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(अक्षय तृतीया)
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आत्मा और परमात्मा को जोड़ते है पर्व

पर्व को सार्थक करें :

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हमें फॉलो करें दसलक्षण पर्युषण पर्व
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जैन मंदिरों में धर्म की गंगा बह रही है। सभी समाजबंधु धर्म में लीन होकर दसलक्षण पर्युषण पर्व मनाने में लगे हुए हैं। पर्युषण पर्व के पहले दिन उत्तम क्षमा धर्म पर प्रवचन देते हुए आर्यिका रत्न सरस्वती भूषण माताजी ने कहा कि पर्व विशिष्ट अवसर को कहते हैं।

पर्व का अर्थ है जोड़ने वाला। जिस प्रकार गन्ने की गांठ एक-दूसरे को जोड़ती है उसी प्रकार पर्व आत्मा और परमात्मा को जोड़ने का काम करता है।

आगम में कहा गया है कि पूजा पाठ, स्त्रोत, तप ध्यान से बढ़कर क्षमा है। क्रोध क्षमा को प्रकट नहीं होने देता है। अनंतानुबंधी क्रोध पाषाण पर उभरी रेखा के समान है। क्रोध विनाश की जड़ है। अहंकार भी एक क्रोध है। क्रोध के कारण रिश्ते टूट जाते हैं। घर परिवार उजड़ जाते हैं, मित्रता छूट जाती है। क्रोध के कारण सिर्फ अशांति ही रहती है।

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जो पल-पल में क्रोध कर रहे हैं वो हरदम अपने लिए नए शत्रु तैयार कर रहे हैं इसलिए आप सभी क्रोध से बचो। घर हो, समाज हो चाहे राष्ट्र हमें व्यवस्था के अनुसार ही चलना चाहिए। व्यवस्था को अपने अनुसार नहीं चलना चाहिए। क्रोध से बचने क्षमा धर्म अपनाना चाहिए।

हम किसी से क्षमा मांगें तो उसमें अभिनय न करें। पर्व हमें परमात्मा से जोड़ सकता है तो हमें परिवार से भी जोड़ सकता है। पर्वों को मनाकर अपनी आत्मा को क्रोध से बचाकर शुद्घ करें और पर्व को सार्थक करें।

पर्युषण पर्व के पहले दिन क्षमा धर्म की आराधना की गई। जिनालयों में सुबह से ही श्रद्घालुओं का आना जाना प्रारंभ हो गया था। मंदिरों में सुबह श्रीजी का अभिषेक शांतिधारा और क्षमा धर्म पर विशेष पूजा अर्चना की गई। पर्युषण पर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म की आराधना होती है।

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