चट प्रकाशन फट प्रतिक्रिया- 3
इंटरनेट के अस्तित्व में आते ही संवाद के सबसे तेज माध्यमों में से एक ई-मेल का जन्म हुआ। इलेक्ट्रॉनिक-मेल या ई-मेल डिजिटल मैसेज के आदान-प्रदान को कहते हैं। दो मेल एड्रेस के बीच इस तरह के संदेशों का आदान-प्रदान किया जाता है। यह माध्यम संस्थागत संवाद के लिए बहुत लोकप्रिय और विश्वसनीय माना गया है तो व्यक्तिगत तौर पर पारंपरिक रूप से प्रयुक्त चिट्ठियों का तेज विकल्प है। इसमें हास्य है, गंभीर विचार है, जीवन के मार्गदर्शक संदेश हैं, हल्की-फुल्की बातें हैं तो कई बार रोजमर्रा से जुड़ी सूचना भी...। ई-मेल्स में फोटो और पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के सहारे बहुत खूबसूरत संदेश भी दिए जाते हैं। प्रेरक कहानियों के तो यहाँ भंडार मिल जाते हैं। ई-मेल में एक तरफ प्रेरक कहानियाँ हैं, तो दूसरी तरफ कालजयी कलाकारों, रचनाकारों के कहे, लिखे विचार भी... इसमें कई बार फोटो और पीपीपी (पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन) के माध्यम से अनोखी रचनात्मकता भी देखने को मिलती है। हाँ, आप अपनी भावनाएँ अपने दोस्तों, परिचितों और रिश्तेदारों को भेजना चाहें तो वह सुविधा तो है ही। ई-मेल के माध्यम से अभिव्यक्ति का एक नायाब उदाहरण है रज़ा अल्सानिया की किताब 'गर्ल्स ऑफ रियाद'। यह किताब ई-मेल पैटर्न पर ही लिखी गई थी। सऊदी अरब की लड़कियों के जीवन पर ई-मेल की शक्ल में लिखी यह किताब रज़ा ने सऊदी अरब की साप्ताहिक पत्रिका को भेजी थी। 2005
में अरबी में इसके प्रकाशन के तुरंत बाद विवादित कंटैंट के चलते इसे प्रतिबंधित कर दिया गया। ब्लैक मार्केट में बिकी इसकी कॉपियों ने इसे मध्य-पूर्व में बेस्टसेलर बना दिया और जनवरी 2008 में पैंग्विन ने इसका अँगरेजी संस्करण प्रकाशित किया। अब यह किताब अँगरेजी में सऊदी अरब के स्टोर्स में आराम से बिक रही है।
ब्लॉग के माध्यम से इस दौर में सबसे ज्यादा लिखा, पढ़ा और कहा जा रहा है। ब्लॉगिंग का यह सिलसिला यूँ तो 1994 से चल रहा था, लेकिन सार्वजनिक तौर पर 1999 में ब्लॉगिंग लोकप्रिय होना शुरू हुआ। ब्लॉग एक तरह की वेबसाइट है, जिसे आम तौर पर कोई एक व्यक्ति मैंटेन करता है। अब ग्रुप ब्लॉगिंग का दौर भी शुरू हो गया है। इस जगह पर खूब लिखा और कहा जा रहा है, यहाँ का लेखन साहित्य और पत्रकारिता की पारंपरिक विधाओं में भी है और एक नई विधा का ईजाद भी है। यहाँ पर एक तरफ तो पारंपरिक विधा का संरक्षण किया जा रहा है और नए का सृजन भी। इस तरह से हम शब्दों के एक नए दौर में प्रवेश कर चुके हैं। क्यों न हो जैसा कि अज्ञेय कहते हैं : शब्द माना व्यर्थ हैं, इसीलिए क्योंकि शब्दातीत अर्थ है। तो सिमटे-सिकुड़े शब्दों का संसार किताबों से चलकर कंप्यूटर और मोबाइल तक आ पहुँचा है। अब यहाँ तक आया है तो बहुत कुछ जुड़ा है और बहुत कुछ छूट भी गया है। अभी इसके उपयोगी होने और न होने की तफ्तीश बाकी है। अभी इन्हें सेंसर किया जाए या ना किया जाए इसका निर्णय होना बाकी है। हाँ अल-जवाहिरी के फेसबुक पर रजिस्ट्रेशन ने एसएनएस पर सेंसर का मामला तो विचार के लिए खोल ही दिया है।