HIGHLIGHTS
• जैन अष्टान्हिका पर्व एक वर्ष में कितनी बार आता है।
• कौन-कौनसे महीने में मनाया जाता है अष्टान्हिका पर्व।
• अष्टान्हिका पर्व क्या है।
jain ashtahnika parv : 'अष्टान्हिका पर्व' जैन धर्म के सबसे पुराने पर्वों में से एक है। ये पर्व वर्षभर में 3 तीन बार यानी कार्तिक मास, फाल्गुन मास और आषाढ़ के महीने में मनाया जाता है। यह पर्व भगवान महावीर स्वामी को समर्पित उत्सव है। इस वर्ष 16 मार्च 2024, शनिवार से आषाढ़ मास का अष्टान्हिका पर्व शुरू हो रहा है।
जैन कैलेंडर पर आधारित तिथि के अनुसार फाल्गुन अष्टाह्निका विधान का प्रारंभ 16 मार्च 2024, दिन शनिवार से होगा। तथा फाल्गुन चौमासी चौदस 23 मार्च 2024, शनिवार को मनाई जाएगी और फाल्गुन अष्टाह्निका विधान 24 मार्च, रविवार को पूर्ण होगा। 8 दिनों तक मनाया जाने वाला अष्टाह्निका पर्व जैन धर्म में विशेष स्थान रखता है।
अष्टाह्निका पर्व के संबंध में ऐसा कहा जाता है कि इस पर्व की शुरुआत मैना सुंदरी द्वारा की गई थी, जिसने अपने पति श्रीपाल के कुष्ठ रोग निवारण के लिए प्रयास किए थे, जिसका जैन ग्रथों में उल्लेख मिलता है। इतना ही नहीं अपने पति को निरोग करने के लिए उन्होंने 8 दिनों तक सिद्धचक्र विधान मंडल तथा तीर्थंकरों के अभिषेक के जल के छीटे देने तक साधना की थी।
तभी से जैन धर्म का पालन करने वाले धर्मावलंबी ध्यान तथा अपनी आत्मशुद्धि के लिए इन 8 दिनों तक कठिन तप एवं व्रतादि करते हैं। पद्मपुराण में भी इस पर्व का वर्णन देते हुए कहा गया है कि सिद्ध चक्र का अनुसरण करने से कुष्ठ रोगियों को भी रोग से मुक्ति मिल गई थी। अत: जैन धर्म में इस व्रत की बहुत महिमा है।
इस व्रत संबंध में जैन मतावलंबियों की मान्यता है कि इस दौरान स्वर्ग से देवता आकर नंदीश्वर द्वीप में निरंतर 8 दिनों तक धर्म कार्य करते हैं। इसलिए जो भक्त नंदीश्वर द्वीप तक नहीं पहुंच सकते वे अपने आसपास के जैन मंदिरों में पूजन करके इसका लाभ लेते हैं। इस व्रत के दौरान अपनी हर बुरी आदत तथा बुरे विचारों से खुद को मुक्त करने का प्रयास किया जाता है। इस व्रत से जीवन का बड़े से बड़ा संकट जल्द ही समाप्त हो जाता है।
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