Jagannath Puri Rath Yatra 2022 : ओड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का आयोजन प्रतिवर्ष आषाढ़ माह की शुक्ल द्वितीया को होता है और इसका समापन एकादशी के दिन होता है। रथयात्रा जगन्नाथ मंदिर से निकलकर 3 किलोमीटर दूर गुंडीजा मंदिर पहुंचती है। यहां पर 7 दिनों तक भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का रथ रहता है और उसके बाद लौट आता है। कोविड 19 कोरोना वायरस के कारण दो वर्षों से जगन्नाथ रथयात्रा बाधित रही लेकिन इस बार इस यात्रा में लाखों लोगों के शामिल होने का अनुमान लगाया जा रहा है, जिसके चलते पूरी तैयारियां पूर्ण हो चुकी है। मान्यता है कि रथयात्रा में रथ खींचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और 100 यज्ञों का फल मिलता है।
1 जुलाई, शुक्रवार 2022 : इस दिन से रथ यात्रा प्रारंभ होगी। श्रीकृष्ण के रथ नंदीघोष, बलभद्र के रथ तालध्वज और देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन को श्रद्धालु अपने हाथों से खींचकर 3 किलोमीटर दूर गुंडीचा मंदिर ले जाएंगे। इसके बाद वहीं पर भगवान 7 दिनों तक विश्राम करेंगे।
5 जुलाई, मंगलवार 2022 : इस दिन यात्रा के पांचवें दिन हेरा पंचमी का महत्व है। इस दिन मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को खोजने आती हैं, जो अपना मंदिर छोड़कर यात्रा में निकल गए हैं। माता लक्ष्मी की पूजा होती है।
8 जुलाई, शुक्रवार 2022 : इस दिन भगवान जगन्नाथ के संध्या दर्शन होंगे। इस दिन दर्शन करने का पुण्य 10 वर्ष तक दर्शन करने के पुण्य के समान माना जाता है। इसे आड़प-दर्शन कहते हैं।
09 जुलाई, शनिवार 2022 : इस दिन बहुदा या बहुड़ा यात्रा निकलेगी। इसमें भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ घर वापसी करेंगे। आषाढ़ माह की दशमी को सभी रथ पुन: मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं।
10 जुलाई, रविवार 2022 : इस दिन सुनाबेसा होगा। यानी कि जगन्नाथ मंदिर लौटने के बाद एकादशी के दिन भगवान अपने भाई-बहन के साथ फिर से मंदिर में शाही रूप धारण करके विराजमान लेंगे। सुनाबेसा एक रूप है।
11 जुलाई 2022, सोमवार : इस दिन को आधर पना होता है। यानी कि रथ यात्रा के तीनों रथों पर दूध, पनीर, चीनी और मेवा से बना एक विशेष पेय अर्पित करके रथों को उनके स्थान पर पहुंचा दिया जाता है।
12 जुलाई, मंगलर 2022 : इस दिन नीलाद्री बीजे की रस्म होती है।
दिलचस्प तथ्य :
1. यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां पर श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की अधूरी मूर्तियां विराजमान है और वह भी लकड़ी की। हर वर्ष मूर्तियां बदल दी जाती है। मूर्तियों के अधूरे बनने और लकड़ी के बनाने की पीछे एक लंबी कथा है जो राजा इंद्रद्युम और उनकी पत्नी गुंडीचा से जुड़ी हुई है। तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। यहां प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।
2. रथों का निर्माण नीम की पवित्र अखंडित लकड़ी से होता है, जिसे दारु कहते हैं। रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील, कांटों और धातु का उपयोग नहीं करते हैं। रथों के निर्माण के लिए काष्ठ का चयन बसंत पंचमी पर होता है और निर्माण कार्य अक्षया तृतीया पर प्रारंभ होता है।