वॉशिंगटन। अमेरिकी रक्षामंत्री मार्क एस्पर ने मंगलवार को कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत और चीन के बीच स्थिति की अमेरिका बहुत करीब से निगरानी कर रहा है। एस्पर ने चीन सेना की आक्रामक गतिविधियों को क्षेत्र को अस्थिर करने वाला बताया।
उन्होंने अमेरिका और भारत सैन्य सहयोग का जिक्र करते हुए यह भी कहा कि भारत के साथ अमेरिका का संबंध 21वीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण रक्षा संबंधों में एक है। अमेरिकी रक्षामंत्री ने यह बात पूर्वी लद्दाख और दक्षिण चीन सागर में चीन की सैन्य आक्रामकता फिर से बढ़ने के बीच एक सुरक्षा सेमिनार को संबोधित करते हुए यह कही।
एस्पर ने दोनों देशों के बीच तनाव पर पूछे गए गए एक सवाल के जवाब में कहा, हम भारत और चीन के बीच स्थिति की, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जो कुछ हो रहा है उसकी बहुत करीब से निगरानी कर रहे हैं और हमें यह देखकर अच्छा लगा कि दोनों पक्ष तनाव घटाने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने क्षेत्र में चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की गतिविधियों को अस्थिर करने वाला करार देते हुए कहा कि वह पूर्वी और दक्षिण चीन सागर में अपना आक्रामक व्यवहार जारी रखे हुए है।चीन के साथ भारत के सीमा विवाद के बीच परमाणु ऊर्जा से संचालित विमान वाहक पोत यूएसएस निमित्ज के नेतृत्व में अमेरिकी नौसेना के एक हमलावर बेड़े ने अंडमान निकोबार द्वीपसमूह के तट के पास भारतीय युद्ध पोतों के साथ सोमवार को एक सैन्य अभ्यास किया।
नई दिल्ली में अधिकारियों ने बताया कि इस अभ्यास में भारतीय नौसेना के चार युद्ध पोत ने हिस्सा लिया।यूएसएस निमित्ज विश्व का सबसे बड़ा युद्ध पोत है। पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ने के बाद दोनों देशों (भारत और अमेरिका) की नौसेनाओं के बीच यह अभ्यास मायने रखता है।
एस्पर ने कहा कि हिंद महासागर में संयुक्त अभ्यास भारत और अमेरिका की नौसेनाओं के बीच बढ़ते सहयोग को प्रदर्शित करता है। उन्होंने कहा, मैं भारत के साथ बढ़ते रक्षा सहयोग का जिक्र करना चाहता हूं। यह 21वीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण रक्षा संबंधों में एक है। हमने पिछले साल नवंबर में पहला संयुक्त सैन्य अभ्यास किया था।
जैसा कि मैंने आज कहा, यूएसएस निमित्ज हिंद महासागर में भारतीय नौसेना के साथ एक संयुक्त अभ्यास कर रहा है, यह हमारे मजबूत नौसेना सहयोग के प्रति साझा प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है और स्वतंत्र एवं खुला हिंद- प्रशांत क्षेत्र का समर्थन करता है।
उन्होंने कहा, हमारे विमान वाहक पोत दक्षिण चीन सागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में द्वितीय विश्व युद्ध के समय से हैं। हम अपने मित्रों एवं साझेदारों की संप्रभुता का समर्थन करेंगे। एस्पर ने कहा, हमारा यह मानना है कि किसी भी एक राष्ट्र को वर्चस्व स्थापित नहीं करना चाहिए और ना ही वह कर सकता है तथा हम समृद्ध एवं सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए अपने सहयोगियों एवं साझेदारों का समर्थन करना जारी रखेंगे।
उन्होंने अमेरिका-भारत रक्षा सहयोग पर यह भी कहा, हम अपने रक्षा सौदे को बढ़ाना जारी रखे हुए हैं और इस पर प्रगति के लिए इस साल के अंत में 2+2 मंत्री स्तरीय वार्ता की आशा करते हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्रों को अपना खुद का अंतर क्षेत्रीय सुरक्षा संबंध तथा समान विचार वाले साझेदारों के साथ नेटवर्क विस्तारित करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
एस्पर ने कहा, उदाहरण के तौर पर पिछले कुछ वर्षों में जापान ने फिलिपीन, वियतनाम, मलेशिया और बांग्लादेश को अपनी समुद्री सुरक्षा मजबूत करने के लिए नौकाएं उपलब्ध कराई हैं। जून में ऑस्ट्रेलिया और भारत ने एक अहम साजो-सामान सहयोग को अंतिम रूप देने पर सहमति जताई।
यह पूछे जाने पर कि भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु संकट के बारे में अमेरिका कितना चिंतित है, एस्पर ने कहा कि बिल्कुल, जब दोनों देशों के पास परमाणु हथियार हैं और उनके बीच तनाव है तो इसका अमेरिका बहुत करीब से नजर रखे हुए है।
उन्होंने कहा, हालांकि मैं अभी ऐसा कोई संकेत नहीं देखता कि दोनों देशों के बीच टकराव होने वाला है। लेकिन इसकी हम निगरानी कर रहे हैं, न सिर्फ दुनिया के इस हिस्से में, बल्कि अन्य हिस्सों में भी। एस्पर ने कहा कि चीन का अवैध रूप से भूमि पर कब्जा जताना तथा विवादित दक्षिण चीन सागर में एवं उसके आसपास सैन्य अभ्यास करना दक्षिण चीन सागर में 2002 की घोषणा में की गई उसकी प्रतिबद्धताओं के खिलाफ है।
उन्होंने कहा, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी नियमों को तोड़ने में लगी हुई है। उन्होंने कहा कि चीन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य और आर्थिक प्रभाव का भी तेजी से विस्तार किया है जिससे क्षेत्र में और इससे दूर भी विभिन्न देशों में चिंता पैदा हो गई है। एस्पर ने चीनी नेताओं से अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों का पालन करने को कहा।
उन्होंने कहा, हम उम्मीद करते हैं कि सीसीपी अपने तौर-तरीके बदलेगा, साथ ही हमें विकल्प के लिए भी तैयार रहना चाहिए। उल्लेखनीय है कि कोविड-19 महामारी से निपटने के बीजिंग के तौर तरीकों को लेकर अमेरिका और चीन के बीच संबंध हाल के समय में अपनी सबसे खराब स्थिति में पहुंच गए हैं।
चीन के शिंजियांग में उयगुर मुसलमानों पर चीन की कार्रवाई और हांगकांग में बीजिंग द्वारा एक विवादास्पद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किए जाने से दोनों देशों के बीच जुबानी जंग और बढ़ गई है।(भाषा)