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।। जिनवाणी स्तुति ।।
मिथ्यातम नाश वे को, ज्ञान के प्रकाश वे को,आपा पर भास वे को, भानु सी बखानी है॥छहों द्रव्य जान वे को, बन्ध विधि मान वे को,स्व-पर पिछान वे को, परम प्रमानी है॥अनुभव बताए वे को, जीव के जताए वे को,काहूं न सताय वे को, भव्य उर आनी है॥जहां तहां तार वे को, पार के उतार वे को,सुख विस्तार वे को यही जिनवाणी है॥जिनवाणी के ज्ञान से सूझे लोकालोक,सो वाणी मस्तक धरों, सदा देत हूं धोक॥है जिनवाणी भारती, तोहि जपूं दिन चैन,जो तेरी शरण गहैं, सो पावे सुखचैन॥