Trump Tariff : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर अपने टैरिफ हथियार का इस्तेमाल करते हुए 3 अप्रैल, 2025 से आयातित कारों और ऑटो पार्ट्स पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा की है। ट्रम्प का दावा है कि यह कदम अमेरिकी विनिर्माण को बढ़ावा देगा और नौकरिया पैदा करेगा। लेकिन इस नीति ने वैश्विक ऑटो उद्योग को संकट में डाल दिया है और विशेषज्ञों ने इसे "आर्थिक आत्मघाती कदम" करार दिया है। यह कदम न केवल अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए महंगा साबित होगा, बल्कि कनाडा, मैक्सिको, यूरोप और एशिया की अर्थव्यवस्थाओं को भी झटका देगा।
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अमेरिकी सपना या आर्थिक भूल? ट्रम्प ने इसे "मेड इन अमेरिका" की वापसी का रास्ता बताया है। यूनाइटेड ऑटो वर्कर्स यूनियन ने भी इसका समर्थन किया है, यह उम्मीद जताते हुए कि इससे अमेरिकी ऑटो कर्मचारियों को फायदा होगा। लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह नीति सतह पर जितनी आकर्षक दिखती है, उसका सच कहीं अधिक जटिल और खतरनाक है। गोल्डमैन सैक्स और एंडरसन इकोनॉमिक ग्रुप के विश्लेषण बताते हैं कि आयातित कारों की कीमतें $5,000 से $15,000 तक बढ़ सकती हैं। कनाडा और मैक्सिको से आने वाले पार्ट्स पर टैरिफ से प्रति कार लागत में $4,000 से $10,000 की वृद्धि होगी। इसका मतलब है कि मध्यम वर्ग के लिए कार खरीदना एक दूर का सपना बन सकता है।
फोर्ड, जनरल मोटर्स (GM) और स्टेलांटिस जैसे अमेरिकी दिग्गजों के शेयरों में 2% से 7% तक की गिरावट दर्ज की गई है। ये कंपनियाँ मैक्सिको और कनाडा में बने पार्ट्स और वाहनों पर निर्भर हैं। दूसरी ओर, टेस्ला जैसी कंपनियाँ, जिनका उत्पादन मुख्य रूप से अमेरिका में होता है, इस नीति से लाभ उठा सकती हैं। लेकिन टेस्ला के सीईओ इलोन मस्क ने भी चेतावनी दी है कि आयातित पार्ट्स की बढ़ती लागत से उनकी कारों की कीमतें प्रभावित होंगी। टेस्ला के शेयर पहले ही दिसंबर 2023 से 40% गिर चुके हैं, जो इस नीति के दीर्घकालिक प्रभावों पर सवाल उठाता है।
वैश्विक प्रतिक्रिया और व्यापार युद्ध की आहट: ट्रम्प के इस फैसले ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर तीखी प्रतिक्रियाएँ जन्म दी हैं। जर्मनी के अर्थमंत्री रॉबर्ट हाबेक ने इसे "मुक्त व्यापार के लिए खतरा" बताया, जबकि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इसे "समय की बर्बादी" करार दिया। कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने इसे "सीधा हमला" कहते हुए जवाबी टैरिफ की धमकी दी है। यूरोपीय संघ और दक्षिण कोरिया भी प्रतिशोध की तैयारी में हैं। दक्षिण कोरिया की हुंडई ने $21 बिलियन के निवेश से ट्रम्प को शांत करने की कोशिश की, लेकिन उसका व्यापार मंत्रालय चिंतित है। चीन ने साफ कहा, "टैरिफ युद्ध में कोई विजेता नहीं होता।"
अमेरिका के लिए भविष्य के निहितार्थ, ट्रम्प की यह नीति अमेरिका के लिए कई गंभीर परिणाम ला सकती है:
उपभोक्ताओं पर बोझ: कारों की कीमतों में भारी वृद्धि से मध्यम वर्ग प्रभावित होगा। इससे ऑटो बिक्री में कमी आएगी, जिससे उद्योग में मंदी की आशंका बढ़ेगी। 5.5 लाख ऑटो कर्मचारियों की नौकरियाँ खतरे में पड़ सकती हैं।
महंगाई का खतरा: आयातित सामानों की लागत बढ़ने से अमेरिका में महंगाई बढ़ सकती है। फेडरल रिज़र्व पहले ही ब्याज दरों को नियंत्रित करने के लिए संघर्ष कर रहा है, और यह नीति आर्थिक स्थिरता को और कमज़ोर कर सकती है।
वैश्विक अलगाव: कनाडा, मैक्सिको, यूरोप और एशिया से प्रतिशोधी टैरिफ़ अमेरिकी निर्यात को नुकसान पहुंचाएंगे। इससे अमेरिकी कंपनियों का वैश्विक बाज़ार में हिस्सा घट सकता है, खासकर कृषि और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में।
आर्थिक अनिश्चितता: USMCA करार के तहत कनाडा और मैक्सिको से आने वाले पार्ट्स पर टैरिफ मई तक निलंबित हैं, लेकिन नई व्यवस्था अनिश्चितता पैदा कर रही है। कंपनियां निवेश रोक सकती हैं, जिससे दीर्घकालिक विकास प्रभावित होगा।
चीन का उदय: टैरिफ से प्रभावित देश चीन की ओर रुख कर सकते हैं, जो पहले से ही वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी पकड़ मज़बूत कर रहा है। यह अमेरिका की आर्थिक प्रभुता के लिए खतरा बन सकता है।
ट्रम्प का यह टैरिफ युद्ध अमेरिकी विनिर्माण को पुनर्जनम देने का वादा तो करता है, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई कड़वी है। यह नीति अल्पकालिक लाभ के लिए दीर्घकालिक अस्थिरता को न्योता दे रही है। अगर वैश्विक प्रतिशोध और आर्थिक मंदी का दौर शुरू हुआ, तो अमेरिका खुद को एकाकी और कमज़ोर पा सकता है। सवाल यह है कि क्या ट्रम्प का यह दांव अमेरिका को महान बनाएगा या इसे वैश्विक मंच पर अलग-थलग कर देगा? समय ही इसका जवाब देगा।