Jain Festival 2024: 13 सितंबर को जैन समाज का धूप/सुगंध दशमी पर्व, जानें महत्व और आकर्षण
सुगंध दशमी पर सजेगी झांकियां
सुगंध दशमी का अर्घ्य जानें।
सुगंध दशमी पर्व के बारे में जानें।
क्यों मनाया जाता है धूप दशमी पर्व जानें।
dhoop dashmi 2024 : वर्ष 2024 में 08 सितंबर, दिन रविवार से दिगंबर जैन समुदाय के दशलक्षण महापर्व/ पर्युषण पर्व शुरू हो गए हैं। और इस पर्व के अंतर्गत आने वाला पर्व सुगंध/ धूप दशमी को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। प्रतिवर्ष पर्युषण पर्व के छठवें दिन यानि भाद्रपद शुक्ल दशमी तिथि पर दिगंबर जैन धर्मावलंबियों द्वारा धूप दशमी का पर्व मनाते हैं। इस वर्ष यह पर्व दिन शुक्रवार, 13 सितंबर 2024 को मनाया जा रहा है।
इस दिन सभी जैन जिनालयों में 24 तीर्थंकरों, पुराने शास्त्रों तथा जिनवाणी के सम्मुख चंदन की धूप अग्नि पर खेवेंगे यानी धूप खेवन पर्व मनाया जाता है, जो कि जैन धर्म में बहुत महत्व रखता है। इस दिन धूप खेवन यानि जिनेंद्र देव के समक्ष धूप अर्पित करके यह पर्व मनाया जाता है। तथा इस दिन सभी जैन मंदिरों में दर्शनार्थियों की भीड़ देखी जा सकती है।
पर्व सुगंध दशै दिन जिनवर पूजै अति हरषाई,
सुगंध देह तीर्थंकर पद की पावै शिव सुखदाई।।
अर्थात्- हे भगवान! सुगंध दशमी के दिन सभी तीर्थंकरों का पूजन कर मेरा मन हर्षित हो गया है। धूप के इस पवित्र वातावरण से स्वयं भगवान भी खुश होकर मानव को मोक्ष पद का रास्ता दिखलाते हैं। इसी भावना के साथ सभी जैन मंदिरों में सुगंध दशमी पर धूप खेई जाती है। और इस पर्व को आनंद और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
महत्व- हर साल दशलक्षण, दसलक्षण/ पर्युषण महापर्व के अंतर्गत आने वाली भाद्रपद शुक्ल दशमी को दिगंबर जैन समाज में सुगंध दशमी का पर्व मनाया जाता है। इसे धूप दशमी, धूप खेवन पर्व भी कहते हैं। यह व्रत पर्युषण पर्व के छठवें दिन दशमी तिथि पर मनाया जाता है। इस पर्व के तहत जैन धर्मावलंबी सभी जैन मंदिरों में जाकर श्रीजी के चरणों में धूप अर्पित करते हैं। धूप की सुगंध से जिनालय महक उठते है। और वायुमंडल सुगंधित व स्वच्छ हो जाता है।
दिगंबर जैन धर्म में सुगंध दशमी व्रत का काफी महत्व है और महिलाएं हर वर्ष इस व्रत को करती हैं। सुगंध दशमी के दिन हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह इन पांच पापों के त्याग रूप व्रत को धारण करते हुए चारों प्रकार के आहार का त्याग, मंदिर में जाकर भगवान की पूजा, स्वाध्याय, धर्म चिंतन, श्रवण, सामयिक आदि में अपना समय व्यतीत करने का महत्व है।
इस दिन जैन जिनालयों में विशेष आकर्षण बना रहता है, क्योंकि इस त्योहार पर मंदिरों में बेहतरीन साज-सज्जा, रंगोली के द्वारा जगह-जगह के मंदिरों में मंडल विधान की रचना तथा धार्मिक संदेश देते हुई कई अन्य रचनाएं बनाकर मनोहारी झांकियों का निर्माण किया जाता है तथा धार्मिक पुस्तकें, पुराणों तथा शास्त्रों को सजाया जाता है। इस अवसर पर सुगंध दशमी कथा का वाचन भी होता है। इस दिन जिनवाणी व पुराने शास्त्रों के सम्मुख धूप चढ़ाई जाती है तथा उत्तम तप धर्म की आराधना कर आत्म कल्याण की कामना की कामना की जाती है।
मान्यतानुसार इस धार्मिक व्रत को विधिपूर्वक करने से मनुष्य के सारे अशुभ कर्मों का क्षय होकर पुण्य की प्राप्ति होती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही सांसारिक दृष्टि से उत्तम शरीर प्राप्त होना भी इस व्रत का फल बताया गया है। इस दिन जैन धर्मावलंबी अपनी-अपनी श्रद्धानुसार कई मंदिरों में अपने शीश नवाकर सुंगध दशमी का पर्व बड़े ही उत्साह और उल्लासपूर्वक मनाते हैं।
सुगंध दशमी के दिन जैन समुदाय के लोग शहरों के समस्त जैन मंदिरों में जाकर 24 तीर्थंकरों को धूप अर्पित करते है तथा भगवान से प्रार्थना करते हैं कि- हे भगवान! इस सुगंध दशमी के दिन, मैं आनंद की तलाश के रूप में अपने नाम में प्रार्थना करता हूं। मैं तीर्थंकरों द्वारा बतलाए मार्ग का पालन करने की प्रार्थना करता हूं, जो ज्ञान और मुक्ति का एहसास कराते हैं। हे भगवान, मैं आपके नाम का ध्यान धरकर मोक्ष प्राप्ति की कामना करता हूं। इस भाव के साथ सभी जैन धर्मावलंबी इस पर्व को बड़े ही उत्साह और भक्तिभाव के साथ मनाते हैं।
इस पर्व के दिन श्रीजी का सम्मुख धूप चढ़ाते समय यह पंक्तियां बोलकर सुगंधित धूप चढ़ाई या अर्पित की जाती है।
सुगंध दशमी का अर्घ्य
सुगंध दशमी को पर्व भादवा शुक्ल में,
सब इन्द्रादिक देव आय मधि लोक में;
जिन अकृत्रिम धाम धूप खेवै तहां,
हम भी पूजत आह्वान करिकै यहां।।
बता दें कि 17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी और जैन कैलेंडर की परंपरागत तिथि के अनुसार 18 सितंबर को क्षमावाणी/ क्षमा पर्व या पड़वा ढोक पर्व मनाया जाएगा।
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