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यूनि‍कोड: तकनीक और भाषा का सेतु

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देश-विदेश के लोगों के बीच की जिस दूरी को इंटरनेट ने कम किया था, विभिन्न भाषाओं की खाई ने उसे फिर से बढ़ा दिया। दुनियाभर की अलग-अलग भाषाएँ, अलग-अलग फॉन्‍ट और इनके लिए अलग-अलग सॉफ्टवेयर यानी ज्ञान व सूचना के महासागर के सामने होने के बाद भी 'निरक्षरता'।

अब कंप्यूटर पूरी तरह से 'स्वतंत्र' व 'स्वाधीन' हो गए हैं। यूनिकोड ने इंटरनेट को भी सही मायने में एक नई दिशा व गति दी है। अगर कोई वेबसाइट यूनिकोड पर आधारित है तो उसे संसार में कहीं भी आसानी से खोला जा सकता है और उसके 'टेक्स्ट' को अपने कंप्यूटर में मनचाही फाइल के रूप में 'सेव' और 'एडिट' भी किया जा सकता है।

यह आजकल प्रचलित लगभग सभी तरह के सॉफ्टवेयर पर काम करने की सुविधा उपलब्ध कराता है। वेब जगत के लिए तो यह बहुत फायदेमंद है। कंप्यूटर (विशेष रूप से सर्वर) को विभिन्न प्रकार की 'प्रोग्रामिंग लैंग्वेज' और सॉफ्टवेयर के बीच तालमेल बैठाना होता है। ऐसे में यूनिकोड से काम बहुत आसान हो जाता है।

यूनिकोड ने हिंदी में ईमेल, चैटिंग, सर्चिंग, सर्फिंग आदि को भी आसान बना दिया है। गूगल, विकीपीडिया, एमएसएन आदि इसके उदाहरण हैं। वैदिक संस्कृत, मलयालम, कन्नड़, तमिल, बंगाली, गुरमुखी, गुजराती, उड़ीया आदि का भी इसके जरिए इंटरनेट के माध्यम से विश्वपटल तक पहुँचना संभव हो सका है। इससे भारतीय भाषाओं का दायरा और ज्यादा बढ़ेगा।

भारत सरकार ने भी विभिन्न फॉन्‍ट पर होने वाली दिक्कतों से बचने के लिए यूनिकोड प्रणाली को अपनाया हुआ है। दुनिया के ज्यादातर कंप्यूटर एमएस विंडोज पर चल रहे हैं और विंडोज-2000, विंडोज एक्सपी, विंडोज विस्टा तथा विंडोज-7 में तो यूनिकोड फॉन्‍ट (मंगल) पहले से ही होता है। इसे अलग से डालने की जरूरत नहीं होती, बस इस व्यवस्था को 'एक्टिव' करना पड़ता है।

लाइनक्स व मैकिन्टोश भी इस राह पर हैं। इसका एक बड़ा फायदा यह है कि इस फॉन्‍ट पर बनी 'फाइल' को विश्व में कहीं भी आराम से खोला, पढ़ा व उस पर काम किया जा सकता है। पहले इसके लिए अलग से फॉन्‍ट भी भेजने पड़ते थे और कई ऐसे फॉन्‍ट भी होते हैं जो किसी खास तरह के सॉफ्टवेयर पर ही काम कर पाते हैं। इसकी मदद से आप अपने कंप्यूटर की तारीख, समय, फाइलों के नाम वगैरह भी हिन्दी में रख सकते हैं।

आगे चलकर इनसे दिक्कत यह आने लगी कि किसी एक फॉन्‍ट पद्धति पर तैयार की गई 'फाइल' दूसरे फॉन्‍ट पर खुलती ही नहीं थी। इससे हिन्दी या दूसरी प्रादेशिक भाषाओं पर काम करना बहुत मुश्किल होने लगा था। इसके अलावा इंटरनेट, ई-मेल और वेबसाइट के संबंध में भी इन विभिन्नताओं के कारण कई तरह की अड़चने आने लगी थी। इन सबका केवल एक ही हल था 'वैश्विक मानकीकरण' यानी 'यूनिकोड'। यूनिकोड ने कंप्यूटर को नए आयाम प्रदान किए हैं।

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