हेतु- हाथी-सर्प वगैरह वशवर्ती होते हैं।
श्च्योतन्मदाविल-विलोल-कपोल-मूल- मत्त-भ्रमद्भ्रमर-नाद विवृद्ध कोपम् ।
ऐरावताभमिभमुद्धतमापतन्तं दृष्टवा भयं भवति नो भवदाश्रितानाम् ॥ (38)
मदोन्मत्त एवं मद के बहने से विक्षुब्ध... इर्द-गिर्द भ्रमर समूह के गुंजारव से बौखलाया हुआ ऐरावत हाथी भी क्यों न सामने आ चढ़े... पर तेरे शरणागत का वह कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।
ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो मणबलीणं ।
मंत्र- ॐ नमो भगवते अष्टमहानाग कुलोच्चाटिनि कालदृष्ट मृतकोत्थापिनी परमंत्रप्रणाशिनी देवि शासन देवते ह्रीं नमो नमः स्वाहा ।