उजली परमाणु बिजली का अंधेरा भविष्य
परमाणु बिजली का उजाला हमें किस अंधेरे की ओर ले जा रहा है, इसे जानने के लिए यूक्रेनी शहर चेर्नोबिल में 26 अप्रैल 1986 को हुई भीषण परमाणु दुर्घटना काफी होनी चाहिए थी। पर, ऐसा नहीं हुआ। अगला सबक मिला चेर्नोबिल दुर्घटना की 25वीं वर्षगांठ से ठीक पहले पिछले वर्ष। इस बार बारी थी जापान की। हिरोशिमा के बाद फुकूशिमा की। हिरोशिमा में दुनिया का अब तक का पहला परमाणु बम गिरा था। फुकूशिमा में किसी भूकंप के कारण पहली परमाणु दुर्घटना हुई।
भगवान उस दिन जापान पर जैसे कुपित थे- 11 मार्च 2011 के दिन। जापानी समय के अनुसार दिन के दो बज कर 47 मिनट हुए थे। देश के मुख्य द्वीप होन्शू के पूर्वी तट से परे समुद्र में जोरदार भूकंप आया। धरती डोलने लगी। 23 सेकंड के भीतर फुकूशिमा का परमाणु बिजलीघर भी थरथराने लगा। भूकंप के तीव्र झटके करीब दो मिनट चलते रहे। बिजलीघर के छह रिएक्टर-ब्लॉकों में से चार बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए। प्रशीतन प्रणाली ठप्प पड़ गई। तीन रिएक्टरों के भीतर गर्मी इतनी बढ़ गई कि वे परमाणु ईंधन वाली अपनी छड़ों सहित पिघलने लगे। रेक्टर पैमाने पर नौ अंकों वाला यह महाशक्तिशाली भूकंप ही जैसे पर्याप्त नहीं था। ठीक पौन घंटे बाद, 13 से 15 मीटर तक ऊंची, सुनामी कहलाने वाली उत्ताल समुद्री लहरें भी फुकूशिमाबिजलीघर पर टूट पड़ीं। भूकंप की विध्वंस लीला से बची-खुची कमी इन लहरों ने पूरी कर दी। चार रिएक्टर पांच-पांच मीटर तक और दो एक से डेढ़ मीटर तक पानी में डूब गए। सारे बिजलीघर की बत्ती गुल हो गई। सारी संचालन और नियंत्रण प्रणालियां ठप्प पड़ गईं। पिघलते रिएक्टरों और ईंधन की छड़ों से जो रेडियोधर्मी कण मुक्त हो रहे थे, वे हवा और समुद्री लहरों के साथ दूर-दूर तक पहुंचने लगे। संसार भर में रेडियोधर्मी विकिरण का भय छाने लगा। दुर्घटना जापान में, रिएक्टर बंद जर्मनी में : जिस दिन रिएक्टर में पैदा हो रही हाइड्रोजन गैस में विस्फोट से फुकूशिमा के रिएक्टर-ब्लॉक नंबर1 के भवन की धज्जियां उड़ गईं, उसी दिन जापान से हजारों किलोमीटर दूर जर्मनी की चांसलर (प्रधानमंत्री) अंगेला मेर्कल की भी समझ में आ गया कि उनकी परमाणु ऊर्जा नीति की भी धज्जियां उड़ गई हैं। उन्होंने घोषणा की कि कुछ ही महीने पहले जर्मनी के 17 में से जिन आठ परमाणु बिजलीघरों का जीवनकाल बढ़ाने का निर्णय किया गया था, उन्हें अस्थायी तौर पर तुरंत बंद किया जा रहा है। तीन महीने बाद इन बिजलीघरों को सदा के लिए बंद कर दिया गया। यह भी घोषणा की गई कि जर्मनी 2022 तक अपने बाकी 9 परमाणु बिजलीघर भी सदा के लिए बंद कर परमाणु ऊर्जा से मुंह मोड़ लेगा। जर्मनी के पड़ोसी देश पहले तो उसके इस निर्णय से भौचक्के रह गए। उसकी खिल्ली उड़ाने लगे। लेकिन, हवा का रुख इस बीच कई पड़ोसी देशों में भी बदल चुका है। स्विट्जरलैंड और बेल्जियम ने भी तय कर लिया है कि वे परमाणु ऊर्जा को तिलांजलि दे देंगे। इटली, जो बहुत पहले ही परमाणु ऊर्जा को त्याग चुका था, लेकिन उसे दुबारा अपनाने की सोच रहा था, अपना परमाणु-परहेज जारी रखेगा। फ्रांस परमाणु ऊर्जा के प्रति अपने मोह को अब भी पाले हुए है, हालांकि वहां भी जनता के बीच विरोध मुखर होता जा रहा है। परमाणु संयंत्रों की संख्या घट रही हैः इस समय की स्थिति यह है कि संसार भर के 30 देशों में कुल मिलाकर 436 परमाणु बिजलीघर काम कर रहे हैं। 2002 में, जब संसार में सबसे अधिक बिजलीघर चालू थे, उनकी संख्या 444 थी। रूस, चीन, भारत और दक्षिण कोरिया में बन रहे नए परमाणु बिजलीघरों के बावजूद विशेषज्ञों का अनुमान यही है कि परमाणु बिजलीघरों की कुल संख्या 2015 के बाद से और भी घटेगी। पुराने रिएक्टर लगातार बंद होंगे। सौर, पवन और जैव ऊर्जा संयंत्र उनकी जगह लेते जाएंगे।जर्मनी के बिजली उत्पादन में इन वैकल्पिक स्रोतों का हिस्सा परमाणु बिजलीघरों के हिस्से के लगभग बराबर (20 प्रतिशत) है। इसी कारण 8 परमाणु बिजलीघर एकसाथ बंद कर देने पर भी देश में बिजली की आपूर्ति पर रत्ती भर भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। स्वयं परमाणु ऊर्जा तकनीक के एक प्रमुख निर्यातक अमेरिका में भी, जहां 30 वर्षों के अंतराल के बाद पहली बार एक नए परमाणु बिजलीघर के निर्माण की अनुमति दी गई है, परमाणु ऊर्जा के प्रति जन और राजनैतिक समर्थन इतना घट गया है कि वहां भी परमाणु ऊर्जा का भविष्य बहुत सुरक्षित नहीं कहा जा सकता।परमाणु ऊर्जा का लोभ ले डूबाः जापान संसार का अकेला देश है, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अपने यहां दो अमेरिकी परमाणु बमों की प्रलयंकारी विभीषिका झेल चुका है। इससे शिक्षा लेते हुए उसने परमाणु अस्त्रों से परहेज करने का तो प्रण लिया, पर परमाणु ऊर्जा का लाभ उठाने का लोभ संवरण नहीं कर पाया। यह नहीं समझ पाया कि परमाणु रिएक्टर भी अपने आप में परमाणु बम ही होते हैं। नियंत्रण से बाहर होने पर बम जैसा ही कहर मचा सकते हैं।