आईपीएल मुकाबले दिनोदिन रोमांचक होते जा रहे हैं। कल रात तो हद ही हो गई। चौके-छक्के जड़ने वालों ने सरेआम अपने ही साथी को भरे मैदान पर थप्पड़ जड़ दिए।
यह वाकया उस समय हुआ जब मुम्बई इडियंस को हराने के बाद पंजाब किंग्स इलेवन के खिलाड़ी एक-दूसरे से हाथ मिला रहे थे तभी मुम्बई इंडियंस के कार्यवाहक कप्तान 'टर्बनेटर' हरभजनसिंह अपना आपा खो बैठे और टीम इंडिया के अपने साथी गेंदबाज 'केरला एक्सप्रेस' श्रीसंथ को मैदान में थप्पड़ रसीद कर दिया।
मैदान पर फूट-फूट कर रोते हुए श्रीसंथ को देख सभी सकते में आ गए और तुरंत टीम के साथी खिलाड़ी संगकारा, वीआरवी सिंह, कप्तान युवराज और खुद प्रीति जिंटा ने उन्हें सम्भाला।
हरभजन ने ऐसा क्यों किया, अभी तक इसका खुलासा नही हुआ है। हालाँकि श्रीसंथ और हरभजन ही जानते होंगे की ऐसा क्या हुआ कि टीम इंडिया का एक खिलाड़ी अपने ही साथी के साथ हाथापाई पर उतर आए।
'भद्रजनों' के इस खेल क्रिकेट में शायद अब भद्रजनों का अभाव होता जा रहा है। मुमकिन है हरभजन अपनी टीम की लगातार हार से बौखला गए हों। वैसे भी आजकल क्रिकेट खिलाड़ियों के दुर्व्यवहार की शिकायतें आम हो गई हैं। पर टीम इंडिया के खिलाड़ियों से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती थी, विशेषकर सचिन तेंडुलकर की टीम से तो कतई नहीं।
मगर सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिससे भज्जी दूसरे खिलाड़ी से मारपीट पर आमादा हो गए। पर अगर आप पिछले कुछ दिनों की छोटी-छोटी घटनाओं पर नजर डालें तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। कुछ दिन पहले खबर थी कि मोहाली टीम के दूसरा मैच हारने पर 'टीम की मालकिन' प्रीति जिंटा ने अपनी टीम के कुछ खिलाड़ियों को पाँच सितारा होटल से हटाकर सस्ते होटल में ठहरवा दिया था और रॉयल चैलेंजर्स की हार के बाद विजय माल्या ने राहुल द्रविड़ को अपनी नाराजगी जताई थी।
इससे साबित होता है कि इन खिलाड़ियों पर प्रदर्शन और जीतने का जबरदस्त दबाव है, चूँकि अब इन कॉर्पोरेट खिलाड़ियों ने इन क्रिकेटरों को 'बोली लगाकर खरीदा' है तो अब यह केवल खेल नहीं रह गया है। यह अब मुनाफा कमाने की जंग बन चुका है।
कॉर्पोरेट जगत से जुड़े लोग जानते हैं कि ऊँची पगार वालों की जिम्मेवारी भी बड़ी होती है, जितना बड़ा पैकेज उतना जोखिम। करोड़ों में खरीदे गए खिलाड़ियों से भी उम्मीद की जाती है की वे अपने 'मालिक' द्वारा चुकाई गई कीमत से पूरा न्याय करें। शायद यही कारण है कि तनाव और दबाव की वजह से अब खिलाड़ी मैदान पर अपना आपा खोने लगे हैं।
दूसरा लगातार खेले जा रहे क्रिकेट मैचों के चलते खिलाड़ी न तो अपने घर जा पा रहे हैं और न ही मैच के अतिरिक्त कुछ और सोच पा रहे हैं। कमोबेश सभी क्रिकेट बोर्ड खिलाड़ियों को बंधु्आ मजदूरों की तरह मैच दर मैच जोते हुए हैं। धन की लालसा में पगलाए जा रहे बोर्ड अधिकारियों को और खुद खिलाड़ियों को यह समझना होगा कि आखिर खेलने की एक सीमा होती है और अत्यधिक क्रिकेट के यही साइड इफेक्ट्स होते हैं।
अब सबसे अहम सवाल यह उठता है कि इस प्रकरण पर बीसीसीआई क्या क्या रुख होगा, क्या कोई कड़े कदम उठाए जाएँगे या इस मामले को 'घरेलू झगड़ा या भाई-भाई की लड़ाई' मान समझाइश देकर पल्ला झाड़ लेगा। किसी भी खेल का पहला नियम अनुशासन से शुरू होता है और अनुशासन को बनाए रखने के लिए बीसीसीआई को इस मामले में कड़े कदम उठाने चाहिए।
एक पुराने प्रसंग का उल्लेख करना चाहूँगा कि द्वितीय विश्व युद्द के नायक जनरल पैटन को अपनी डिवीजन के एक मामूली सैनिक से सिर्फ इसलिए सार्वजनिक तौर पर माफी माँगनी पड़ी थी क्योंकि उन्होंने उस सैनिक थप्पड़ मार दिया था। यह सैनिक हथियार फेंककर युद्ध से भागने की कोशिश कर रहा था, जिससे अन्य सैनिक हतोत्साहित भी हो सकते थे। इस मुद्दे के मीडिया में उछलने पर जनरल पैटन को सार्वजनिक रूप से उस सैनिक से माफी माँगनी पड़ी थी तथा बाद में इस घटना से क्षुब्ध हो उन्होंने सक्रिय सेवा से निवृत्ति ले ली थी।
हरभजन-श्रीसंथ थप्पड़ विवाद के कारण जो भी रहे हों मगर इतना तय है कि इससे अहित भारतीय क्रिकेट का ही होगा। कोई आश्चर्य नहीं कि इस थप्पड़ की गूँज का असर अन्य देशों के खिलाफ होने वाले मैचों में भी भारतीय खिलाड़ियों पर देखने को मिले। इस विवाद का दुखद पहलू यह है कि आईपीएल मैचों में प्रतिद्वंद्विता का यह नया रूप कहीं भारतीय टीम की एकजुटता को ही तार-तार न कर दे।