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जानिए क्या है H1B वीजा, क्यों परेशान हो रहे हैं भारतीय...

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, मंगलवार, 28 मार्च 2017 (16:19 IST)
अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों ने सभी की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद एक तरफ अमेरिका में रह रहे भारतीयों पर लगातार नस्लीय हमले हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अमेरिका जाने वाले भारतीयों को भी वीजा मिलने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के साथ ही विदेश नीति पर सख्त हो गए हैं। हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप ने एच 1 बी वीजा नियमों में बदलाव के लिए बिल अमेरिकी कांग्रेस में पेश किया था। नियमों में बदलाव से भारतीय छात्रों के साथ ही अमेरिका घूमने जाने वालों को भी वीजा में खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही ट्रंप के इस फैसले का असर भारत-अमेरिकी रिश्तों पर भी पड़ सकता है। इस पूरे मामले पर विस्तृत रिपोर्ट- 
 
अमेरिका ने एच 1 बी वीजा की प्रीमियम प्रासेसिंग को 6 महीने के लिए टाल दिया। हालांकि जब भारत ने इस मामले में अमेरिका जाकर अपना पक्ष रखा था, तो अमेरिका ने उसे आश्वासन दिया था औऱ कहा था कि एच1बी वीजा मुद्दा उसकी प्राथमिकता नहीं है। ऐसे में जब भारतीय यह मान रहे थे कि फिलहाल एच1बी वीजा को लेकर बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है, तभी ट्रंप प्रशासन ने अचानक यह फैसला किया।
 
क्या है एच 1 बी वीजा : H1-B (immigrant worker visa) यह एक तरह की तत्काल सेवा है। 15 दिन के भीतर 1225 डॉलर की फीस देकर अमरीका के लिए वीज़ा मिल जाता है। अमेरिका ने 3 अप्रैल के बाद इस तत्काल सेवा पर रोक लगा दी है। इस वीज़ा के तहत हर साल 85,000 पेशेवर को वीजा दिया जाता है। एक अनुमान के अनुसार इसका 75 प्रतिशत भारतीय लाभ उठा लेते हैं। अनुमान के अनुसार तीन लाख भारतीय एच 1 बी वीजा पर अमेरिका में काम कर रहे हैं।
 
क्या है प्रीमियम प्रासेसिंग : प्रीमियम प्रोसेसिंग के जरिए एच-1बी वीजा एप्लीकेशंस को तेजी से आगे बढ़ाया जाता है। औसतन एच 1 बी वीजा को मंजूरी मिलने में 3 से 6 महीने का समय लगता है। हालांकि नियोक्ता कंपनियों की ओर से 1,225 डॉलर का प्रीमियम अदा करने पर यह वीजा 15 दिन में ही जारी कर दिया जाता है। अमेरिका ने इसी प्रीमियम प्रक्रिया को 6 महीने के लिए रोक दिया है।
 
क्या है विरोध का कारण : अमेरिका में पिछले कई सालों से इस वीजा को लेकर लोग कड़ा विरोध करते आ रहे हैं। उनका मानना है कि कंपनियां इस वीजा का गलत तरह से इस्तेमाल करती हैं। उनकी शिकायत है कि यह वीजा ऐसे कुशल कर्मचारियों को जारी किया जाना चाहिए जो अमेरिका में मौजूद नहीं हैं, लेकिन कंपनियां इसका इस्तेमाल आम कर्मचारियों को रखने के लिए कर रही हैं। इन लोगों का आरोप है कि कंपनियां एच-1बी वीजा का इस्तेमाल कर अमेरिकियों की जगह कम सैलरी पर विदेशी कर्मचारियों को रख लेती हैं।
 
पिछले कुछ सालों में इसे लेकर कई अदालती लड़ाइयां भी लड़ी जा चुकी हैं। 2015 में अमेरिका की मशहूर कंपनी डिज्नी को एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। डिज्नी के कुछ कर्मचारियों का आरोप था कि कंपनी ने कम सैलरी के कारण से उनकी जगह एच 1बी वीजा धारक कर्मचारियों को रखा था। कई अन्य मामलों में अमेरिकी कर्मचारियों का यह भी कहना है कि उनकी कंपनी ने उन्हें निकालने से पहले उनसे अपना काम एच-1बी वीजा धारक कर्मचारियों को सिखाने के लिए कहा था। इस वीजा के गलत इस्तेमाल को लेकर भारतीय आईटी कंपनियों पर भी आरोप लगते रहे हैं। 2013 में भारतीय आईटी कंपनी इंफोसिस को ऐसे ही एक मामले को लेकर करीब 25 करोड़ रुपए का जुर्माना देना पड़ा था।
 
