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सदी का प्रथम महामस्तकाभिषेक प्रारंभ

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हमें फॉलो करें सदी का प्रथम महामस्तकाभिषेक प्रारंभ
- दीपक व्यास
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...और आखिर वह क्षण आ गया, जिसका गत 17 वर्षों से इंतजार था। प्रथम कलश के साथ ही बावनगजा में सदी के प्रथम महामस्तकाभिषेक का भव्य शुभारंभ हो गया।

प्रातःकाल से सूर्य की आभा प्रतिमा पर पड़ने लगी थी, मानो किरणों के प्रकाश रूपी जल से सूर्य देवता स्वयं भगवान का महामस्तकाभिषेक कर रहे हों। पहला कलश 9 बजकर 10 मिनट पर होना था, लेकिन निर्धारित समय से करीब सवा घंटे देर से प्रारंभ हुआ।

पहला कल
पहला कलश सुबह 10 बजकर 39 मिनट पर अमेरिका से आए डॉ. दिलीप बोबरा परिवार ने स्थापित किया। उनके साथ अभय बड़जात्या, सलिल बड़जात्या, डॉ. चंद्रेश पहाड़िया, राजेंद्र पहाड़िया, सुनील पहाड़िया आदि थे। जैसे ही डॉ. बोबरा व उनके परिजनों ने भगवान आदिनाथ की 84फुट ऊँची विश्व प्रसिद्ध प्रतिमा पर कलश स्थापित किया।

प्रथम कलश स्थापित होते ही ढोल-नगाड़े, बैंडबाजों की थाप से समूचा बावनगजा क्षेत्र गुँजायमान हो उठा। यह क्षण निश्चित ही वहाँ उपस्थित हर शख्स के मन को उद्वेलित कर रहा था। आस्था, श्रद्धा और भक्ति हिलोरे मार रही थी। दूसरा कलश ठीक 10 बजकर 45 मिनट पर श्री भरत कुमार मोदी (इंदौर) द्वारा स्थापित किया गया। तृतीय कलश हरिद्वार से आए श्री यूसी जैन, जीसी जैन परिवार एवं श्री विनीत सेठिया ने स्थापित किया।

दुग्धाभिषेक
पहला दुग्धाभिषेक ठीक 1 बजकर 24 मिनट पर प्रारंभ हुआ। यह सौभाग्य श्री भरत मोदी को मिला। चार दुग्धाभिषेक कलश के बाद केसर व नारीकेल (नारियल जल) से भगवान का महाभिषेक किया गया।

भगवान आदिनाथ के मस्तक पर क्षीर (दूध), केसर से किए अभिषेक से नीचे की ओर प्रवाहित हो रहे दुग्ध का आचमन करने के लिए वहाँ उपस्थित श्रद्धालुगण आतुर हो रहे थे।

देर से पहुँचे शिवराज
मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान 9 बजकर 50 मिनट पर प्रतिमा स्थल पर पहुँचे। उनके साथ प्रभारी मंत्री श्रीमती रंजना बघेल भी थीं। मुख्यमंत्री ने भगवान आदिनाथ के दर्शन किए, तत्पश्चात वहाँ उपस्थित मुनि संघ के चरणों में वंदन किया।

अभिषेक परंपरा अनुरूप
समारोह के मार्गदर्शक उपाध्याय श्री गुप्तिसागर महाराज ने कहा है कि अभिषेक परंपरा अनुरूप हुआ है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आयोजन समिति ने तय किया था कि बावनगजा में परंपरा व मर्यादा के अनुरूप ही आदिनाथ भगवान की मूर्ति का अभिषेक कराया जाए। पंचामृत अभिषेक कराए जाने संबंधी बातें किसी स्वरूप में भी प्रचारित नहीं कराई गई थी।

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