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What is Xenophobia: जेनोफोबिक क्या है, जो बाइडेन ने भारत को क्‍यों कहा जेनोफोबिक?

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, शुक्रवार, 3 मई 2024 (17:04 IST)
US President Joe Biden call India a xenophobic country: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की तरफ से भारत के लिए कहा गया एक शब्‍द जमकर चर्चा में आ गया है। दरअसल, अमेरिका के राष्‍ट्रपति जो बाइडेन ने एक रैली में कहा था कि भारत, चीन, रूस और जापान जेनोफोबिक देश हैं।

जो बाइडेन के बयान के बाद यह शब्‍द न सिर्फ सुर्खियों में आ गया है, बल्‍कि इसे लेकर प्रतिक्रियाएं भी आने लगी हैं और बहस भी शुरू हो गई है। जानते हैं आखिर क्‍या होता है जेनोफोबिक और अमरीकी राष्‍ट्रपति ने किस संदर्भ में भारत को जेनोफोबिक कहा?

क्‍या कहा जो बाइडेन ने: सबसे पहले जानते हैं कि आखिर जो बाइडेन ने क्‍या कहा। दरअसल, बाइडेन ने भारत के लिए जेनोफोबिक शब्‍द का इस्‍तेमाल करते हुए एक ऐसा देश कहा है, जो दूसरे देशों के लोगों से नफरत करता है। बाइडेन के मुताबिक, चीन, जापान और भारत में जेनोफोबिया की वजह से ही डवलेपमेंट नहीं हो पा रहा है। ये देश जेनोफोबिया की भावना की वजह से माइग्रेशन के नाम से डरते हैं। जेनोफोबिक उनको कहा जाता है, जो बाहरी लोगों से नफरत करते हैं। यानी बाइडेन ने भारत को बाहरी लोगों से नफरत करने वाला बताया।

क्या है जेनोफोबिया का मतलब: जैसे ही इस शब्‍द की चर्चा शुस्‍ हुई लोग इसका मतलब खोजने लगे। बता दें कि कैंब्रिज डिक्शनरी के मुताबिक जेनोफोबिया का अर्थ विदेशियों, उनके रीति-रिवाजों, उनके धर्मों आदि को नापसंद करना या उनसे डरना से है। मरियम-वेबस्टर के मुताबिक जेनोफोबिया का मतलब- अजनबियों या विदेशियों या किसी भी अजीब या विदेशी चीज से डर और नफरत है। दूसरे शब्दों में कहें तो विदेशी लोगों को नापसंद करना जेनोफोबिया कहलाता है।

बाइडेन क्‍यों दे रहे ऐसे बयान: बता दें कि अमेरिका में इस साल नवंबर में राष्ट्रपति का चुनाव है। बुधवार को बाइडेन एक रैली को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने अप्रवासियों का मुद्दा उठाते हुए कहा, हमारी अर्थव्यवस्था के बढ़ने का एक मुख्य कारण आप लोग हैं। हम बाहरी लोगों का स्वागत करते हैं, लेकिन कई देश ऐसे लोगों को बोझ समझते हैं। चीन आर्थिक रूप से इतनी बुरी तरह क्यों रुक रहा है, जापान को परेशानी क्यों हो रही है, रूस को क्यों दिक्कत है, भारत क्यों नहीं बढ़ रहा है, क्योंकि वे जेनोफोबिक हैं। वे अप्रवासियों को नहीं चाहते, लेकिन सच ये है कि अप्रवासी ही हमें मजबूत बनाते हैं।
Edited by Navin Rangiyal


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