Jagannath Rathyatra : हमारी हिन्दू परम्परा में ज्येष्ठ पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन उड़ीसा स्थित जगन्नाथपुरी में भगवान जगन्नाथ की 'स्नान यात्रा' का महोत्सव मनाया जाता है। जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलराम एवं सुभद्रा जी के काष्ठ विग्रहों को स्नान हेतु मंदिर से बाहर लाया जाता है।
इस यात्रा को 'पहांडी' कहते हैं। श्री विग्रहों को मंदिर से बाहर लाने के पश्चात् उन्हें सूती परिधान धारण करवाकर पुष्प आसन पर विराजमान किया जाता है। पुष्प आसन पर विराजमान करने के पश्चात् भगवान जगन्नाथ को 108 स्वर्ण पात्रों द्वारा कुएं के चन्दन मिश्रित शीतल जल से स्नान कराया जाता है।
शास्त्रानुसार कथा है कि भगवान जगन्नाथ ने स्वयं महाराज को मंदिर के सम्मुख एक वट वृक्ष के समीप एक कुआं खुदवा कर उसके शीतल जल से अपना स्नान कराने का आदेश दिया था एवं इस स्नान के पश्चात् 15 दिनों तक किसी को भी उनके दर्शन ना करने का निर्देश दिया।
ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में शीतल जल से स्नान के कारण भगवान जगन्नाथ को ज्वर (बुखार) आ जाता है और वे अस्वस्थ हो जाते हैं।
शास्त्रानुसार भगवान जगन्नाथ के अस्वस्थ होने को उनकी 'ज्वरलीला' कहा जाता है। इस अवधि में केवल उनके वे निजी सेवक जिन्हें 'दयितगण' कहा जाता वे ही उनके एकान्तवास में प्रवेश कर सकते हैं।
पन्द्रह दिनों की इस अवधि को 'अनवसर' कहा जाता है। 'अनवसर' के इस काल में भगवान जगन्नाथ को स्वास्थ्य लाभ के लिए जड़ी-बूटी, खिचड़ी, दलिया एवं फ़लों के रस का भोग लगाया जाता है।
अनवसर काल के पश्चात् भगवान जगन्नाथ पूर्ण स्वस्थ होकर अपने भक्तों से मिलने के लिए रथ पर सवार होकर निकलते हैं, जिसे सुप्रसिद्ध 'रथयात्रा' कहा जाता है। प्रतिवर्ष यह 'रथयात्रा' आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है।