दीपावली 2021: भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस
- राजश्री कासलीवाल
Lord Mahavir Nirvana Divas जहां कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन हिन्दू धर्मावलंबी दीपावली पर्व मनाते हैं, वहीं जैन धर्म में भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस मनाया जाता है। इसी दिन भगवान महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। प्रतिवर्ष दीपावली के दिन जैन धर्म में दीपमालिका सजाकर भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है। भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर यानी अंतिम तीर्थंकर हैं।
Lord Mahavir भगवान महावीर का जन्म 27 मार्च 598 ई.पू. अर्थात् 2610 वर्ष पहले हुआ था और 72 वर्ष की अवस्था में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या के ही दिन स्वाति नक्षत्र में कैवल्य ज्ञान प्राप्त करके निर्वाण प्राप्त किया था। भगवान महावीर का दिव्य-संदेश 'जियो और जीने दो' को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रतिवर्ष कार्तिक अमावस्या को जिनालयों, भवनों, कार्यालयों व बाग-बगीचों को दीपों से सजाया जाता है और दीये जलाए जाते हैं। भगवान महावीर से कृपा-प्रसाद प्राप्ति हेतु लड्डुओं का नैवेद्य अर्पित किया जाता है। इसे 'निर्वाण लाडू' कहा जाता है।
भगवान महावीर स्वामी का जीवन एक खुली किताब की तरह है। उनका जीवन ही सत्य, अहिंसा और मानवता का संदेश है। उनका संपूर्ण जीवन तप और ध्यान की पराकाष्ठा है, इसलिए वह स्वतः प्रेरणादायी है। भगवान के उपदेश जीवनस्पर्शी हैं जिनमें जीवन की समस्याओं का समाधान निहित है। भगवान महावीर चिन्मय दीपक हैं। दीपक अंधकार का हरण करता है किंतु अज्ञानरूपी अंधकार को हरने के लिए चिन्मय दीपक की उपादेयता निर्विवाद है। उनके प्रवचन और उपदेश आलोक पुंज हैं।
भगवान महावीर स्वामी एक राज परिवार में पैदा होते हुए भी उन्होंने ऐश्वर्य और धन-संपदा का उपभोग नहीं किया। उनके घर-परिवार में ऐश्वर्य व संपदा की कोई कमी नहीं थी। युवावस्था में कदम रखते ही उन्होंने संसार की माया-मोह और राज्य को छोड़कर अनंत यातनाओं को सहन किया और समस्त सुख-सुविधाओं का मोह छोड़कर वे नंगे पैर पदयात्रा करते रहे। महावीर ने अपने जीवनकाल में अहिंसा के उपदेश प्रसारित किए। उनके उपदेश इतने आसान हैं कि उनको जानने-समझने के लिए किसी विशेष प्रयास की आवश्यकता ही नहीं।
एक बार जब महावीर स्वामी पावा नगरी के मनोहर उद्यान में गए हुए थे, जब चतुर्थकाल पूरा होने में 3 वर्ष और 8 माह बाकी थे। तब कार्तिक अमावस्या के दिन सुबह स्वाति नक्षत्र के दौरान महावीर स्वामी अपने सांसारिक जीवन से मुक्त होकर मोक्षधाम को प्राप्त हो गए। उस समय इन्द्रादि देवों ने आकर भगवान महावीर के शरीर की पूजा की और पूरी पावा नगरी को दीपकों से सजाकर प्रकाशयुक्त कर दिया। उसी समय से आज तक यही परंपरा जैन धर्म में चली आ रही है। जैन धर्म में प्रतिवर्ष दीपमालिका सजाकर भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है। उसी दिन शाम को श्री गौतम स्वामी को कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी, तब देवताओं ने प्रकट होकर गंधकुटी की रचना की और गौतम स्वामी एवं कैवल्यज्ञान की पूजा करके दीपोत्सव का महत्व बढ़ाया।
इसी उपलक्ष्य में सभी जैन बंधु सायंकाल दीपक जलाकर पुन: नए बही-खातों का मुहूर्त करते हुए भगवान गणेश और माता लक्ष्मीजी का पूजन करने लगे। ऐसा माना जाता है कि 12 गणों के अधिपति गौतम गणधर ही भगवान श्री गणेश हैं, जो सभी विघ्नों के नाशक हैं। उनके द्वारा कैवल्यज्ञान की विभूति की पूजा ही महालक्ष्मी की पूजा है।
आज की इस भागदौड़भरी जिंदगी में हमें भगवान महावीर के उपदेशों पर चलते हुए भ्रष्टाचार मिटाने की कोशिश करनी चाहिए तथा सत्य व अहिंसा का मार्ग चुनकर दीपावली पर पटाखों का त्याग करके जीव-जंतुओं, प्राणियों तथा पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए। सही मायनों में भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाने का यह संकल्प हम सभी को हमेशा निभाना चाहिए। जैन धर्म में धन, संपत्ति, यश तथा वैभव लक्ष्मी के बजाय वैराग्य लक्ष्मी प्राप्ति पर बल दिया गया है। अत: हमें भी मोक्ष प्राप्ति की अधिक ध्यान देना चाहिए।
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