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आईटी में सुविधाओं का नया दौर - क्लाउड कंप्यूटिंग

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जनमेजय सिंह सिकरवार

पिछले कुछ वर्षों में सूचना-प्रौद्योगिकी में एक नए शब्द का उदय हुआ है, क्लाउड। और इसके साथ ही आए हैं कुछ ऐसे परिवर्तन, जो कंप्यूटिंग को सस्ता और तेज़ बनाने में मदद कर रहे हैं। यूँ तो क्लाउड कंप्यूटिंग से व्यक्तियों व संस्थानों को बहुत सी सुविधाएँ मिलने लगी हैं पर भारत के जन-सामान्य के लिए यह अभी भी बहुत परिचित शब्द नहीं है। तो आइए हम आपको क्लाउड व उससे जुड़े नफ़े-नुकसान से परिचित कराते हैं।
 
क्या है क्लाउड?
क्लाउड शब्द एक रूपक के तौर पर इस्तेमाल होता है। जैसे डाउनलोड किसी नेटवर्क या इंटरनेट से किसी कंप्यूटर या मोबाइल में डेटा ट्रांस्फ़र करने और अपलोड शब्द छोटे से बड़े स्तर के उपकरण में (या कंप्यूटर अथवा मोबाइल से नेटवर्क या इंटरनेट पर) डेटा हस्तांतरण के लिए रूपक के तौर पर इस्तेमाल होते हैं। क्लाउड को आप केवल एक नेटवर्क मान सकते हैं। और क्लाउड कंप्यूटिंग का अर्थ इतना ही है कि कंप्यूटिंग या डेटा स्टोरेज का काम नेटवर्क पर किया जाएगा। लेकिन एक छोटी सी अवधारणा होने के बावजूद इसके परिणाम पूरी दुनिया के लिए दूरगामी सिद्ध हो रहे हैं।
क्लाउड के लाभ एक नजर में
- प्रत्येक कंप्यूटिंग डिवाइस पर स्टोरेज आवश्यक नहीं। ज़रूरत पड़ने पर डेटा डाउनलोड करके उस पर काम करने और फिर सहेज देने की सुविधा
- कंप्यूटिंग शक्ति की आवश्यकता नहीं
- हर समय उपलब्धता
- महंगे सॉफ़्टवेयर खरीदने की आवश्यकता नहीं
- मेंटेनेंस फ़्री
- कंपनियों व व्यक्तिगत कार्य के लिए धन की बचत
 
क्लाउड का उद्‍गम : यूँ तो क्लाउड हमारी दुनिया में तभी से विद्यमान है जब से वेब आधारित (वेब बेस्ड) ई-मेल का चलन शुरू हुआ। ई-मेल के सर्वर आपके मेल खाते की सारी जानकारी अपने नेटवर्क पर रखते थे और इसे कभी भी और कहीं से भी एक्सेस किया जा सकता था, लेकिन तब क्लाउड की संपूर्ण अवधारणा सामने नहीं आई थी। इसके बाद एक दौर वो था जब बहुत सारी कंपनियाँ सामान्य उपयोगकर्ताओं को अपने सर्वर पर कुछ मुफ़्त स्टोरेज स्पेस या ऐसा स्थान उपलब्ध कराती थीं जिस पर आप अपना कोई भी डेटा रख सकते थे। सामान्यत: ये डेटा किसी यूज़र आईडी और पासवर्ड के संरक्षण में होता था और यह पहल उन्हीं कंपनियों ने की थी जो मुफ़्त ई-मेल सेवा उपलब्ध करवा रही थीं।
 
इनमें माइक्रोसॉफ़्ट के 'डॉटनेट पासपोर्ट' या हमारे स्वदेशी इंडियाटाइम्स के 'ब्रीफ़केस' जैसे कई नाम थे। उस समय तक ये सभी केवल अपनी साइट पर उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ाने के लिए मुफ़्त सेवाएँ ही देते थे। उस दौरान, रीडिफ़ डॉट कॉम जैसी बहुत सी कंपनियों ने उपयोगकर्ताओं को अपने सर्वर पर मुफ़्त वेबसाइट होस्टिंग की सुविधा भी दी। यदि उपयोगकर्ता व्यक्तिगत साइट बना रहा है, और साइट में कोई डायनेमिक कंटेंट नहीं है, तो ये साइट बिल्कुल मुफ़्त होती थीं। यदि डायनेमिक कंटेंट के साथ ही डेटा अधिक है, तो नाममात्र के शुल्क में आपका काम हो जाता था। रीडिफ़ ने इस सुविधा के साथ सस्ती दरों पर अपनी साइट के नाम के डोमेन वाला ई-मेल समाधान भी दिया था, जिसका अर्थ था कि कोई छोटी कंपनी अपना पूरा कारोबार बहुत कम ख़र्च में ऑनलाइन चला सकती थी।
 
क्लाउड कंप्यूटिंग की बदलती दुनिया, उसके खतरे और समाधान... पढ़ें अगले पेज पर...

