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...तो नहीं होता कोलकाता का यह हश्र

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सीमान्त सुवीर

कोलकाता नाइटराइडर्स के मालिक शाहरुख खान भले ही मुंबई में हों, लेकिन उनका दिल और दिमाग दक्षिण अफ्रीका में चल रही इंडियन प्रीमियर लीपर ही लगा हुआ है। जब रविवार की शाम किंग्स की टीम को अंतिम 6 गेंदों पर जीत के लिए 7 रन की दरकार थी, तब निश्चित रूप से ‍इस क्रिकेटिया रोमांच ने किंग खान की धड़कनों को कई गुना बढ़ा दिया होगा और अंतिम गेंद पर लंकाई चीते महेला जयवर्धने के करारे चौके ने तो दिल ही तोड़ दिया होगा।

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कोलकाता की यह हार इस बात का संकेत भी थी कि शाहरुख की टीम के लिए सेमीफाइनल के दरवाजे बंद हो गए हैं। टीम के निहायत घटिया प्रदर्शन ने पहले शाहरुख खान को दक्षिण अफ्रीका से लौटने पर मजबूर किया और वे मुंबई की फ्लाइट में ही थे कि खबर ये आई कि वे अपनी टीम को बेचने जा रहे हैं। शाहरुख ने हालाँकि इसका खंडन किया कि वे इस तरह का कोई निर्णय ले चुके हैं।

बहरहाल, कोलकाता की टीम आईपीएल के 8 मैचों में से 7 मैच हार चुकी है, उसे केवल एक मैच में जीत नसीब हुई है और अंक तालिका में वह -1.180 के रन रेट के साथ अंतिम पायदान पर बनी हुई है। इसका सीधे-सीधे मतलब ये निकला कि वह सेमीफाइनल की दौड़ से बाहर हो चुकी है।

कागजों पर बेहद मजबूत दिखने वाली इस टीम के ऐसे हश्र के लिए कौन जिम्मेदार है?
* क्या मालिक शाहरुख खान, जो गांगुली की तरफदारी करते हुए देश में यह कहकर अफ्रीका गए थे कि टीम के कप्तान गांगुली ही रहेंगे और परदेस जाकर कप्तानी ब्रेंडन मैक्कुलम के हाथों में सौंप दी?
* क्या एक टीम में चार कप्तान की थ्योरी का राग अलापने वाले कोच जॉन बुकानन, जिनकी कोचिंग में वैसी धार नहीं रही, जब 1999 के विश्व कप में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया को विश्व विजेता का ताज पहनाया था?
* या फिर वर्तमान कप्तान ब्रेंडन मैक्कुलम, जिनकी रणनीति मैदान के बाहर कारगर और मैदान के भीतर बुरी तरफ फ्लॉप हुई?

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कहने की जरूरत नहीं है कि यदि बुकानन अपने तेज दिमाग को अपने पास ही रखकर सौरव गांगुली को कप्तान बनाए रखते तो भारत का यह सबसे सफल कप्तान कोलकाता की ऐसी बुरी गत कतई नहीं होने देता। खेल में संघर्ष होना उसकी नियति है, लेकिन अधिक समझदारी भी कभी-कभी किस तरह नुकसानदायक साबित हो सकती है, ये कोलकाता नाइटराइडर्स की हालत देखकर आसानी से समझा सकता है।

  क्रिकेट में फिल्म के सीन की तरह कभी रीटेक नहीं होता। मैच जीते जाते हैं दिमाग और रणनीति से। यहाँ पर वही सफल होते हैं, जो किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हों। शाहरुख की नीयत पर शक तो तभी से हो गया था, जब उन्होंने सौरव गांगुली से कप्तानी छीन ली थी      
शाहरुख भाई, क्रिकेट में फिल्म के सीन की तरह कभी रीटेक नहीं होता। मैच जीते जाते हैं दिमाग और रणनीति से। यहाँ पर वही सफल होते हैं, जो किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हों और जिनमें जीत का जज्बा हो। आपकी नीयत पर शक तो तभी से हो गया था, जब ‍आपने सौरव गांगुली से कप्तानी छीनकर बुकानन के कहने पर ऐसे इनसान को सौंप दी थी, जिसे क्रिकेट में आए जुम्मा-जुम्मा चार दिन ही हुए थे। गांगुली से कप्तानी छीनकर बुकानन ने कोलकाता को जो जख्म दिया, वह कभी भर नहीं पाएगा।

कोलकाता टीम में गांगुली के अलावा कप्तान ब्रेंडन मैक्कुलम, ईशांत शर्मा, अजंता मेंडिस, क्रिस गेल, अजीत आगरकर, ब्रेड हॉज, डेविड हसी, मुशर्रफ मुर्तजा, लक्ष्मीरतन शुक्ला, अशोक डिंडा और वर्धमान साहा जैसे कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी थे, लेकिन ये सब मिलकर शाहरुख की झोली में केवल 1 मैच ही डाल सके।

