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आज भी है भगवान महावीर की प्रासंगिकता

हमें फॉलो करें आज भी है भगवान महावीर की प्रासंगिकता
- शतायु  
 
भगवान महावीर का आदर्श वाक्य -
 
मित्ती में सव्व भूएसु।
- 'सब प्राणियों से मेरी मैत्री है।'
 

 
पर्यावरण प्रदूषण और ग्लोबल वॉर्मिंग के दौर में भगवान महावीर की प्रासंगिकता बढ़ गई है। भगवान महावीर को 'पर्यावरण पुरुष' भी कहा जाता है। अहिंसा विज्ञान को पर्यावरण का विज्ञान भी कहा जाता है।
 
भगवान महावीर मानते थे कि जीव और अजीव की सृष्टि में जो अजीव तत्व है अर्थात मिट्टी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति उन सभी में भी जीव है अत: इनके अस्तित्व को अस्वीकार मत करो। इनके अस्तित्व को अस्वीकार करने का मतलब है अपने अस्तित्व को अस्वीकार करना। स्थावर या जंगम, दृश्य और अदृश्य सभी जीवों का अस्तित्व स्वीकारने वाला ही पर्यावरण और मानव जाति की रक्षा के बारे में सोच सकता है। 
 
 
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जीव हत्या पाप है : जैन धर्म का नारा है 'जियो और जीने दो'। जीव हत्या को जैन धर्म में पाप माना गया है। मानव की करतूत के चलते आज हजारों प्राणियों की जाति-प्रजातियां लुप्त हो गई हैं। सिंह पर भी संकट गहराता जा रहा है। यदि मानव धर्म के नाम पर या अन्य किसी कारण के चलते जीवों की हत्या करता रहेगा तो एक दिन मानव ही बचेगा और वह भी आखिरकार कब तक बचा रह सकता है?
 
 
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मांसाहारी लोगों का कुतर्क : मांसाहारी लोग यह तर्क देते हैं कि यदि मांस नहीं खाएंगे तो धरती पर दूसरे प्राणियों की संख्या बढ़ती जाएगी और वे मानव के लिए खतरा बन जाएंगे। लेकिन क्या उन्होंने कभी यह सोचा है कि मानव के कारण कितनी प्रजातियां लुप्त हो गई हैं। धरती पर सबसे बड़ा खतरा तो मानव ही है, जो शेर, सियार, बाज, चील सभी के हिस्से का मांस खा जाता है जबकि भोजन के और भी साधन हैं। जंगल के सारे जानवर भूखे-प्यासे मर रहे हैं। अधर्म है वो धर्म जो मांस खाने को धार्मिक रीति मानते हैं। हालांकि वे और भी बहुत से तर्क देते हैं, लेकिन उनके ये सारे तर्क सिर्फ तर्क ही हैं उनमें जरा भी सत्य और तथ्य नहीं है।
 
 
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वृक्ष के हत्यारे : कटते जा रहे हैं पहाड़ एवं वृक्ष और बनते जा रहे हैं कांक्रीट के जंगल। तो एक दिन ऐसा भी होगा, जब मानव को रेगिस्तान की चिलचिलाती धूप में प्यासा मरना होगा। जंगल से हमारा मौसम नियंत्रित और संचालित होता है। जंगल की ठंडी आबोहवा नहीं होगी तो सोचो धरती आग की तरह जलने लगेगी। जंगल में घूमने और मौज करने के वो दिन अब सपने हो चले हैं।
 
महानगरों के लोग जंगल को नहीं जानते इसीलिए उनकी आत्माएं सूखने लगी हैं। रूस और अमेरिका में वृक्षों को लेकर पर्यावरण और जीव विज्ञानियों ने बहुत बार शोध करके यह सिद्ध कर दिया है कि वृक्षों में भी महसूस करने और समझने की क्षमता होती है। जैन धर्म तो मानता है कि वृक्ष में भी आत्मा होती है, क्योंकि यह संपूर्ण जगत आत्मा का ही खेल है। वृक्ष को काटना अर्थात उसकी हत्या करना है।
 
 
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वृक्ष से मिलती शांति और स्वास्थ्य : जैन धर्म में चैत्य वृक्षों या वनस्थली की परंपरा रही है। चेतना जागरण में पीपल, अशोक, बरगद आदि वृक्षों का विशेष योगदान रहता है। ये वृक्ष भरपूर ऑक्सीजन देकर व्यक्ति की चेतना को जाग्रत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं इसीलिए इस तरह के सभी वृक्षों के आस-पास चबूतरा बनाकर उन्हें सुरक्षित कर दिया जाता था जिससे वहां व्यक्ति बैठकर ही शांति का अनुभव कर सकता है।
 
जैन धर्म ने सर्वाधिक पौधों को अपनाए जाने का संदेश दिया है। सभी 24 तीर्थंकरों के अलग-अलग 24 पौधे हैं। बुद्ध और महावीर सहित अनेक महापुरुषों ने इन वृक्षों के नीचे बैठकर ही निर्वाण या मोक्ष को पाया। धरती पर वृक्ष है ईश्‍वर के प्रतिनिधि।

 

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