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...तो साहसिक कप्तान कहलाते सहवाग

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नई दिल्ली (वार्ता) , गुरुवार, 8 मई 2008 (23:50 IST)
दो मैचों में दिल्ली डेयरडेविल्स के कप्तान वीरेन्द्र सहवाग बदल गए। फिरोजशाह कोटला मैदान पर अपने पिछले मैच में बेंगलोर ॉयल चैलेंजर्स के खिलाफ सहवाग ने आखिरी ओवर खुद फेंका था।

उस मैच में बेंगलोर टीम को जीत के लिए आखिरी ओवर में लगभग 30 रन चाहिए थे। सहवाग को मालूम था कि यह बेहद मुश्किल काम है, इसलिए उन्होंने आखिरी ओवर संभाल लिया। मैच के बाद उन्होंने कहा था कि वे किसी गेंदबाज को खतरे में नहीं डालना चाहते थे, इसलिए उन्होंने आखिरी ओवर किया।

गुरुवार को चेन्नई सुपर किंग्स के खिलाफ वही सहवाग बदल गए। चेन्नई टीम को आखिरी ओवर में जीत के लिए 15 रन चाहिए थे, लेकिन सहवाग ने इस बार गेंद पाकिस्तान के शोएब मलिक को थमा खुद को बचा लिया।

मलिक चेन्नई के बल्लेबाजों को 15 रन बनाने से नहीं रोक सके। इस मैच के बाद सहवाग की उस प्रतिद्धता पर सवाल उठा, जो उन्होंने यहाँ बेंगलोर टीम के खिलाफ पिछले मैच के बाद व्यक्त की थी।

सहवाग ने मैच के बाद कहा कि मुझे या मलिक को यह ओवर फेंकना था। काफी सोचने के बाद मैंने मलिक को गेंद थमा दी, लेकिन इस ओवर में हमारी सोच से ज्यादा रन चले गए। काश यह ओवर सहवाग ने फेंका होता, लेकिन इससे पहले अपने एक ओवर में एल्बी मोर्कल से 23 रन खाने के बाद सहवाग शायद खुद पर से आत्मविश्वास खो बैठे थे।

संभवतः इसी कारण वे आखिरी ओवर फेंकने की हिम्मत नहीं जुटा पाए, लेकिन कप्तान के तौर पर यदि सहवाग यह जिम्मेदारी उठाते तो वे एक साहसिक कप्तान कहलाते।

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