United Nations General Assembly : तुर्किए के राष्ट्रपति रजब तैय्यब एर्दोआन ने साल 2019 में अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने के बाद से पहली बार इस साल संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में अपने संबंधोन में कश्मीर का जिक्र नहीं किया। इस साल लगभग 35 मिनट के संबोधन में उन्होंने गाजा की मानवीय स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया, जहां हमास के खिलाफ इजराइल के हमलों में 40 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
संविधान के तहत जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा 2019 में वापस लिए जाने के बाद एर्दोआन ने हर साल यहां यूएनजीए सत्र में दुनियाभर के नेताओं के सामने कश्मीर का उल्लेख किया था। इस दौरान उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ताएं किए जाने का समर्थन किया था।
इस साल 24 सितंबर को एर्दोआन ने गाजा में फलस्तीनियों की दशा की ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया और संयुक्त राष्ट्र पर आम लोगों की मौतें रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्यों की ओर इशारा करते हुए कहा, दुनिया इन पांच से बड़ी है।
उन्होंने कहा, गाजा बच्चों और महिलाओं की दुनिया की सबसे बड़ी कब्रगाह बन गया है। उन्होंने अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के प्रमुख देशों समेत पश्चिमी देशों से हत्याएं रोकने का आह्वान किया। एर्दोआन द्वारा कश्मीर का उल्लेख न करने को तुर्किए के रुख में आए स्पष्ट बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। यह ऐसे समय में हुआ है जब तुर्किए भारत की सदस्यता वाले ब्रिक्स समूह में शामिल होने की कोशिश कर रहा है।
पाकिस्तान की पूर्व राजनयिक और संयुक्त राष्ट्र में देश की राजदूत रह चुकीं मलीहा लोधी ने तुर्किए के रुख में आए स्पष्ट बदलाव पर टिप्पणी की है। उन्होंने एक्स पर लिखा, पिछले पांच साल के विपरीत, राष्ट्रपति एर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर का जिक्र नहीं किया। उन्होंने 2019, 2020, 2021, 2022 और 2023 में ऐसा किया था।
पाकिस्तान का समर्थन करने वाले एर्दोआन ने पहले कई बार कश्मीर मुद्दा उठाया है, जिसके चलते भारत और तुर्किए के बीच संबंधों में तनाव देखा जा चुका है। एर्दोआन ने पिछले साल संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन में कहा था, एक और कदम जिससे दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय शांति, स्थिरता व समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा, वह है भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत तथा सहयोग के माध्यम से कश्मीर में न्यायपूर्ण व स्थाई शांति की स्थापना।
भारत ने उनकी टिप्पणियों को पूरी तरह अस्वीकार्य बताकर खारिज करता रहा है। भारत कहता रहा है कि तुर्किए को दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान करना सीखा चाहिए और यह उसकी नीतियों में और ज्यादा गहराई से झलकना चाहिए। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour