Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(द्वितीया तिथि)
  • तिथि- माघ शुक्ल द्वितीया
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • व्रत/मुहूर्त- सावान मास प्रा., अवतार मेहेर बाबा पु.
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia

महावीर महत्ता में निमित्त की भूमिका

Advertiesment
हमें फॉलो करें महावीर महत्ता में निमित्त की भूमिका
ND

निमित्त की भूमिका भी कम प्रणम्य नहीं होती। महावीर ने अपने जीवन के 29 वर्ष, 3 महीने, 24 दिन इसी भूमिका को निभाने में खर्च किए। 557 ई.पू. मार्च सोमवार को बिहार के जृंभक गाँव की ऋजुकूला नदी के किनारे एक शालवृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया था। यह उनकी उपादान की भूमिका थी जो सफल हुई। लेकिन उन्होंने विराम नहीं लिया और 527 ई.पू. में अपना निर्वाण होने तक वे निमित्त की भूमिका निभाते रहे।

वर्षाकाल को छोड़कर वे कभी एक जगह नहीं रहे। निरंतर विहार करते और लोगों की मुक्ति के लिए प्रयत्न करते रहे। विहार का उनका ज्यादा समय बिहार में ही बीता। कदाचित्‌ उनके विहार करते रहने के कारण ही विहार को बिहार नाम मिला। लोगों को उन्होंने उनकी ही भाषा प्राकृत में समझाया। उनकी सभाओं में, जिन्हें समवशरण कहा गया है, हर वर्ण, वर्ग, जाति, भाषा के मनुष्यों को ही नहीं, पशु-पक्षियों को भी आने की छूट थी।

जैन महामंत्र णमोकार में सबसे पहले अरिहंतों को और फिर सिद्धों को नमन किया गया है। जहाँ तक पद का सवाल है सिद्धों का पद अरिहंतों के पद से बड़ा है। सिद्ध लोगों को पार उतारने की चिंता से मुक्त हो चुके होते हैं। वे अशरीरी रूप में सिद्ध लोक में रहते हैं। वे परोक्ष रूप में एक प्रेरणा तो हैं, पर दुनिया को मोक्ष मार्ग पर ले चलने के लिए प्रभावी और सक्रिय भूमिका अरिहंत ही निभाते हैं।

अरिहंत प्राणियों के उद्धार के लिए प्रत्यक्ष निमित्त हैं और संसार में सशरीर विहार करते हुए अपनी निमित्त की भूमिका का सीधे-सीधे निर्वाह करते हैं। इसलिए अरिहंतों को उनके कमतर पद के बावजूद बड़े पद पर विराजमान सिद्धों से पहले नमन का विधान करके णमोकार मंत्र ने हमारे लोकजीवन को एक सही और अर्थगर्भ संदेश ही दिया है।

webdunia
ND
अगर निमित्त की भूमिका का महत्व नहीं होता, वह जरूरी नहीं होती तो न तो महावीर उसे निभाने के लिए वर्षों तक खटते रहते और न णमोकार मंत्र में सिद्धों से पहले अरिहंतों का नमन किया गया होता।

महावीर क्रोध, ईर्ष्या, मिथ्या आग्रह की तरह अकृतज्ञता को भी मानवीय गुणों का विनायक मानते हैं। कृतज्ञता का भाव निमित्त के प्रति ही हो सकता है। लेकिन आज हम कृतज्ञ होने से परहेज करने लगे हैं। हम तो यह सीख गए हैं कि जिस सीढ़ी का निमित्त पाकर ऊपर पहुँचो सबसे पहले उसे ही गिराने की जुगत करो। निमित्त का नाम भी मत लो अन्यथा तुम्हारे सफल होने का कुछ श्रेय उसे भी मिल जाएगा।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi