोकलाम मुद्दा उभरा है तब से चीन की भारत को लगभग प्रतिदिन चेतावनी देने की आदत बन गई है। स्वाभाविक है कि चीन के इस रुख से भारत की चिंता बढ़ना जायज है क्योंकि हम सोचने लगते हैं कि चीन के लिए क्या ऐसा करना जरूरी है और ऐसा करके चीन क्या सिद्ध करना चाहता है?
पर शायद आपको पता नहीं होगा कि यह ड्रैगन (चीन) की मानसिक अवस्था को दर्शाता है और इस तरह की रणनीति चीन की दुश्मन देश पर मानसिक दबाव बनाने का एक हिस्सा है और आज से नहीं वरन पिछले एक लम्बे समय से चीन, भारत के साथ इस मनोवैज्ञानिक युद्ध में उलझा हुआ है और जब-तब उसे लगता है कि पड़ोसी देशों को डराने का मौका आ गया है, वह जोर शोर से ऐसा करने लगता है।
चीन की सेना पीपल्स आर्मी ने गत् रविवार को अपनी स्थापना के 90 वें जन्म दिन पर उत्तरी चीन में शक्ति प्रदर्शन किया और चीन के राष्ट्रपति ने कल हुए 90 वीं स्थापना दिवस पर कहा कि उनकी सेना किसी भी दुश्मन देश की सेना को हराने के लिए तैयार है और उन्होंने चीन के सैनिकों से कहा कि हमारी सेना किसी भी देश की सेना के मुकाबले जीतने की क्षमता रखती है। गौरतलब है कि इस अवसर पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग सेना प्रमुख की वर्दी में थे और इस अवसर पर उन्होंने चीनी सेना को संबोधित भी किया। इस बात को हममें से बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि चीनी सेना, युद्ध कला के तीन सिद्धांतों का पालन करती है।
इस चीनी सिद्धांत को सैन्य कला की भाषा में 'युद्ध के तीन विचार' या चीनी भाषा में इसे 'सान जोंग जानफा' कहा जाता है। चीनी सेना की युद्धकला की यह जानकारी 2008 में पहली बार रिपोर्ट्स के तौर पर सामने आई थी। वर्ष 2008 से लेकर 2010 के दौरान अमेरिकी प्रतिरक्षा विभाग की रिपोर्ट्स में इनका उल्लेख किया गया है।
विदित हो कि इस तरह के सिद्धांतों में कुछ चीनी और अमेरिकी सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है। वेबदुनिया न्यूज डेस्क द्वारा जुटाई जानकारी बताती है कि इस तरह के सिद्धांतों की जड़ें युद्ध में सूचना-ऑपरेशन के उपयोग के अमेरिकी और चीनी परम्परागत उपयोग को ध्यान में रखती हैं। सूचना के उपयोग में अमेरिकी सेना के उपयोग के सिदांतों और विशेष रूप से चीन यह अनुभव करता है कि भावी संघर्षों में युद्ध लड़ने की क्षमताओं में इस तरह से सॉफ्ट पॉवर के उपयोग से बेहतर परिणाम हाथ लगता है।
अमेरिका में तीन युद्ध कलाओं के क्रियान्वयन के लिए किसे श्रेय दिया, इस बात की सही-सही जानकारी नहीं है। इसी तरह प्रश्न उठता है कि इनका उपयोग सबसे पहले जनरल पॉलिटिकल डिपार्टमेंट या जीडीपी ने किया या सेंट्रल मिलिटरी कमीशन या सीएमसी के चार जनरलों में किसी एक ने किया गया था? हालांकि इसका प्रमुख उद्देश्य दुष्प्रचार या प्रचार सामग्री का सबसे अच्छा उपयोग करना है? इसी के जरिए मीडिया का अधिकाधिक उपयोग करके परसेप्शन मैनेजमेंट को बेहतर बनाया जा सकता है। इनके उपयोग को टीवी, समाचार पत्रों, टीवी चित्र, फिल्म और इंटरनेट के जरिए फैलाया जाता है।
इन तीन प्रकार की इस युद्धकला के हिस्सों पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि यह इसका पहला भाग है।
1. प्रचार युद्ध या मीडिया वारफेयर भी कहा जा सकता है क्योंकि इसका एकमात्र उद्देश्य देश के घरेलू जनमत और अंतरराष्ट्रीय जनमत को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय समर्थन के लिए प्रसारित, प्रकाशित करना है। यह चीन के सैन्य कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्रदान करना है। इसके अलावा, ऐसे विरोधियों को उनकी गतिविधियों से रोकना जोकि चीन के हितों के खिलाफ समझी जाने वाली नीतियों को बढ़ावा देने वाले समझे जाते हैं।