कैसे बदल रही है दुनिया क्लाउड कंप्यूटिंग के जरिये?
धीरे-धीरे मुफ़्त सेवाएँ देने वाली कंपनियों में से सूचना-प्रौद्योगिकी कंपनियों ने इस मुफ़्त वाले मॉडल से एक नया मॉडल ईजाद किया। कंपनियों ने सूचना-प्रौद्योगिकी के उपयोगकर्ताओं को छोटे स्थान की जगह अपना पूरा स्टोरेज क्लाउड, यानि उनके ऑनलाइन सर्वर्स पर रखने की सुविधा दे दी। इस सुविधा ने दुनिया में कंप्यूटर हार्डवेयर में परिवर्तनों की शुरुआत की। इसके साथ ही आए अल्ट्राबुक नामक लैपटॉप, जिनमें हार्डडिस्क नहीं होती थी।
 
ये अल्ट्राबुक्स अपना डेटा ऑनलाइन सहेजती थीं और इनमें सीडी या डीवीडी राइटर की भी आवश्यकता नहीं थी क्योंकि सारा डेटा ऑनलाइन रखकर कभी भी, कहीं से भी एक्सेस किया जा सकता था। हार्डडिस्क व डीवीडी प्लेयर/राइटर की आवश्यकता न रहने से कंप्यूटरों की कीमत में कमी आई। क्योंकि स्टोरेज ऑनलाइन था, अत: अल्ट्राबुक्स के ‍लिए आवश्यक प्रोसेसिंग पावर में भी कमी आई और कम बिजली का उपयोग करने वाले प्रोसेसर आए जिससे बैटरी लाइफ़ बढ़ी। इसके अलावा, क्लाउड पर सभी प्रकार का सॉफ़्टवेयर भी उपलब्ध था, जिससे उपयोगकर्ता को अपनी आवश्यकता का सारा सॉफ़्टवेयर भी आसानी से व बिना पैसा दिए मिलने लगा। यह तो हुआ सॉफ़्टवेयर/हार्डवेयर में बदलाव और व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं को दी जाने वाली सुविधा।
 
लेकिन क्लाउड का सबसे बड़ा उपयोग उन कंपनियों के लिए है जो ऑनलाइन अपना काम कर रही हैं और इसके लिए अलग से अपना आईटी विभाग नहीं चला सकतीं। जब सूचना-प्रौद्योगिकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों ने यह समझ लिया कि बहुत सी कंपनियाँ आईटी विभाग नहीं चला सकतीं, तो उन्होंने इसका हल सुझाया। जैसा कि हमने शुरू में कहा, क्लाउड केवल स्टोरेज नहीं, कंप्यूटिंग की सुविधा भी देता है। माइक्रोसॉफ़्ट जैसी कंपनियाँ अब विंडोज़ अज़्योरे जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स के माध्यम से क्लाउड कंप्यूटिंग की एक नई दुनिया गढ़ रही हैं। रीडिफ़ ने कम कीमतों में छोटी कंपनियों को ऑनलाइन आने में मदद की। उसी तर्ज पर अब माइक्रोसॉफ़्ट छोटी से लेकर बड़ी कंपनियों को स्टोरेज से लेकर प्रोसेसिंग पावर और दुनिया भर में सर्वर, यानि वो सभी सुविधाएँ दे रही है जिसके लिए इन कंपनियों को एक पूरा अंतरराष्ट्रीय आईटी विभाग रखना पड़ता।
 
उदाहरण के लिए यदि आप एक छोटी सॉफ़्टवेयर कंपनी चलाते हैं जिसका एक कार्यालय भारत में और दूसरा अमेरिका या किसी भी और देश में है। यदि आपकी कंपनी कोई सॉफ़्टवेयर बनाती है जिसे कई प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम व एनवायरमेंट पर टेस्ट करना हो, तो आप माइक्रोसॉफ़्ट अज़्योरे की क्लाउड सेवा पर एक खाता खोलकर अपनी कंपनी के सभी टेस्टर्स को क्लाउड पर उपलब्ध वर्चुअल मशीन्स पर हर प्रकार के एनवायरमेंट में टेस्टिंग की सुविधा दे सकते हैं। लाभ यह होगा कि आपको कोई कंप्यूटर खरीदना नहीं है, ना ही किसी सॉफ़्टवेयर या स्टोरेज की समस्या है और न कोई और तकनीकी अड़चन। यह सब माइक्रोसॉफ़्ट करेगी और आपके सॉफ़्टवेयर इंजीनियर को सीधे उसकी डेस्क पर हर प्रकार का एनवायरमेंट क्लाउड के जरिये मिल जाएगा। यह मॉडल छोटी से लेकर बहुत बड़ी, सभी कंपनियों के लिए उपलब्ध है।
 
