लंबे समय तक अमेरिका विश्व की निर्विवाद सैन्य महाशक्ति रहा है। हालांकि समुद्र में चीनी नौसेना पहले ही अमेरिकियों से आगे निकल चुकी है। इसलिए दोनों के बीच हथियारों की इस समय एक अपूर्व होड़ चल पड़ी है।
अमेरिका में पारदर्शिता की भी अपनी सीमाएं हैं, खासकर तब, जब बात सेना के बारे में हो। चीन किसी अन्य क्षेत्र में अमेरिका को उतनी चुनौती नहीं देता जितना समुद्र में देता है।
समुद्री युग के मध्य में : भूतपूर्व सोवियत संघ के साथ शीत युद्ध के दिनों वाली हथियारों की दौड़ भी वायु और थल सेना पर ही अधिक केंद्रित थी। किंतु 21वीं सदी की शुरुआत से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हालात कठिन हो रहे हैं, क्योंकि चीन और अमेरिका के अलावा भारत जैसी अन्य शक्तियां भी लंबे समय से इस जोखिम भरी प्रतिद्वंद्विता में शामिल हो चुकी हैं।
स्टॉकहोम के इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, दुनियाभर में सैन्य खर्च पिछले 20 वर्षों में 1.12 खरब डॉलर से दोगुना होकर 2.11 खरब डॉलर हो गया है। एशिया और ओशीनिया क्षेत्र की हिस्सेदारी 18 से बढ़कर 28 प्रतिशत हो गई है।
प्रशांत महासागर में बेचैनी : दशकों तक अमेरिका ने दुनियाभर में कहीं भी अपनी मनमानी की स्वतंत्रता का आनंद लिया। लेकिन आज उसे एक अलग दुनिया का सामना करना पड़ रह है। समुद्र नौसैनिक प्रतिस्पर्धा का मुख्य केंद्र बन गया है। अमेरिकी नौसेना के चार सितारों वाले एडमिरल डेरिल कॉडल का कहना है कि अमेरिका नहीं, चीन की नौसेना दुनिया में सबसे बड़ी है। वास्तव में 2015 और 2020 के बीच अमेरिका समुद्र में चीन से पिछड़ गया। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन इसे स्वीकार करता है।
चीन के पास पहले से ही लगभग 340 युद्धक विमान, पनडुब्बियां, उभयचर समुद्री जहाज़, बारूदी सुरंगें झेल सकने वाले युद्धपोत, विमान वाहक युद्धपोत और नौसैनिक बेड़ों की सहायता करने वाले जहाज़ हैं। इस संख्या में 85 गश्ती नौकाएं और जहाज़-भेदी क्रूज़ मिसाइलें शामिल नहीं हैं। योजना के अनुसार चीनी नौसेना की कुल ताक़त 2025 तक 400 जहाज़ों तक और 2030 तक 440 जहाज़ों तक बढ़ जाएगी।
एडमिरल कॉडल के अनुसार अमेरिकी नौसेना में इस समय लगभग 295 जहाज़ हैं और आने वाले वर्षों में भी उनकी संख्या इतनी ही रहेगी। वे मानते हैं कि चीन के साथ सामरिक प्रतिस्पर्धा के कारण सैन्य संघर्ष की संभावना लगातार बढ़ती जा रही हैः हम अब और पीछे रहने का जोखिम नहीं उठा सकते
अमेरिकी नौसेना की कमजोर होती क्षमताएं : संख्याबल के मामले में अमेरिका चीन से पिछड़ रहा है। वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक हेरिटेज फाउंडेशन ने अमेरिकी सैन्य शक्ति का सूचकांक शीर्षक अपनी वार्षिक रिपोर्ट में अमेरिकी नौसेना की क्षमताओं को बहुत कमजोर के रूप में वर्गीकृत किया है। उसके लेखक यह भी मानते हैं कि अमेरिकी नौसैनिक बेड़ा चीन की तुलना में सिकुड़ रहा है। वर्तमान और भावी अनुमानित फंडिंग का स्तर नौसेना की गिरावट को तब तक रोक नहीं सकेगा, जब तक कि अमेरिकी संसद के दोनों सदन लगातार कई वर्षों तक फंडिंग बढ़ाने के लिए असाधारण प्रयास नहीं करते।
चीनी धौंस-धमकी : प्रशांत महासागर क्षेत्र में ठीक इस समय युद्ध आसन्न नहीं लगता। लेकिन इस क्षेत्र में चीनी नौसेना और वायु सेना की धौंस-धमकी वाली घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। पेंटागन ने इस बारे में कुछ समय पहले एक चेतावनी जारी की। अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों या हवाई क्षेत्रों में काम कर रहे अमेरिकी सैन्यबलों में चीनी विमानों और जहाजों द्वारा समुद्र में जोखिम भरी हवाई घटनाओं और टकरावों की संख्या को लेकर चिंता बढ़ती देखी जा रही है
अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कुछ समय पूर्व की सिंगापुर की अपनी यात्रा के दौरान कहा कि उन्हें चिंता है कि कहीं कभी कोई गलती— यानी टकराव— न हो जाए।
जून में अमेरिका द्वारा जारी एक वीडियो में ताइवान जलडमरूमध्य वाले अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में एक असुरक्षित चीनी युद्धाभ्यास दिखाया गया था। उस समय चीनी नौसेना का एक जहाज़ अमेरिकी विध्वंसक यूएसएस चुंग-हून के रास्ते को तेज़ी से काट कर आगे बढ़ गया। उसके साथ टकराव से बचने केलिए अमेरिकी जहाज़ को अपनी गति धीमी करनी पड़ी।
पेंटागन का घोषित दृष्टिकोण : अमेरिका का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय कानून जहां भी अनुमति देगा, अमेरिका वहां और अधिक ज़िम्मेदारी के साथ सुरक्षित उड़ानें भरना, नौकायन और दूसरे सैन्य संचालनकार्य जारी रखेगा।
चीनी दृष्टिकोण यह है कि भौगोलिक निकटता को देखते हुए ताइवान जलडमरूमध्य के पास अमेरिका की ऐसी गतिविधियां चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करती हैं। इसका अर्थ यही है कि चीनी नौसेना अमेरिकी विमानों एवं नौसैनिक जहाज़ों का रास्ता रोकने या उन पर हमला करने की भी सोच सकती है। दुनिया को डर यही है कि कोई ऐसी घटना किसी भी समय दोनों पक्षों की बीच झड़प या युद्ध जैसी स्थिति का रूप भी ले सकती है।