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विद्या के सागर आचार्यश्री विद्यासागरजी का जन्मदिवस

हमें फॉलो करें विद्या के सागर आचार्यश्री विद्यासागरजी का जन्मदिवस
- निर्मलकुमार पाटोदी


 
 
आत्मविद्या के पथ-प्रदर्शक, शरद पूर्णिमा के शरदचन्द्र जैनाचार्य विद्यासागरजी का आज  71वां जन्मदिवस है। किंतु जहां वे विराजते हैं, वहां उनका जन्मदिवस, जन्म-जयंती मनाई नहीं जाती  है। आत्मयोगी आचार्यश्री ऐसे शरदचन्द्र हैं, जो अपने जन्मकाल से आज तक प्रतिदिन, प्रतिपल  निरंतर जिन धर्म की धवल ज्योत्स्ना से संसार को प्रकाशित कर रहे हैं। 
 
कर्म-कषायों के कष्ट से ऐहिक, दैहिक आधि-व्याधि से संतप्त संसारी प्राणियों को संतृप्ति और  संतुष्टि प्रदान कर रहे हैं। सौम्य विभूति विद्यासागरजी सबके हैं, सब उनके हैं। संत शिरोमणि  आत्म-साधना के लिए निर्जन स्थलों को प्रश्रय देते हैं। आपकी मुद्रा भीड़ में अकेला होने का  बोध कराती है। अकंप पद्मासन, शांतस्वरूप, अर्द्धमिलित नेत्र, दिगंबर वेश, आध्यात्मिक  परितृप्तियुक्त जीवन और नि:शब्द अनुशासन जनसमूह के अंतरमन को सहज ही छू लेता है। 
 
सभा-मंडप में दुर्द्धर-साधक की वाणी जब मुखरित होती है, तब नि:शांति व्याप्त हो जाती है,  समवशरण-सा दृश्य उपस्थित हो जाता है। आध्यात्मिक गुण-ग्रथियां स्वत: खुलती चली जाती हैं।  एक-एक वाक्य में वैदुष्य झलकता है। आपके दर्शन से जीवन-दर्शन को समझा जा सकता है।
 
तपोमूर्ति विद्यासागरजी का जन्म कर्नाटक प्रांत के बेलगांव जिले के ग्राम सदलगा के निकटवर्ती  गांव चिक्कोड़ी में 10 अक्टूबर 1946 की शरद पूर्णिमा को गुरुवार की रात्रि में लगभग 12.30  बजे हुआ था। पिता श्री श्रेष्ठी मल्लपाजी अष्टगे तथा माताजी श्रीमती अष्टगे के आंगन में  विद्यासागरजी का जन्म नाम विद्याधर और घर का नाम 'पीलू' था।

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महाश्रमण विद्यासागरजी को अपने गुरु साहित्य-मनीषी, ज्ञानवारिधि जैनाचार्य प्रवर  ज्ञानसागरजी महाराज के साधु जीवन व पांडित्य ने अत्यधिक प्रभावित किया था। गुरु की  कसौटी पर खरा उतरने पर आषाढ़ शुक्ल पंचमी, रविवार 30 जून 1968 को राजस्थान की  ऐतिहासिक नगरी अजमेर में लगभग 22 वर्ष की आयु में आपने संसार की समस्त बाह्य  वस्तुओं का त्याग कर दिया। 
 
संयम धर्म के परिपालन हेतु आपको गुरु ज्ञानसागरजी ने पिच्छी-कमंडल प्रदान कर  'विद्यासागर’ नाम से दीक्षा देकर संस्कारित किया और उनका शिष्यत्व पाने का सौभाग्य  आपको प्राप्त हुआ। 
 
ज्ञात इतिहास की वह संभवत: पहली घटना थी, जब नसीराबाद (अजमेर) में ज्ञानसागरजी ने  शिष्य विद्यासागर जी को बुधवार 22 नवंबर 1972 को स्वयं के कर-कमलों से आचार्य पद का  संस्कार शिष्य पर आरोहण करके शिष्य के चरणों में नमन कर उसी के निर्देशन में  ‘समाधिमरण सल्लेखना’ ग्रहण कर ली।

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