ट्रंप ने बनाया था चुनावी मुद्दा : अमेरिका में पिछले काफी समय से यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी रहा है और चुनाव के समय पार्टियां इस पर शिकंजा कसने को लेकर वादे भी करती हैं। पिछले साल हुए चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप ने इसे एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था। ट्रंप ने अपनी कई रैलियों में इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बात भी कही थी. इससे पहले भी वहां की सरकारें पूरी कोशिश करती रही हैं कि कंपनियां इस वीजा का कम से कम इस्तेमाल कर पाएं और इसलिए समय-समय पर इसकी फीस में भारी इजाफा भी किया जाता रहा है। ओबामा सरकार ने पहले 2010 में और उसके बाद 2016 में एच-1बी वीजा की फ़ीस में भारी बढ़ोतरी की थी। बीते साल जनवरी में इस फ़ीस को 2000 से बढ़ाकर 6000 डॉलर कर दिया गया था। इस पर भारत सरकार ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी। 
 
 
भारतीयों का दबदबा : अमेरिका उच्च कौशल प्राप्त कर्मियों को अपने यहां काम करने का मौका देने के लिए सालाना 85 हजार एच-1बी वीजा जारी करता है। यह पूरी दुनिया के लिए होता है, लेकिन इसमें भारतीयों का दबदबा है। इसका 60 प्रतिशत  से अधिक भारतीयों को मिलता है। इसका कारण उनकी कुशलता और अपेक्षाकृत कम वेतन पर काम करना है। आंकड़ों के अनुसार एच-1बी वीजाधारक भारतीय कर्मियों की शुरुआती वेतन 65 से 70 हजार डॉलर सालाना के बीच होती है। वहीं पांच साल का अनुभव रखने वाले कर्मियों को 90 हजार से 1.1 लाख डॉलर तक की राशि मिलती है।
 
2015 यूएसआईसीए रिपोर्ट के मुताबिक कंप्यूटर क्षेत्र 86.5 फीसदी भारतीयों को, 5.1 फीसदी चीनी नागरिकों को 
0.8 फीसदी कनाडा निवासियों को, 7.6 फीसदी अन्य देशों के नागरिकों को एच 1 बी वीजा मिलता है, वहीं अगर इंजीनियरिंग क्षेत्र की बात करें तो यहां 46.5 फीसदी भारतीय, 19.3 फीसदी चीनी, 3.4 फीसदी कनाडाई, 30.8 फीसदी अन्य एच 1 बी वीजा मिला है।
 
भारत क्यों हैं चिंतित : अमेरिकी श्रम मंत्रालय के मुताबिक बीते साल इस वीजा के लिए आवदेन करने वाली कंपनियों में विप्रो, इंफोसिस और टीसीएस का नंबर क्रमश: पांचवां, सातवां और दसवां था। साथ ही इन्हीं कंपनियों को सबसे ज्यादा एच-1बी वीजा की मंजूरी मिली थी। एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में इंफोसिस के कुल कर्मचारियों में 60 फीसदी से ज्यादा एच 1बी वीजा धारक हैं। इसके अलावा वाशिंगटन और न्यूयॉर्क में एच-1बी वीजा धारकों में करीब 70 प्रतिशत भारतीय हैं।
 
आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है कि यदि अमेरिका में एच-1बी वीजा दिए जाने के नियमों में कोई बदलाव किया गया तो इससे सबसे ज्यादा भारतीय इंजीनियर और भारतीय कंपनियां प्रभावित होंगी। साथ ही इसका बुरा प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। भारतीय जीडीपी में भारतीय आईटी कंपनियों का योगदान 9.5 प्रतिशत के करीब है और इन कंपनियों पर पड़ने वाला कोई भी फर्क सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।  
 
 
क्या बदला नए कानून के बाद- 
 
घटी भारतीय छात्रों की संख्या : घृणा अपराधों की विभिन्न घटनाओं और ट्रंप प्रशासन की वीजा नीतियों में संभावित बदलावों को लेकर फैले डर और चिंता के चलते अमेरिकी विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों के आवेदनों की संख्या में तेज कमी देखी गई है।
 
जीवनसाथी को रियायत नहीं :  अब तक पति या पत्नी में से एक को एच-1बी वीजा मिलने की स्थिति में उसके जीवनसाथी को भी अमेरिका में काम करने की मंजूरी मिल जाती थी। आमतौर पर उन्हें एल-1 श्रेणी का वीजा दिया जाता है,  लेकिन नया कानून पारित हो जाने की स्थिति में यह सुविधा नहीं मिलेगी।
 
अमेरिका के 250 से अधिक कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में किए गए सर्वेक्षण के प्रारंभिक नतीजों के अनुसार इस बार रजिस्ट्रेशन करवाने वाले भारतीय छात्रों के अंडरग्रेजुएट आवेदनों में 26 प्रतिशत और ग्रेजुएट आवेदनों में 15 प्रतिशत की गिरावट आई है। यह सर्वेक्षण अमेरिका के छ: शीर्ष उच्च शिक्षा समूहों ने किया।
 
