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क्‍या आपका मोबाइल मनाता है संडे?

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आज मोबाइल हमारे लाइफ स्टाइल की धड़कन बन गई है। अगर मोबाइल ऑफ हुआ तो लगता है कि जैसे हम अपनी सक्रिय जीवन दुनिया से कट गए हैं। इसलिए आज मोबाइल लोगों की दूसरी साँस बन चुका है। इसमें कोई दो राय नहीं कि मोबाइल ने बहुत-सी चीजें आसान की है।

संपर्कों को बनाए रखने में इसने एक ऐसी अदृश्य डोर का काम किया है जो हममें से ज्यादातर को उन लोगों के साथ भी जोड़े रखती है जिनके साथ शायद हम भी जुड़े रह सकें, अगर यह डोर न हो, अब बेबो को ही ले। सुबह जगने से लेकर देर रात तक वह सैकड़ों लोगों से जुड़ी रहती है। अपने स्कूल के जमाने के दोस्तों से, कॉलेज के मौजूदा दोस्तों में, दफ्तर से मम्मी-पापा से और उससे भी जिससे जुड़ने को शायद उसे कई जगह छिपाना पड़ता है। उसके लिए मोबाइल के बिना शायद अब जीना संभव ही न हो।

अगर किसी दिन मोबाइल घर छूट जाए तो पूरे दिन कोई कमी भी महसूस होती रहेगी। लेकिन यह अकेले बेबो का किस्सा नहीं है। आज हर उस व्यक्ति की जिंदगी के लिए मोबाइल जीवन की धड़कन बन चुका है जो बाहर की दुनिया से संपर्क में रहते हैं।

क्या इसका मतलब यह समझा जाए कि आज की लाइफ स्टाइल मोबाइल की गुलाम हो चुकी है? थोड़ी कतरब्योंत के साथ कह सकते हैं कि हाँ, ऐसा ही है। लेकिन यह न तो बेवकूफीवश हो रहा है और न ही किसी अज्ञानता के चलते। सच्चाई यह है कि मोबाइल हमारी लाइफ स्टाइल ही नहीं, हमारे कामकाज का बुनियादी उपकरण बन चुका है।

इसके बिना हम अधूरे हैं। इसके बिना हम तकनीकी विहीन है। इसके बिना हममें कोई रफ्तार नहीं बचती। हमारी कामनाओं में जिंदगी इस पर पूरी तरह से निर्भर हो चुकी है। लेकिन हर जरूरत, हर फायदे की भी एक सीमा होती है। उसके आगे जरूरत भी और फायदा भी दोनों ही सेहत पर, शरीर पर बोझ बनने लगते हैं।

मनोविद हर समय फोन से कनेक्ट रहने से होने वाली कई तरह की मानसिक परेशानियों का जिक्र करने लगे हैं। व्यस्त जिंदगी जीने वालों को यह सुझाव है कि जैसे सप्ताह में एक दिन आपकी छुट्टी होती है, उसी तरह आप भी अपने मोबाइल को हफ्ते में एक दिन छुट्टी दें।
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मोबाइल की वजह से हमारी रातों की नींद और छुट्टियों का चैन गायब हो चुका है। मल्टीनेशनल कंपनियों में खास हिदायत होती है कि हर समय मोबाइल पर उपलब्ध रहें। कभी अपना मोबाइल स्विच ऑफ न रखें। यहाँ तक कि कई बार इस हिदायत का आप पालन कर रहे हैं या नहीं, इसकी जाँच भी होती है। सीनियर के टच में रहने का मानसिक दबाव छुट्टी के बाद भी हमें काम के बोझ से लादे रखता है।

मनोविद हर समय फोन से कनेक्ट रहने से होने वाली कई तरह की मानसिक परेशानियों का जिक्र करने लगे हैं। अब व्यस्त जिंदगी जीने वालों को यह सुझाव दे रहे हैं कि जिस तरह सप्ताह में कम से कम एक दिन आपकी छुट्टी होती है, उसी तरह आप भी अपने मोबाइल को हफ्ते में एक दिन छुट्टी दें।

अमेरिका और योरप में बड़ी तादाद में लोग इस पर अमल भी करने लगे हैं। ये लोग संडे के दिन अपने मोबाइल का स्विच ऑफ रखते हैं। यही नहीं, ये लोग अपने जानने वालों और कंपनी के लोगों से स्पष्ट रूप से कह देते हैं कि उन्हें संडे को बिल्कुल फोन किया जाए।

हमारे यहाँ हालाँकि अभी ऐसा नहीं है, लेकिन जिस तेजी से भागमभाग और तनावभरी यहाँ की भी जिंदगी होती जा रही है, उसको देखते हुए यहाँ भी शीघ्र ही इस तरह का चलन शुरू होगा। अगर नहीं होगा तो हमें फोन के दबाव से कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। अगर आपके काम की स्थितियाँ भी व्यस्तता और तनाव से भरी हों तो आप भी अपने फोन का संडे फिक्स कर दें।

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