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आज के शुभ मुहूर्त

(अमावस्या तिथि)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण अमावस्या
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32 तक
  • जयंती/त्योहार/व्रत/मुहूर्त- वैशाख, सतुवाई अमावस्या
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
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हज का तरीका

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हमें फॉलो करें हज तरीका जिलहिज्जा
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हज में तीन बातें फर्ज हैं। अगर वे छूट जाएँ तो हज न होगा। हज का पूरा तरीका यह है कि पहले 'तवाफे वुकूफ' करते हैं। हजरे असवद (काला पत्थर) को चूमते हैं फिर सफा और मरवा दोनों पहाड़ियों के बीच दौड़ते हैं। 8 जिलहिज्जा को फज्र की नमाज पढ़कर मिना चल देते हैं। रात को मिना में रहते हैं। 9 जिलहिज्जा को गुस्ल करके अरफात के मैदान की तरफ रवाना होते हैं। वहाँ शाम तक ठहरते हैं।

अरफात का मंजर बड़ा ही अद्भुत होता है। दूर-दूर से आए अल्लाह के बंदों का ठाठें मारता हुआ समुद्र दूर तक नजर आता है। कोई गोरा, कोई काला, कोई छोटा, कोई बड़ा। सबका एक ही लिबास, सबकी जुबानों पर एक ही अल्लाह की बढ़ाई। सब एक ही मुहब्बत में सरमस्त नजर आते हैं।

न कोई गरीब, न अमीर, न छोटा, न बड़ा, न कोई राजा है, न प्रजा। सब एक ही अल्लाह के बंदे हैं। सब भाई-भाई हैं। सब एक के गुण गाते हैं और सबका एक ही पैगाम है और एक ही पुकार। सब तारीफें अल्लाह ही के लिए हैं। सारी नेमतें उसी की हैं। उसका कोई साक्षी नहीं। हम सब उसी के बंदे हैं और उसी की पुकार पर उसके दर पर हाजिर हैं।

अरफात में जौहर और अस्र की नमाज इकट्ठी पढ़ते हैं। सूरज डूबने के बाद मुज्दल्फा की तरफ रवाना हो जाते हैं। वहाँ मगरिब और ईशा की नमाज इकट्ठी पढ़ी जाती है। रात में मुज्दल्फा में ही ठहरते हैं।

10 जिल्हज्जा को फज्र की नमाज बाद मिना की ओर रवाना हो जाते हैं। दोपहर से पहले पहले मिना में पहुँचकर जमरा में सात बार कंकरियाँ फेंकते हैं। रमी (कंकरियाँ मारने) के बाद तल्बिया कहना बंद कर देते हैं। फिर कुरबानी करके सिर के बाल मुँडवाते या कतराते हैं और इहराम उतारकर अपने कपड़े पहन लेते हैं। मिना में 12 जिल्हज्जा तक रहते हैं।

जिल्हज्जा की 12 तारीख खत्म होते ही हज पूरा हो जाता है। हज से फारिग होकर प्यारे रसूल सल्ल. की पाक बस्ती की जियारत करते हैं। खाना-काबा की जियारत के बाद प्यारे रसूल सल्ल. की मस्जिद में नमाज पढ़ते हैं। आप सल्ल. पर दरूद और सलाम भेजते हैं और दीन-दुनिया की दौलत से मालामाल होकर वापस लौटते हैं।

एहराम- हज का खास सफेद लिबास पहनना, हज की निय्यत करना और हज की दुआ करना।

मीकात- वह इलाका, जहाँ पहुँचकर हज करने का इहराम बाँधते हैं।

तल्बियह- एहराम बाँधने के बाद से हज खत्म तक उठते-बैठते और हज के अरकान अदा करते वक्त जो दुआ पढ़ते हैं, उस को तल्बियह कहते हैं। तल्बियह यह है- 'ऐ अल्लाह! मैं तेरी पुकार पर तेरे दरबार में हाजिर हूँ। तेरा कोई साझी नहीं है। मैं तेरे दर पर हाजिर हूँ। बेशक, तमाम तारीफें और सारी नेअमतें तेरे लिए हैं। बादशाहत तेरे ही लिए है। तेरा कोई साझी नहीं।'

तहलील- ला इलाह इल्ललाहु मुहम्मर्दुरसूलुल्लाह पढ़ना।

तवाफ- काबा शरीफ के गिर्द चक्कर लगाना।

वुकूफ- अरफात और मुज्दल्फा नामी जगह पर कुछ देर ठहरना।

रमी- जमरा के पास कंकरियाँ मारने को रमी कहते हैं।

तहलीक- सिर के बाल मुँडवाना।

तकसीर- सिर के बाल कटवाना और छोटे कराना।

उमरा- एहराम बाँधकर काबा का तवाफ करना और सफा मरवा नामी पहाड़ियों के बीच दौड़ना/उमरा हज के दिनों के अलावा भी कर सकते हैं।

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