लंदन। भारतीय शराब कारोबारी विजय माल्या को गुरुवार को उस समय बड़ा झटका लगा, जब ब्रिटेन की सर्वोच्च अदालत में प्रत्यर्पण के खिलाफ अपील की अनुमति मांगने वाला माल्या का आवेदन अस्वीकृत हो गया। अब प्रत्यर्पण की प्रक्रिया 28 दिन के अंदर पूरी करनी होगी।
माल्या की बंद हो चुकी किंगफिशर एयरलाइन्स के कर्ज से संबंधित धोखाधड़ी और मनीलांड्रिंग के मामले में भारत प्रत्यर्पण के आदेश के खिलाफ उसकी अपील हाईकोर्ट में पिछले महीने ही खारिज हो गई थी।
64 वर्षीय माल्या के पास हाई कोर्ट के फैसले के बाद से इससे भी ऊंची अदालत में जाने की अनुमति मांगने का ताजा आवेदन दाखिल करने के लिए 20 अप्रैल से लेकर 14 दिन का समय था। हाई कोर्ट ने ब्रिटेन के गृह मंत्री द्वारा प्रमाणित वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत के प्रत्यर्पण आदेश के खिलाफ माल्या की अपील खारिज कर दी थी।
ताजा फैसले को ‘प्रनाउन्समेंट’ (घोषणा) कहा गया है यानी भारत-ब्रिटेन प्रत्यर्पण संधि के तहत ब्रिटेन का गृह कार्यालय अब माल्या को भारत प्रत्यर्पित किए जाने के अदालत के आदेश को 28 दिन के भीतर औपचारिक रूप से प्रमाणित कर सकता है।
लंदन की रॉयल कोर्ट्स ऑफ जस्टिस में लॉर्ड जस्टिस स्टीफन इरविन और जस्टिस एलिजाबेथ लाइंग की दो सदस्यीय पीठ ने फैसले में कहा कि अदालत ने सुप्रीम कोर्ट में अपील के मद्देनजर आम सार्वजनिक महत्व के विधि के प्रश्न को प्रमाणित नहीं करने के अपने इरादे को प्रकट कर दिया है। अदालत ने ब्रिटेन के प्रत्यर्पण कानून 2003 की धारा 36 और धारा 118 के तहत 28 दिन की ‘जरूरी अवधि’ तय की है जिसके भीतर प्रत्यर्पण प्रक्रिया होनी चाहिए।
ब्रिटेन की क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (सीपीएस) ने कहा कि माल्या की विधि के प्रश्न (प्वाइंट ऑफ लॉ) को प्रमाणित करने की अपील सभी तीनों आधारों पर खारिज हो गयी, जिनमें मौखिक दलीलों पर सुनवाई, तैयार किए गए सवालों पर प्रमाणपत्र देना और सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए अनुमति देना शामिल हैं।
इससे पहले माल्या ने बृहस्पतिवार को ट्वीट कर भारत सरकार द्वारा उस पर बकाया देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पैसा लेने की अपील दोहराई। माल्या ने कहा, ‘बिना शर्त मेरा धन ले लीजिए और मामले को बंद कीजिए।’
सैद्धांतिक रूप से अगले कदम के तौर पर माल्या अपने प्रत्यर्पण को इस आधार पर रोकने के लिए यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स (ईसीएचआर) में आवेदन कर सकता है कि उसे निष्पक्ष सुनवाई का मौका नहीं मिलेगा और उसे हिरासत में लिया जाएगा, जो यूरोपियन कन्वेंशन ऑन ह्यूमन राइट्स के अनुच्छेद 3 की शर्तों का उल्लंघन होगा। इस समझौते में ब्रिटेन भी एक पक्ष है।
अगर ईसीएचआर में इस तरह का आवेदन किया जाता है तो उसका फैसला आने तक प्रत्यर्पण की प्रक्रिया रुक जाएगी। हालांकि, ईसीएचआर में अपील के बाद भी माल्या के लिए सफलता की बहुत कम गुंजाइश होगी क्योंकि उसे साबित करना होगा कि इन आधारों पर ब्रिटेन की अदालतों में उसकी दलीलें पहले खारिज हो चुकी हैं।
इस लिहाज से पिछले महीने हाई कोर्ट में माल्या की अपील खारिज होना और इस सप्ताह अपील दाखिल करने की अर्जी को एक बार फिर अस्वीकृत किया जाना शराब कारोबारी के खिलाफ मामले में सीबीआई तथा ईडी के लिए निर्णायक बिंदु हैं। माल्या को एक प्रत्यर्पण वारंट पर अप्रैल 2017 में यहां गिरफ्तार किया गया था, तब से वह ब्रिटेन में जमानत पर है।
जस्टिस इरविन और जस्टिस लाइंग ने पिछले महीने व्यवस्था दी थी, हमने देखा है कि प्रथम दृष्टया गलत बयानी और षड्यंत्र का मामला है और इस तरह से पहली नजर में धन शोधन का भी मामला है। माल्या को भारत सरकार ने भगोड़ा घोषित कर रखा है। वह मार्च 2016 से ब्रिटेन में है। (भाषा)