आईटी इंडस्ट्री के सामने चुनौतियाँ
- धीरज कनोजिया
अभी कुछ समय से यह बहस चल पड़ी है कि देश में सूचना तकनीक की गुणवत्ता विकसित देशों की तुलना में काफी कम है। हम अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, रूस और चीन जैसे विकसित देशों की तुलना में इतने सक्षम नहीं हैं कि उनसे आगे चल सके। कहने का मतलब है कि देश में अभी सूचना तकनीक से जुड़ी जितनी भी कंपनियाँ या फिर विशेषज्ञ हैं, वे विदेशियों द्वारा बनाई तकनीक और सॉफ्टवेयर के दम पर ही आगे बढ़ रही हैं। यानी विदेशी सॉफ्टवेयर इसका ईजाद कर लेते हैं और हम उसको फटाफट उसका इस्तेमाल करने लगते हैं। सूचना और दूरसंचार से जुड़ी ज्यादातर कंपनियाँ अभी चीन के निर्मित सूचना उत्पाद का इस्तेमाल कर रही है। सरकार उन्हें सुरक्षा की दृष्टि से इन उकपरणों को छोड़ने के लिए कह रही है, लेकिन सस्ता और टिकाऊ होने के कारण भारतीय कंपनियों के पास इसका कोई विकल्प नहीं है। उनके पास न ही कोई तकनीक है या न ही कोई अन्य उपकरण, जिसको वे वैकल्पिक तौर पर अपना सके। जानकार कहते हैं कि अगर चीन के उपकरण भी सरकार के दबाव चलते छोड़ भी दिए गए तब भी कंपनियाँ अपनी देशी तक-नीक ईजाद करने की बजाय किसी अन्य देशों की तकनीक और उपकरण पर ही निर्भर रहेगी।दिलचस्प बात है कि आईटी इंजीनियरों की सबसे ज्यादा तादाद को लेकर भारत दूसरे नंबर में आता है। अमेरिका के बाद भारत में ही सबसे ज्यादा आईटी इंजीनियर हैं। इसके बावजूद भारतीय इंजीनियर अपनी कोई तकनीक या सॉफ्टवेयर ईजाद करने में नाकाम रहे हैं। भारतीय इंजीनियर भी अंतरराष्ट्रीय तकनीक और उत्पादों पर ही निर्भर होकर अपना काम चला रहे हैं। इतना ही नहीं, विदेशी उत्पादों पर निर्भरता के चक्कर में ही इंटरनेट पर अभी तक हिन्दी का इस्तेमाल इतना आसान नहीं है।
अभी भी इंटरनेट पर देवनागरी लिपि लिखना लोहे के चने चबाने जैसा है। अक्षर (फोंट) की समस्या सबसे बड़ी है। हिन्दी भाषा तो यूनिकोड और इनकोडिंग के चक्कर में फँसी हुई नजर आती है। विभिन्न तरह के फोंट ने और परेशानी बढ़ा रखी है। हिन्दी भाषा में सर्च करना भी इतना आसान नहीं है। गिने चुने शब्दों के साथ अपनी खोज पूरी करना पड़ती है। सूचना तकनीक से जुड़े जानकार तो यहाँ तक बताते हैं कि अँगरेजी की तुलना में इंटरनेट और मोबाइल फोन पर हिन्दी का इस्तेमाल काफी महँगा है। जानकारों के मुताबिक हिन्दी भाषा में पसीने बहाकर लिखा गया मोबाइल फोन पर एक एसएमएस अँगरेजी भाषा के एक एसएमएस की तुलना में काफी महँगा होता है। जानकार कहते हैं कि अँगरेजी में लिखा एक एसएमएस जहाँ अधिकतम 50 पैसे से एक रुपया बैठता है, वही हिन्दी भाषा में लिखा एक एसएमएस 3 से 4 रुपए में बैठता है। इन चुनौतियों को पार किए बिना गाँवों में सूचना तकनीक को घर-घर पहुँचाना असंभव-सा लगता है। सरकार द्वारा करोड़ों रुपए का ई-गवर्नेंस कार्यक्रम इन समस्याओं को हल किए बिना सफल नहीं हो सकता। हालाँकि इन चुनौतियों के बावजूद देश में सूचना तकनीक भविष्य का बेहतर उज्ज्वल लगता है। पिछले दो दशक से लेकर अभी तक की मंदी तक देखे तो इस क्षेत्र में भारत अव्वल माना जाता है। सूचना तकनीक में रोजगार और निवेश की काफी संभावनाएँ मानी जा रही हैं, वहीं दूरसंचार क्षेत्र में भी देश ने कई बड़े देशों को चौंका दिया है। देश में तीसरी पीढ़ी की मोबाइल सेवा थ्री जी के आने के बाद आम आदमी का जीवन बदल सकता है। और तो और, मोबाइल कंपनियों ने इस सेवा को आम आदमी तक पहुँचाने के लिए 4 हजार से 5 हजार रुपए तक के मोबाइल हैंडसेट बाजार में उतारने की तैयारी कर ली है। थ्रीजी मोबाइल सेवा के तहत ग्राहक अपने मोबाइल हैंडसेट में एक दूसरे का चेहरा देखकर बात कर सकते हैं। वह फिल्म, क्रिकेट मैच और वीडियो गेम खेलने का मजा उठा सकते हैं। बाजार अध्ययन करने वाली संस्था गार्टनर के ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक देश का सूचना तकनीक सेवा बाजार वर्ष 2009 में 11 फीसद की रफ्तार से बढ़ रहा है। यह रफ्तार 2013 तक बने रहने की उम्मीद है।