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श्रुत पंचमी का महत्व

श्रुत पंचमी यानी ज्ञानामृत पर्व

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- राजश्री
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दिगंबर जैन परंपरा के अनुसार प्रति वर्ष जेष्ठ शुक्ल पंचमी तिथि को श्रुत पंचमी पर्व मनाया जाता है। इस दिन जैन आचार्य धरसेन के शिष्य आचार्य पुष्पदंत एवं आचार्य भूतबलि ने 'षटखंडागम शास्त्र' की रचना की थी। उसके बाद से ही भारत में श्रुत पंचमी को पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।

जैन मुनियों के अनुसार श्रुत पंचमी पर्व ज्ञान की आराधना का महान पर्व है, जो जैन भाई-बंधुओं को वीतरागी संतों की वाणी सुनने, आराधना करने और प्रभावना बांटने का संदेश देता है। इस दिन मां जिनवाणी की पूजा अर्चना करते हैं।

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श्रुत पंचमी के पवित्र दिन मंदिरों और अपने घरों में रखे हुए पुराने ग्रंथों की साफ-सफाई कर, धर्मशास्त्रों का जीर्णोद्धार करना चाहिए। उनमें जिल्द लगानी चाहिए। शास्त्रों और ग्रंथों के भंडार की साफ-सफाई करके उनकी पूजा करना चाहिए।

ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले इस श्रुत पंचमी के दिन बड़ी संख्यां में जैन धर्मावलंबी चांदी की पालकी पर जैन धर्म के प्राचीन ग्रंथ रखकर गाजे-बाजे के साथ मां जिनवाणी तथा धार्मिक शास्त्रों की शोभायात्रा निकालते हैं तथा उन पर फूलों की वर्षा करते हैं। इस यात्रा में जैन धर्म में आस्था रखने वाले लोग सम्मिलित होते हैं और भाग लेते हैं।

मुनिश्री प्रणाम सागर महाराज के अनुसार शक्ति के साथ भक्ति चाहिए और भक्ति के साथ शक्ति। इसी तरह श्रद्धा के साथ प्रेम चाहिए। अगर केवल शक्ति हो तो वह विनाश का कारण हो सकती है। भक्तिविहीन शक्ति और श्रद्धा विहीन भक्ति व्यर्थ है। रावण के पास शक्ति तो थी मगर भक्ति नहीं। जिसके कारण उसका सब कुछ मिट्टी में मिल गया।

आर्यिका सरस्वती भूषण माताजी के अनुसार जिनवाणी में धर्म का सार है, मगर हम जिनवाणी की न मानते हुए व्यर्थ के झगड़ों में पड़ रहे हैं।

कई जैन मंदिरों में ज्ञान के विकास के लिए आगम अनुसार मंत्रित ब्राम्ही शंखपुष्पी और मुलहठी का वितरण भी किया जाता है। जैन धर्मावलंबियों द्वारा श्रुत पंचमी को ही ज्ञानामृत पर्व भी कहते हैं।

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