आईटी प्रतिभाओं के लिए शुभ संकेत
- डॉ. जयंतीलाल भंडारी
इन दिनों अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन सहित दुनिया के कई विकसित देशों की सरकारों द्वारा आउटसोर्सिंग को हतोत्साहित करने के कदम उठाए जा रहे हैं। कई विकसित देशों द्वारा विदेशों से आउटसोर्सिंग करने वाली कंपनियों को टैक्स रियायतों का लाभ नहीं देने की नीति का ऐलान किया गया है। विकसित देशों के ऐसे निर्णय से भारत जैसे देशों के आउटसोर्सिंग से संबद्ध लाखों लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका है। इस बीच जून 2010 में आईटी और आउटसोर्सिंग के बढ़ते महत्व को रेखांकित करने वाली दो महत्वपूर्ण वैश्विक रिपोर्टें भारत जैसे आउटसोर्सिंग करने वाले देशों के लिए शुभ संकेत लेकर आई हैं। फॉरेस्टर रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010 में विकसित देशों के प्रतिबंधों के बावजूद आईटी और आउटसोर्सिंग पर खर्च में 9.3 फीसद का इजाफा होगा। इस क्षेत्र पर वर्ष 2010 में यह खर्च बढ़कर 1534 अरब डॉलर पर पहुँच जाएगा। इसी तरह जानी-मानी रिसर्च फर्म गार्टनर ने कहा है कि 2010 में आईटी एवं आउटसोर्सिंग में ग्लोबल निवेश 5.3 फीसद की दर से बढ़ेगा। कहा गया है कि अमेरिका में हेल्थकेयर बिल पास होने के बाद भारतीय आईटी कंपनियों के पास कारोबार के नए मौके पैदा होंगे। इन दोनों रिपोर्टों में कुछ तथ्य सामने आए हैं। अब कम्प्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों में विकसित देशों के लोगों का खर्च बढ़ेगा। ऐसा होने पर निश्चित तौर पर आउटसोर्सिंग कारोबार में बढ़ोतरी होगी।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि विकसित देशों की सरकारों के न चाहते हुए भी आउटसोर्सिंग बढ़ता जा रहा है। सरल भाषा में आउटसोर्सिंग का मतलब है कोई कार्य व्यापारिक संस्थान के परिसर के बाहर देश या विदेश में कहीं भी उपयोगी एवं मितव्ययी रूप से संपन्न कराना। ऐसे कार्य आईटी के बढ़ते प्रभाव के चलते संभव हो सका है। यह माना जा रहा है कि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा सहित दुनिया के कई देश आईटी, फाइनेंस, मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन, इंश्योरेंस, बैंकिंग, एजुकेशन आदि ऐसे कई क्षेत्रों में भारी मात्रा में बचत राशि हासिल करने में सिर्फ इसलिए कामयाब हैं, क्योंकि वे अपनी प्रक्रियाओं का बड़ा हिस्सा आउटसोर्सिंग के लिए एजेंसियों को सौंप रहे हैं। दरअसल, पश्चिमी और योरपीय देशों में श्रम महँगा है, वही कार्य भारत जैसे देशों में कराने पर बेहद सस्ता पड़ता है। भारत में सॉफ्टवेयर कंपनियों की राष्ट्रीय संस्था नास्कॉम की नवीनतम रिपोर्ट का कहना है कि भारत में आउटसोर्सिंग पर खतरे नहीं हैं। दुनिया का कोई भी देश अपने उद्योग-व्यवसाय को किफायती रूप से चलाने के लिए भारत की आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री को नजरअंदाज नहीं कर सकता है।
भारत में बड़े पैमाने पर काम कर रहे बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) के साथ-साथ अब नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिंग(केपीओ) बढ़ता जा रहा है। हमें सूचना-प्रौद्योगिकी की स्तरीय शिक्षा देने के लिए समुचित निवेश करना होगा। निश्चित रूप से अच्छी अँगरेजी, बेहतर उच्चारण, संवाद दक्षता, व्यापक कम्प्यूटर ज्ञान और उच्च शैक्षणिक गुणवत्ता जैसी विशेषताओं से सुसज्जित होकर देश और दुनिया में भारतीय प्रतिभाएँ दबदबा बनाए रख सकेंगी। हमें सॉफ्टवेयर निर्यात के लिए अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम करके अन्य देशों में भी कदम बढ़ाना होंगे। आउटसोर्सिंग के रास्ते में आने वाली बाधाओं को हटाने के साथ हमें इससे जुड़ी कई आवश्यकताओं पर भी ध्यान देना होगा। हमें आईटी क्षेत्र में बढ़त बनाए रखने के लिए एयरपोर्ट, सड़क और बिजली जैसे बुनियादी क्षेत्र में तेजी से विकास करना होगा। आईटी उन्नयन के ऐसे प्रयासों से ही दुनिया भारतीय आईटी प्रतिभाओं का लोहा मानती रहेगी तथा आईटी प्रतिभाएँ देश की अर्थव्यवस्था की ताकत बनी रहेंगी।