Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

चीन को क्‍यों याद आए भारत के पंचशील सिद्धांत? राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कही यह बड़ी बात

हमें फॉलो करें Xi Jinping

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

बीजिंग , शुक्रवार, 28 जून 2024 (22:57 IST)
Xi Jinping's big statement on India's Panchsheel principle : चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वर्तमान समय के संघर्षों के अंत के लिए पंचशील के सिद्धांतों की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए पश्चिमी देशों के साथ चीन के संघर्षों के बीच ‘ग्लोबल साउथ’ में अपने देश का प्रभाव बढ़ाने पर जोर दिया। शी ने पंचशील के सिद्धांतों की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ के अवसर पर यहां एक सम्मेलन में यह टिप्पणियां कीं।
विदेश मंत्रालय के अनुसार, पंचशील के सिद्धांतों को पहली बार औपचारिक रूप से 29 अप्रैल, 1954 को तिब्बत क्षेत्र के बीच व्यापार व संबंध को लेकर चीन और भारत के बीच हुए समझौते में शामिल किया गया था। चीन में इसे शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत जबकि भारत में पंचशील का सिद्धांत कहा जाता है।
 
सीमा मुद्दे का समाधान खोजने में विफल रहे थे ये नेता : तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई जब सीमा मुद्दे का समाधान खोजने में विफल रहे थे तब उन्होंने पंचशील के सिद्धांतों पर सहमति जताई थी। शी ने कहा, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों ने समय की मांग को पूरा किया और इनकी शुरुआत एक अपरिहार्य ऐतिहासिक घटनाक्रम था।
अतीत में चीनी नेतृत्व ने पहली बार पांच सिद्धांतों यानी 'एक-दूसरे की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान', 'गैर-आक्रामकता', 'एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना', 'समानता और पारस्परिक लाभ', तथा 'शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व' को संपूर्णता के साथ निर्दिष्ट किया था।
शी ने सम्मेलन में कहा, उन्होंने चीन-भारत और चीन-म्यांमार संयुक्त वक्तव्यों में पांच सिद्धांतों को शामिल किया था। इन वक्तव्यों में पांच सिद्धांतों को द्विपक्षीय संबंधों के लिए बुनियादी मानदंड बनाने का आह्वान किया गया था। इस सम्मेलन में श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे समेत चीन के करीबी देशों के नेता और अधिकारी शरीक हुए।
 
बांडुंग सम्मेलन में 20 से अधिक एशियाई और अफ्रीकी देशों ने भाग लिया था : शी ने अपने संबोधन में कहा कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों की शुरुआत एशिया में हुई, लेकिन जल्द ही ये विश्व मंच पर छा गए। उन्होंने कहा कि 1955 में बांडुंग सम्मेलन में 20 से अधिक एशियाई और अफ्रीकी देशों ने भाग लिया था। उन्होंने कहा कि 1960 के दशक में उभरे गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने भी इन सिद्धांतों को मार्गदर्शक सिद्धांत के तौर पर अपनाया।
 
चीन का भारत और अन्य विकासशील देशों के साथ संघर्ष हुआ : अमेरिका और यूरोपीय संघ से बढ़ती रणनीतिक प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए हाल के वर्षों में एशियाई, अफ्रीकी और लातिन अमेरिकी देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने की जुगत में लगे चीन का भारत और अन्य विकासशील देशों के साथ संघर्ष हुआ है। इन देशों को मोटे तौर पर ‘ग्लोबल साउथ’ कहा जाता है। शी ने कहा कि चीन ग्लोबल साउथ-साउथ सहयोग को बेहतर ढंग से समर्थन देने के लिए ग्लोबल साउथ अनुसंधान केंद्र की स्थापना करेगा। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

NEET UG Case : छात्रों का अनिश्चितकालीन धरना तीसरे दिन भी जारी, केंद्रीय शिक्षा मंत्री के इस्तीफे की मांग