लंदन। एक हालिया अध्ययन के मुताबिक ट्विटर की पोस्ट के जरिए पुलिस के पास रिपोर्ट से पहले ही दंगों और दूसरी हिंसक घटनाओं का पता लगाया जा सकता है। इस अध्ययन से यह भी सामने आया कि कानून का पालन करवाने वाले अधिकारियों के लिए सोशल मीडिया सूचना का अमूल्य स्रोत हो सकता है।
लंदन में वर्ष 2011 में हुए दंगों से लिए गए आंकड़ों के विश्लेषण में पाया गया कि कंप्यूटर सिस्टम स्वचालित तरीके से ट्विटर को बारीकी से देखकर गंभीर घटनाओं, जैसे दुकानों में तोड़फोड़, कारों को जलाने की पहचान, इन घटनाओं की यूके मेट्रोपॉलिटिन पुलिस सर्विस में रिपोर्ट होने से पहले ही कर लेता है।
ब्रिटेन की कार्डिफ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित यह तंत्र यह सूचना भी देख सकता है कि कहां दंगों के होने की अफवाह है और कहां युवकों का समूह एकत्र हो रहा है। एसीएम ट्रांजेक्शन्स ऑन इंटरनेट टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित यह शोध दिखाता है कि औसतन यह कंप्यूटर सिस्टम विध्वंसक गतिविधियों को अधिकारियों के पता चलने से कुछ मिनटों पहले और कुछ मामलों में एक घंटा पहले ही पकड़ लेता है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि उनके काम से पुलिस अधिकारियों को छोटे और बड़े पैमाने पर होने वाली विध्वंसक घटनाओं के बेहतर प्रबंधन और उनसे निपटने की बेहतर तैयारी में मदद मिलेगी। कार्डिफ विश्वविद्यालय के पीट बर्नप ने कहा, हमनें ऑनलाइन विचलन जैसे शत्रुतापूर्ण कथनों और इंटरनेट के जरिए फैलाई जाने वाली नफरत को बेहतर समझने के लिए पहले ट्विटर के आंकड़ों की मशीन लर्निंग और प्राकृतिक भाषा प्रक्रिया का इस्तेमाल किया।
बर्नप ने कहा, इस शोध में हमने दिखाया कि ऑनलाइन सोशल मीडिया सामाजिक अव्यवस्था और धरती पर होने वाली आपराधिक गतिविधियों समेत प्रतिदिन होने वाली चीजों को लेकर लोगों के अनुभवों को साझा करने की जगह बनता जा रहा है। (भाषा)