इन उच्च शैक्षणिक संस्थानों ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों की ओर से आने वाले आवेदनों में औसतन 40 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय स्टूडेंट्स रजिस्ट्रेशन में भारत और चीन के छात्रों की हिस्सेदारी 47 प्रतिशत की है। अमेरिका में पढ़ने वाले भारतीय और चीनी छात्रों की संख्या लगभग पांच लाख है।
 
संबंधों में आ सकता है तनाव : दक्षिण और मध्य एशिया मामलों की अमेरिका की पूर्व सहायक विदेश मंत्री निशा देसाई बिस्वाल ने कहा है कि एच-1बी वीजा का मुद्दा भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव पैदा कर सकता है। उन्होंने मुद्दे पर तर्कसंगत संवाद का आह्वान किया।
 
आईटी कंपनियों पर पड़ेगा असर : अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा में एच-1बी वीजा में सुधार विधेयक से अमेरिका में कंपनियां एच-1बी वीजा देकर विदेशी पेशेवरों को आसानी से नौकरी नहीं दे पाएंगी। इसका सबसे बड़ा असर भारतीय आईटी कंपनियों पर पड़ेगा। कैलिफोर्निया के सांसद जोए लोफग्रेन ने ‘हाई स्किल्ड इंटिग्रिटी एंड फेयरनेस एक्ट 2017’ (उच्च कुशल निष्ठा एवं निष्पक्षता अधिनियम 2017) विधेयक पेश किया। इस विधेयक के मुताबिक एच-1बी वीजा पर बुलाए जाने वाले पेशेवर को 1.30 लाख डॉलर से अधिक के वेतन पर ही नियुक्त किया जाएगा। वर्तमान में ऐसे वीजाधारक के न्यूनतम वेतन की सीमा 60 हजार डॉलर है। बताया जाता है कि ट्रंप एच-1बी वीजा पर कार्यकारी आदेश भी ला सकते हैं। इसका मसौदा तैयार है। इतना ही नहीं, वीजा देने के लिए प्रचलित लॉटरी प्रणाली में भी बदलाव हो सकता है।
 
मोदी ने की थी अपील :  एच 1 बी वीजा के जरिए ही भारतीय कामगार अमेरिका में जाकर काम कर सकते हैं। इस वीजा के कारण अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय पेशेवर काम पाते हैं। अमेरिका के नए प्रशासन का मानना है कि स्थानीय लोगों को देश में अधिक काम मिले, इसके लिए विदेशी कामगारों की अमेरिका में आमद में कमी लाना जरूरी है। हाल ही में दिल्ली में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस सिलसिले में अमेरिकी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल से मिलकर हल निकालने की अपील की थी। मोदी ने भारतीय पेशेवरों के अमेरिका आने-जाने के नियमों को सरल ही रखने की बात कही थी।
 
चार विधेयक : भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस मुद्दे पर संसद में कहा था कि अमेरिका में काम रहे भारतीय आईटी पेशेवरों की नौकरी की सुरक्षा और एच 1 बी वीजा पर प्रतिबंध को लेकर चिंता की कोई वजह नहीं है क्योंकि भारत सरकार अमेरिका से इस संबंध में बात कर रही है। स्वराज के मुताबिक 'वर्तमान में अमेरिकी कांग्रेस में एच 1 बी वीजा प्रतिबंध को लेकर चार विधेयक हैं। हम अमेरिका के साथ उच्च स्तर पर इस संबंध में (वार्ता में) लगे हुए हैं। हम यह सुनिश्चित करने का सभी प्रयास (कूटनीतिक माध्यमों के जरिए) कर रहे हैं कि यह विधेयक पारित नहीं हों।
 
पहले भी होते रहे हैं उतार-चढ़ाव : विदेश मंत्री ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले भी अमेरिका की एच 1 बी वीजा नीति में उतार-चढ़ाव आता रहता था। उन्होंने कहा कि 'एच1बी वीजा 1990 में जब पहली बार शुरू किया गया, तब इसकी सीमा 65,000 थी। साल 2000 में इसे तीन साल के लिए 1,95,000 कर दिया गया। अमेरिका ने साल 2004 में वीजा की संख्या फिर 65,000 कर दी। इसलिए इस नीति में डोनाल्ड ट्रंप सरकार से पहले से उतार-चढ़ाव होता रहा है। 
 
विदेश मंत्री ने सदन को यह भी बताया कि अमेरिका में काम करने वाले भारतीयों के पति-पत्नी को दी गई वीजा सुविधा को अमेरिका ने अभी तक वापस नहीं लिया है। अवैध प्रवासियों के बारे में सुषमा ने कहा कि अमेरिकी अधिकारियों ने 271 लोगों की सूची दी है, जिन्हें उन्होंने निर्वासित करने के लिए चिन्हित किया है। परंतु अमेरीकी वीजा के लिए कतार में खड़े लोगों के अनुसार अभी तो अकेले यात्रा करने वाले 35 से 45 वर्ष के व्यक्तियों को ट्रेवल वीजा में भी खासी परेशानियों का सामना करना पड़ा रहा है।

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