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क्या है सल्लेखना समाधिमरण

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जैन आचार शास्त्र में सल्लेखनापूर्वक होने वाली मृत्यु को समाधिमरण, पंडितमरण अथवा संधारा भी कहा जाता है। इसका अर्थ है- जीवन के अंतिम समय में तप-विशेष की आराधना करना। इसे अपश्चिम मारणान्तिक भी कहा गया है।

अपश्चिम का तात्पर्य अंतिम साधना से है, जिसके आधार पर साधक मृत्यु की समीपता मानकर चारों प्रकार के आहारादि और क्रोध, मान, माया व क्रोध-कषाय को त्यागकर निराकुल भाव से मृत्यु का वरण करता है।

समाधिपूर्वक मृत्यु का वरण करना ही मृत्यु महोत्सव है। डॉ. जैनेंद्र जैन के मुताबिक, मृत्यु से भयाक्रांत भोगी और अज्ञानी लोग ही सल्लेखना समाधिमरण को अपघात कहते हैं जबकि समाधिपूर्वक मरण अपघात नहीं है। विचारों की दृढ़ता और प्रसन्न चित्त वाला व्यक्ति ही सल्लेखना को धारण कर सकता है।

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