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पिच्छी-कमंडल संतों की पहचान- मुनिश्री

मोर पंखों पर प्रतिबंध का कड़ा विरोध

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केन्द्र सरकार द्वारा पारित वन्य संरक्षण अधिनियम पर आचार्य पुष्पदंतसागरजी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। आचार्यश्री ने कहा कि सरकार द्वारा पारित विधेयक पढ़कर आश्चर्य हुआ। मोर मारने पर प्रतिबंध उचित है, लेकिन मोर द्वारा छोड़े गए पंखों पर प्रतिबंध लगाना कैसा न्याय है?

आचार्यश्री ने कहा कि दिगंबर साधु की पहचान मोर पंख की पिच्छी है। पिच्छी मोर द्वारा छोड़े गए पंखों से निर्मित है। दिगंबर साधु इसलिए मोर पंख का उपयोग करता है क्योंकि उसमें पाँच गुण हैं मृदु, कोमल, निष्पृह, अहिंसक और बाधा से रहित। इसी से दिगंबर मुनि प्राणियों की रक्षा करते हैं, जो संयम का उपकरण है। संयम के उपकरण पर प्रतिबंध कैसे? प्रतिबंध तो हिंसा पर, बूचड़खानों पर होना चाहिए, जिसके प्रति सरकार उदासीन है। यह कैसा विवेक। कानून से संयम और अहिंसा की रक्षा होती है सत्ता से समाज की रक्षा होती है। चारित्र से सज्जन की रक्षा होती है दुर्जन की नहीं।

सरकार के इस कानून से पता लगता है कि सम्प्रदायों के प्रति, धर्म के प्रति, दिगंबर साधु के प्रति उनकी कितनी श्रद्घा है? अहिंसा के खिलाफ पारित हुए कानून और कानूनविद् कभी सफल नहीं होते इसलिए सरकार से अनुग्रह है कि दिगंबरत्व के प्रतीक पिच्छी, कमंडल जो अहिंसा के उपकरण हैं उसकी सुरक्षा के लिए पुनः विचार किया जाए या सरकार स्वयं प्रण ले कि जितने भी दिगंबर साधु-साध्वियाँ हैं उनको वर्ष में दो बार पिच्छी भेंट करेंगे।

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आचार्य विद्यासागरजी ने केन्द्र सरकार द्वारा पारित अधिनियम पर कहा कि आदिनाथ भगवान के समय से लेकर अब तक जितने भी साधु-साध्वियाँ हुई हैं उनके सबको कमंडल के साथ पिच्छी रखना अनिवार्य है। धर्म के प्राचीन ग्रंथ मूलाचार एवं भगवती आराधना में भी उल्लेख है कि बिना पिच्छी के साधु सात कदम भी नहीं चल सकते। यह उनके समाधिमरण तक साथ रहती है।

आचार्यश्री ने कहा कि केन्द्र सरकार का मयूर पिच्छी संबंधी प्रस्ताव दिगंबर जैन धर्म के साधुओं की आवश्यकताओं में बाधक है। सरकार को साधुओं की चर्या को ध्यान में रखते हुए जैन धर्म के हित में सकारात्मक निर्णय लेकर उनकी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। साथ ही देश के राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री को जैन धर्म की अनिवार्यताओं का ध्यान रखते हुए तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए।

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