हेतु- सर्प का जहर दूर होता है।
त्वत्संस्तवेन भव-सन्तति-सन्निबद्धं पापं क्षणात् क्षयमुपैति शरीरभाजाम् ।
आक्रांत-लोकमलि-नीलमशेषमाशु सूर्याशु-भिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् ॥ (7)
आपकी स्तवना करने से देहधारियों के जन्म-जन्मांतर के पाप पल भर में धुल जाते हैं! सच ही तो है, घनघोर स्याह रात का निबिड़ अंधकार भी उगते सूरज की सुनहली किरणों की तीक्ष्ण स्पर्श होते ही टुकड़े-टुकड़े हो जाता है!
ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो बीअबुद्धीणं ।
मंत्र- ॐ ह्रीं हं सौं श्राँ श्रीं क्रौं क्लीं सर्वदुरितसंकट-क्षुद्रोपद्रवकष्टनिवारणं कुरु कुरु स्वाहा ।