महेंद्रसिंह धोनी के धुरंधरों ने दक्षिण अफ्रीका के न्यू वांडरर्स मैदान पर छिड़ी 'क्रिकेटिया जंग' में अपने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को चारों खाने चित करके भारत को पहला ट्वेंटी-20 विश्व चैंम्पियन बनाने का गौरव प्रदान किया।
25 जून 1983 में कपिल के नेतृत्व में लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान पर भारत ने विश्व कप जीतकर नया इतिहास रचा था और एक बार फिर भारत ने फटाफट क्रिकेट में तिरंगा फहराकर करोड़ों देशवासियों को जश्न मनाने का मौका दिया।
भारत की युवा शक्ति ने पाकिस्तानी जलजले को ठंडा करके पाँच रन की रोमांचक जीत के साथ ही भारतीयों को दीवाली से डेढ़ महीने पहले ही पटाखों का त्योहार मनाने का अवसर दे दिया।
इस जीत से भारत का विश्व कप में पाकिस्तान पर शत प्रतिशत जीत का रिकॉर्ड भी बरकरार रहा। इरफान पठान को 'मैन ऑफ द मैच' और शाहिद अफरीदी को 'प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट' का पुरस्कार दिया गया।
धोनी ने फिर से टॉस जीता और पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। धोनी और ट्रंप कार्ड युवराज सिंह नहीं चले, लेकिन गौतम गंभीर ने एक छोर संभाले रखकर 54 गेंद पर आठ चौकों और दो छक्कों की मदद से 75 रन बनाए। अंतिम क्षणों में रोहित शर्मा ने भी 30 रन की जिम्मेदारी भरी पारी खेली, जिसकी बदौलत भारत पाँच विकेट पर 157 रन बनाने में सफल रहा।
अब आरपी सिंह, इरफान पठान और जोगिंदर शर्मा की बारी थी, जिन्होंने शीर्ष और मध्यक्रम को तहस-नहस करके पाकिस्तानी ताबूत में आखिरी कील ठोंकी। पाकिस्तान को मिस्बाह उल हक (44) भी नहीं बचा पाए और उसकी पूरी टीम 19.3 ओवर में 152 रन पर धराशायी हो गई।
भारत की तरफ इरफान पठान ने 16 रन देकर 3, आरपी सिंह ने 26 रन देकर 3 और जोगिन्दर शर्मा ने 3.3 ओवर में 20 रन देकर 2 विकेट लिए। श्रीसंथ ने 4 ओवर में 44 रन लुटाए और सिर्फ एक विकेट प्राप्त किया, जबकि हरभजन ने 3 ओवर में 36 रन दिए।
पाकिस्तान को अंतिम ओवर में 13 रन चाहिए थे, जबकि भारत को एक विकेट। इस टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन करने वाले मिस्बाह पर पाकिस्तान का जिम्मा था, जबकि धोनी ने फिर से जोगिंदरसिंह पर भरोसा दिखाया।
जोगिंदर ने सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भी दबाव में अंतिम ओवर में दो विकेट लेकर भारत को जीत दिलाई थी। उन्होंने पहली गेंद वाइड की। कप्तान धोनी समझाने आए कि दबाव में नहीं, अपनी नेचुरल गेंदबाजी करो। अगली गेंद पर रन नहीं बना, लेकिन मिस्बाह ने दूसरी गेंद सीमा रेखा पार छह रन के लिए भेज दी।
पाकिस्तानी झूमने लग गए और भारतीयों के दिल धक-धक करने लगे। धोनी फिर जोगिंदर को समझाने गए। उन्होंने अगली फुल लेंग्थ गेंद फेंकी, जिसे मिस्बाह ने स्कूप करके फाइन लेग की तरफ खेलना चाहा, लेकिन वह हवा में उछलकर एस. श्रीसंथ के हाथों में पहुँच गई।
स्टेडियम में भारतीय तिरंगा लहराने लगा और धोनी की सेना जीत की खुशी में झूमने लगी। भारत को चैंम्पियन बनने पर 4 लाख 90 हजार डॉलर का पुरस्कार मिला। भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने भी युवराजसिंह को उनके शानदार प्रदर्शन पर 1 करोड़ रुपए का इनाम दिया।
भारत-पाकिस्तान के प्रत्येक मैच की तरह यह मैच भी काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा, जिसमें दोनों टीमों पर एक दूसरे के खिलाफ और वह भी फाइनल में खेलने का दबाव साफ झलक रहा था।
गंभीर और रोहित को छोड़कर भारत का कोई भी अन्य बल्लेबाज खुलकर नहीं खेल पाया, जबकि पाकिस्तान पर इतिहास के साथ-साथ अपेक्षाओं का अधिक बोझ दिखा।