क्लाउड के फ़ायदों का एक और उदाहरण है कोई छोटी सी कंपनी, जो ऑनलाइन अपना व्यवसाय कर रही हो। कंपनी अपनी वेबसाइट क्लाउड पर होस्ट कर सकती है और क्लाउड का प्रबंधन करने वाली कंपनी उसके लिए साइट पर आने वाले सारे ट्रैफ़िक के अनुसार सर्वर का प्रबंधन करती रहेगी। यदि आपकी साइट पर किसी विशेष दिन या वक्त ट्रैफ़िक बहुत बढ़ या घट जाता है, तो इसका विश्लेषण क्लाउड में दर्ज होता जाएगा और उसके आधार पर क्लाउड की प्रबंधक कंपनी उस दिन या समय पर सर्वर बढ़ा या घटा देगी। इसके एवज में आप उसे पे-पर-यूज़ यानि जितना उपयोग किया हो उतने सर्वर, कंप्यूटिंग पावर या स्टोरेज का किराया देंगे, जबकि आपको सर्वश्रेष्ठ दर्जे के सर्वर, तेज़ गति का स्टोरेज व अनन्त कंप्यूटिंग पावर मिलता रहेगा। साथ ही, आपको अपना काम करने के लिए आवश्यक सभी सॉफ़्टवेयर भी उन सर्वर्स पर पहले से मौजूद होंगे, व आप इच्छानुसार उनका उपयोग कर सकेंगे।
 
 
क्या हैं ख़तरे? : कई बार अख़बारों की सुर्खियाँ बने हैकिंग के मामले क्लाउड पर स्टोरेज के मामले में लोगों को कदम पीछे खींचने पर मजबूर करते हैं। ऑनलाइन दुनिया का यह शाश्वत सत्य है कि जो भी डेटा इंटरनेट के जरिये संप्रेषित होता है या इंटरनेट से जुड़े किसी कंप्यूटर या सर्वर पर रखा होता है, उसकी सुरक्षा संदिग्ध होती है। क्लाउड के शुरुआती दिनों से ही डेटा की सुरक्षा का मुद्दा इसे अपनाए जाने में रोड़ा बना हुआ है। इसके अतिरिक्त, भारत जैसे देशों में, जहाँ इंटरनेट कनेक्टिविटी की विश्वसनीयता संदेहास्पद हो, वहाँ क्लाउड पर रखा हुआ डेटा समय पर उपलब्ध हो पाएगा या नहीं, यह भी अपने आपमें एक बड़ा प्रश्न रहता है। डेटा का नष्ट हो जाना या उसमें कई हेर-फेर भी चिंता का कारण हो सकता है, क्योंकि ऐसा होने पर कोई कंपनी अपने पूरे व्यावसायिक डेटा से हाथ धो सकती है जो कि उसका बड़ा भारी नुकसान होगा, या हो सकता है डेटा का परिवर्तन उसे कोई बड़ी हानि दे जाए।
 
समाधान : डेटा की सुरक्षा व इसके हर समय उपलब्ध रहने के लिए क्लाउड कंप्यूटिंग उपलब्ध कराने वाली कंपनियाँ एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही हैं। कई कंपनियाँ दुनिया-भर में फैले अपने सर्वर्स पर डेटा वितरित करके उसकी तत्काल उपलब्धता सुनिश्चित कर रही हैं, तो दूसरी ओर ऐसे समाधान बनाए जा रहे हैं जो डेटा में कोई भी हेर-फेर नज़र आने पर तत्काल जाँच करके उस परिवर्तन को नाकाम करेंगे और साथ ही कंपनी को डेटा में हुई हेर-फेर व उसके संभावित कारणों के बारे में सूचना दे देंगे। इसके अलावा, क्लाउड कंपनी आपके डेटा की कई प्रतियाँ बनाकर उन्हें अलग-अलग स्थानों पर मौजूद सर्वर्स पर रखती है, जिससे किसी दैवीय आपदा के समय एक सर्वर के नष्ट या बन्द हो जाने पर भी आपके ग्राहकों या कर्मचारियों को आपकी वेबसाइट उपलब्ध रहे और वे आसानी से अपना काम कर सकें। आपको दिए जाने वाले कोई सॉफ़्टवेयर लायसेंस आदि की 'कीज़' व पासवर्ड भी अब सिस्टम से ऑनलाइन जनरेट होकर आपको मिलते हैं और आपके सिवा क्लाउड कंपनी तक को उनका पता नहीं होता, जिससे आपका डेटाक्लाउड पर होने पर भी उसकी सुरक्षा की कोई चिन्ता न रहे।
 
इस प्रकार के कदमों से और क्लाउड के उपयोग की सरलता व सुविधा से अब दुनिया का भरोसा क्लाउड कंप्यूटिंग पर जमता जा रहा है। व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं के लिए भी क्लाउड कंप्यूटिंग नए आयाम ला रहा है। तो कहा जा सकता है कि क्लाउड अब हमारे जीवन का एक आवश्यक भाग बनकर ही रहेगा, ठीक जैसे आज मोबाइल है और चाहे हम कुछ समय इससे दूर रहने की कोशिश कर लें, अंतत: हम सभी को इसके साथ जीना सीखना ही होगा।

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