Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(रुक्मिणी अष्टमी)
  • तिथि- पौष कृष्ण अष्टमी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • व्रत/मुहूर्त-रुक्मिणी अष्टमी, किसान दिवस
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

10 पॉइंट में जानें जैन धर्म को

हमें फॉलो करें 10 पॉइंट में जानें जैन धर्म को
webdunia

अनिरुद्ध जोशी

जैन धर्म को यूं तो 10 पॉइंट में नहीं समेटा जा सकता लेकिन मोटे तौर पर आप इन 10 पॉइंट में ही बहुत कुछ जान सकते हैं। इनके विस्तार में जाकर आप बहुत कुछ जान सकते हैं।
 
1. धर्मग्रंथ : भगवान महावीर ने कोई ग्रंथ नहीं रचा, सिर्फ प्रवचन ही दिए। बाद में उनके गणधरों ने उनके प्रवचनों का संग्रह कर लिया। भगवान महावीर से पूर्व के जैन धार्मिक साहित्य को महावीर के शिष्य गौतम ने संकलित किया था जिसे 'पूर्व' कहा जाता है। इस तरह चौदह पूर्वों का उल्लेख है। मूलत: आचारांग-सूत्र-कृतांग, मूल आगम षट्खण्डागम और तत्वार्थ सूत्र को जैन धर्मग्रंथ माना गया है। आदिपुराण और हरिवंश पुराण भी ग्रंथ हैं।
 
 
2. अनीश्वरवाद : जैन धर्म अनीश्वरवाद धर्म है। इसके अनुसार जगत्‌ की सृष्टि, संचालन और नियंत्रण करने वाला कोई नहीं है। जगत स्वयंसंचालित और स्वयंशासित है। यह कैसे संभव है इसके लिए अनेकांतवाद और स्यादवाद को समझना होगा। जैन धर्म के अनुसार ईश्वर सृष्टिकर्ता नहीं है। आत्मा ही सबकुछ है। आत्माएं असंख्य हैं।
 
जैन धर्म को अनीश्वरवादी धर्म न कहते हुए आत्मवादी धर्म कहना ज्यादा उचित होगा। जैन दर्शन अनुसार जगत्‌ की सृष्टि, संचालन और नियंत्रण करने वाला कोई नहीं है। जगत स्वयंसंचालित और स्वयंशासित है। यह कैसे संभव है इसके लिए अनेकांतवाद और स्यादवाद को समझना होगा। आत्मा ही सबकुछ है।
 
 
3. कैवल्य ज्ञान : जैन धर्म में मोक्ष को कैवल्य ज्ञान कहते हैं। कैवल्य प्राप्त जीव को मुक्त जीव कहते हैं। इसको प्राप्त करते हेतु त्रिरत्न अर्थात सम्यक्‌ दर्शन, सम्यक्‌ ज्ञान एवं सम्यक्‌ चारित्र और पंच महाव्रत अर्थात अहिंसा, अमृषा, अचौर्य, अमैथुन एवं अपरिग्रह का पालन करना होता है। मोक्ष की दो प्रक्रिया हैं- संवर अर्थात जीव की ओर कर्म पुद्गलों के प्रवाह को रोकना। दूसरा निर्जरा अर्थात जीव में पहले से व्याप्त पुद्गल को हटाना।
 
 
4. तीर्थ-तीर्थंकर:
*श्रीसम्मेद शिखरजी, अयोध्या, कैलाश पर्वत, वाराणसी, कुंडलपुर, पावापुरी, गिरनार पर्वत, चंपापुरी, श्रवणबेलगोला, बावनगजा, चांदखेड़ी और पालिताणा आदि प्रमुख तीर्थ है।
 
*ऋषभदेव, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दन नाथ, सुमितनाथ, पदम् प्रभु, सुपार्श्वनाथ, चन्द्र प्रभु, सुविधिनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, पूज्यनाथ, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत, नेमिनाथ, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी कुल 24 तीर्थंकर है।
 
5. त्योहार : जैन धर्म में महावीर जयंती सहित सभी चौबीस तीर्थंकरों की जयंती और निर्वाण दिवस, दीपमालिका, क्षमावाणी, श्रुत पंचमी, रक्षाबंधन, वीर शासन जयंती, अक्षय तीजा, अष्टान्हिका, शरद पूर्णीमा आदि त्योहार होते हैं। 
 
6. दान-पुण्य-यज्ञ : जैन आगम में दान के भेदों की व्याख्या करते हुए सामान्यत: आहारदान, औषधदान, ज्ञानदान, अभयदान इन चार प्रकार के दानों का वर्णन किया गया है। यज्ञ- जैन धर्म में पूजा विधानों के समापन में एवं पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं में अग्निकुण्डों में हवन किए जाने का भी प्रचलन है। 
 
7. षोडश संस्कार : गर्भाधान, प्रीति, सुप्रीति, धृति या सीमंतोन्नयन, मोद क्रिया, प्रियोद्भव, नामकर्म, बहिर्यान, निषद्या, अन्नप्राशन्न, वर्ष वर्धन या व्युष्टि, चौल, लिपिसंख्यान, उपनयन, व्रतावतरण, विवाह, आधान, उपनीति, केशवाय, जातकर्म आदि जैन संस्कार है।
 
8. व्रत-उपवास : जैन व्रतों में प्रमुख है- चातुर्मास और पर्युषण। इसके अलावा सुहाग दशमी, पोडषकारण, दशलक्षण, रत्नात्रय, मोक्ष सप्तमी, रोटतीज और ऋषि पंचमी आदि अनेक व्रत होते हैं। जैन धर्म में हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह से विरक्त होना व्रत है या प्रतिज्ञा करके जो नियम लिया जाता है उसे व्रत कहते हैं।
 
 
9. प्रार्थना : जैन धर्म में पंचपरमेष्ठियों की पूजा करते हैं। प्रार्थना में नवकार मंत्र का विशेष महत्व होता है। जैन धर्म में तिरसठ शलाका पुरुषों में से 24 तीर्थंकरों की स्तुति का भी महत्व है। जैन धर्म में पूजा के साथ ही पाठ का महत्व भी है। जैन धर्म में श्रीजी का अभिषेक किया जाना महत्वपूर्ण है। भारत में मूर्ति पूजा का प्रचलन जैन धर्म की देन है। 
 
10. जैन मंदिर : मंदिर में श्रीजी का अभिषेक किया जाता है। अभिषेक के लिए पुरुष वर्ग द्वारा सफेद और केसरिया रंग की धोती पहनी जाती है। बगैर सिले सोहले के वस्त्र पहनकर जाना होता है। मंदिर में पूजन-पाठ की किताबों का वाचन तथा अष्टद्रव्य से पूजन किया जाता है। श्रीजी के अभिषेक के जल को गंदोदक कहते हैं। प्रतिदिन मंदिर जाना जरूरी है। मंदिर में जाने और व्रत-पूजा करने के नियम हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जनेऊ पहनने के 9 लाभ