(संभवत: यही एक कारण है जिसके चलते चीन के दैनिक प्रेस में सरकारी और गैर-सरकारी मीडिया में बयानों से लगातार मनोवैज्ञानिक दबाव डालने के लिए प्रचार सामग्री जारी करना है।)
2. मनोवैज्ञानिक युद्धकला भी इसका दूसरा प्रमुख भाग है। इसका प्रमुख उद्देश्य दुश्मन देश की युद्धक कार्रवाइयों की क्षमता को प्रभावित करना है और इस तरीके से मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन्स चलाना है जिससे दुश्मन देश के सैन्य कर्मियों और उसकी सहायता करने वाली नागरिक जनता का विश्वास कम करना, मनोवैज्ञानिक तौर पर धक्के पहुंचाना और किसी तरह भी हतोत्साहित करना है।
(यही एक कारण है जिसके चलते प्रचार में 1962 के युद्ध का हवाला दिया जाता है और चीन कहता है कि वे जम्मू कश्मीर में भी घुसपैठ कर सकते हैं और तिब्बत को आजाद कराने की कोशिश कर सकते हैं।)
3. वैधानिक युद्धकला- इस तरीके से अंतरराष्ट्रीय और घरेलू कानूनों का अंतरराष्ट्रीय सहयोग हासिल करना ताकि चीन की सैन्य कार्यवाहियों के संभावित बुरे परिणामों को दुनिया की नजरों से दबाया भी जा सके।
इस काम के लिए चीन बहुत सारे विश्वविद्यालयों, थिंक टैंक्स, प्राचीन कानूनों, संधियों और कानूनों का उपयोग करता है। इस कारण से चीन संस्थान बड़ी मात्रा में लगातार विद्वतापूर्ण आलेख लिखते रहते हैं जिनमें विभिन्न मुद्दों पर चीनी रुख का बचाव करना है और इनसे उनके कार्यों को वैधता हासिल करना होता है।
इसलिए युद्ध के मैदान में उतरने से पहले चीन के ये तीन युद्धकला विचार, कार्यरूप में उपयोग में लाए जाते हैं। कई प्रकाशनों में यहां तक कहा गया है कि इतना ही नहीं, भारतीय मीडिया भी इतना आसानी से मूर्ख बनने वाला है कि यह चीनी मीडिया के प्रचार से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता है। फिलहाल हम देख रहे हैं कि डोकलाम मुद्दे पर चीन का मीडिया बहुत कुछ बोल रहा है और इसका दावा है कि यह इसको लेकर पर्याप्त गंभीर है लेकिन वास्तविकता तो यह है यह मुद्दा चीन के ट्विटर और फेसबुक, वीबो, के शीर्ष 50 ट्रेंडिंग मुद्दों में शामिल नहीं है जिससे 56 करोड़ चीनी जुड़े हैं।
वास्तव में, असलियत यह है कि चीन के युवाओं की सीमा विवाद को लेकर बहुत थोड़ा ही जुड़ाव है और इस बात का समाचार टाइम्स ऑफ इंडिया में भी प्रकाशित हो चुका है।
विदित हो कि भारतीय मीडिया प्रतिदिन ही ऐसे समाचार और लेख प्रकाशित करता है जिससे लगता है कि दोनों देशों के बीच युद्ध होने ही वाला है जबकि वास्तविकता यह है कि चीन के नागरिकों को इस मुद्दे के बारे में जानकारी ही नहीं है।
लेकिन साउथ चाइना सी के मामले में इसका रुख बताता है कि यह बिना लड़े ही युद्ध जीतने की कला में माहिर हो चुका है। तभी तो अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ऑफ जस्टिस में फैसला इसके खिलाफ हुआ लेकिन यह किसी तरह से फिलीपीन्स को यह समझाने में कामयाब हो गया कि इस फैसले को अनदेखा करो और अपने दावों को छोड़ दो। विदित हो कि चीन के लिए यह नया खेल नहीं है, वह प्राचीन काल से इस खेल को खेल रहा है और इस संबंध में चीन के एक प्राचीन जनरल सन जू का कथन विचारणीय है जिसे उन्होंने आर्ट ऑफ वार में लिखा है।
' अपनी सभी लड़ाइयों को लड़ना और जीतना सर्वोच्च श्रेष्ठता का नतीजा नहीं है वरन आपकी सर्वोच्च श्रेष्ठता इस बात से सामने आती है कि आप दुश्मन के विरोध को बिना लड़े ही ध्वस्त कर दें।' जाहिर है कि चीन इसी सिद्धांत पर चल रहा है।