पोर्ट एलिजाबेथ में रविवार को कोई 'काला जादू' नहीं चला। टॉस जीतकर कोलकाता ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला यह सोचकर लिया था कि एक मजबूत स्कोर खड़ा किया जा सके, लेकिन किंग्स इलेवन पंजाब की कसावट भरी गेंदबाजी और चुस्त क्षेत्ररक्षण ने कोलकाता को 3 विकेट पर 153 रन ही बनाने दिए।

'करो या मरो' के इस मैच में 154 रन का टारगेट देना मैच तोहफे में दे देने जैसा ही था। यदि ब्रेड हॉज 70 रन की नाबाद पारी नहीं खेलते तो नाइटराइडर्स की मुश्किलें और भी बढ़ जातीं। हालाँकि पंजाब को एक समय 42 गेंद पर 52, 28 गेंद पर 36, 18 गेंद पर 25, 12 गेंद पर 18, 8 गेंद पर 12 और 6 गेंद पर 7 रन बनाने की चुनौती मिली।

लंकाई बल्लेबाज महेला जयवर्धने जब 50 पर नाबाद क्रीज में 'सेट' हो चुके हों, तब दर्शक दीर्घा में प्रीति जिंटा का टीम फ्लेग लहराना लाजिमी ही था। हालाँकि जब मैच की अंतिम गेंद फेंकी जाना थी, तब अजीत आगरकर के सामने इरफान पठान थे और जीत से एक रन की दूरी बनी हुई थी। आगरकर ने अपने खेल जीवन का तमाम अनुभव इस आखिरी गेंद में झोंक डाला, लेकिन तब तक पठान का बल्ला गेंद को सीमा रेखा से स्पर्श करवा चुका था।

कोलकाता नाइटराइडर्स के खिलाड़ी झुके हुए कंधों के साथ बेहद निराश थे और सबसे ज्यादा हताशा बुकानन नाम के उस शख्स के चेहरे पर थी, जिसकी गलत नीतियों के कारण इतनी बदतर हालत हुई। टीम मालिक शाहरुख खान का बड़बोलापन फिल्मों में जरूर असरदार होता होगा लेकिन क्रिकेट के मैदान पर नहीं।

  जॉन बुकानन ने अपने जीवन में कभी बल्ला नहीं पकड़ा। सिर्फ फिजिकल ट्रेनिंग में डिप्लोमाधारी हैं और ऑस्ट्रेलिया ने उन्हें 1999 के विश्वकप वाली टीम का कोच बना दिया था। स्टीव वॉ की अगुआई वाली टीम ने विश्व कप जीता और तभी से बुकानन सुर्खियों में आ गए      
बुकानन के बारे में यह भी जानकारी ले लीजिए...। इन महाशय ने अपने जीवन में कभी बल्ला नहीं पकड़ा। सिर्फ फिजिकल ट्रेनिंग में डिप्लोमाधारी हैं और ऑस्ट्रेलिया ने उन्हें 1999 के विश्वकप वाली टीम का कोच बना दिया था। स्टीव वॉ की अगुआई वाली टीम ने विश्व कप जीता और तभी से बुकानन सुर्खियों में आ गए।

बाद में ऑस्ट्रेलिया ने उन्हें निचोड़कर बाहर का दरवाजा दिखा दिया, लेकिन शाहरुख को पता नहीं बुकानन में कौनसी खासियत दिखी, जिसकी वजह से उन्हें कोलकाता का कोच नियुक्त कर दिया, जो टीम के लिए पनौती साबित हुए। ‍जब भी टीवी कैमरा उनके चेहरे को फोकस करता उनका तनाव से भरा चेहरा इस बात की ओर संकेत करता था कि वे मैच की रणनीति की कसौटी पर नाकारा ही साबित हुए हैं। यह स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसी ग्रेग चैपल के समय भारतीय क्रिकेट टीम की थी और उनके रुख्सत होते ही ब्लू जर्सी वाली 'टीम इं‍‍‍डिया' पटरी पर आ गई। यानी ये मान लिया जाए कि ऑस्ट्रेलियाई कोच भारत के लिए मनहूस ही साबित हुए हैं?

आप ग्रेग चैपल और जॉन बुकानन में ज्यादा फर्क या दिमाग इसलिए न लगाएँ, क्योंकि ये दोनों ही ऑस्ट्रेलियाई नस्ल के हैं। आप सिवाय कोसने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकते... औशाहरुभललोगोकितनबहलाएँ, ि आपके जेहन में यह विचार जरूर तैर रहा होगा कि काश...मैं दोनों तरह के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 18 हजार 579 रन ठोंकने वाले सौरव चंडीदास गांगुली को ही कप्तान बनाए रखता, कम से कम ऐसी जलालत का सामना तो न करना पड़ता

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