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संवत्सरी महापर्व 2023: 'मिच्छामी दुक्कड़म्' के साथ होगा पर्युषण महापर्व का समापन

हमें फॉलो करें संवत्सरी महापर्व 2023: 'मिच्छामी दुक्कड़म्' के साथ होगा पर्युषण महापर्व का समापन
michhami Dukddam 2023: इस वर्ष 11 सितंबर से श्वेतांबर जैन समुदाय के पर्युषण पर्व चल रहे थे, यह त्योहार 8 दिन का होता है। अत: इस साल 11 सितंबर 2023 से शुरू हुए पर्युषण महापर्व का समापन 18 सितंबर, सोमवार को हो जाएगा। और पर्व का आखिरी दिन संवत्सरी प्रतिक्रमण के रूप में मनाया जाएगा। तथा संवत्सरी महापर्व 19 सितंबर को मनाया जाएगा। संवत्सरी पर्व मनाने का अर्थ 'किसी से मेरा बैर नहीं, सभी से मेरी मैत्री है,' यही इस पर्व की सीख है। 
 
जैन धर्म के अनुसार इस दिन 'मिच्छामी दुक्कड़म्' कहने का विशेष महत्व है। 'मिच्छामी दुक्कड़म्' प्राकृत भाषा का एक शब्द है। जिसमें मिच्छामी का अर्थ क्षमा और दुक्कड़म का अर्थ हमसे जाने-अनजाने में हुए बुरे कर्मों के प्रति क्षमायाचना करना है। इसीलिए पर्युषण पर्व के अंतिम दिन को क्षमा दिवस और मिच्छामी दुक्कड़म के रूप में मनाया जाता है। 
 
श्वेतांबर जैन समुदाय के लिए संवत्सरी महापर्व सबसे बड़ा अवसर माना जाता है। जो कि क्षमा के 8 दिवसीय पर्व का समापन दिन होता है। इस अवसर पर प्रभु प्रतिमा की अंगरचना करके संवत्सरी पर्व मनाया जाता है। 'खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्तिमे सव्व भुएस्‌ वैरं ममझं न केणई।' अर्थात् सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ मेरा बैर नहीं है। 
 
इस वाक्य को अपने जीवन और आचरण में उतार कर 'मिच्छामी दुक्कड़म्' कहकर क्षमायाचना मांगी जाती है। अपने द्वारा हुई गलतियों और त्रुटियों के लिए दिल से क्षमा मांगते हुए संवत्सरी महापर्व का समापन किया जाता है। यह दिन क्षमा भाव वाला होता है। इस दिन क्षमा मांगने से जाने-अनजाने में अपराधों से मुक्ति मिल जाती है। तथा मन में बसी कड़वाहट को दूर करके रिश्तों में मिठास भरते हुए क्षमा पर्व मनाया जाता है। 
 
जैन धर्म में पर्युषण पर्व मनाने के लिए भिन्न-भिन्न मान्यताएं हैं, आगम साहित्य के अनुसार संवत्सरी चातुर्मास के 49 या 50 दिन व्यतीत होने पर व 69 या 70 दिन अवशिष्ट रहने पर मनाई जानी चाहिए और दिगंबर परंपरा में यह पर्व दसलक्षणों के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान तपस्या, समागम, पूजा-अर्चना, आरती, त्याग, उपवास आदि जैसे कई धार्मिक कार्यक्रम किए जाते हैं। 
 
श्वेतांबर परंपरा में जहां 8 दिनों तक पर्व 'पर्युषण' मनाया जाता है, वहीं दिगंबर परंपरा में यह '10 लक्षण' पर्व के रूप में मनाया जाता है, जो कि श्वेतांबर परंपरा के संवत्सरी महापर्व के तुरंत बाद दसलक्षण महापर्व के रूप में शुरू होते हैं। जैन धर्म के अनुसार पर्युषण कषाय शमन का पर्व है। अगर किसी भी मनुष्य के अंदर ताप, द्वेष के भाव पैदा हो जाते हैं तो पर्युषण उस भाव को शांत करने का पर्व है। 
 
इसमें धर्म के 10 द्वार बताए हैं उसमें पहला द्वार है- क्षमा, मतलब समता। समता/ क्षमा जीवन के लिए बहुत जरूरी है। जब तक कोई भी व्यक्ति जीवन में क्षमा नहीं अपनाता, तब तक वह अध्यात्म के पथ पर नहीं बढ़ सकता। अत: संवत्सरी के रूप में सभी प्राणियों के प्रति मन में बने बैरभाव को दूर करके मैत्री का उत्सव मनाना उचित है। 
 
हम सभी को चाहिए कि संवत्सरी पर्व के इस पावन अवसर पर 'मिच्छामी दुक्कड़म्' कहते हुए दिल से क्षमा करें भी और मांगे भी। तभी इस पर्व की सार्थकता बनी रहेगी। क्षमा भाव ही पर्युषण पर्व मनाने का मूल उद्देश्य तथा अपने अंतकरण और आत्मा को शुद्ध करने का खास पर्व है।

अत: इस पर्व के अंतिम दिन को क्षमा याचना दिवस के रूप में मनाते हुए सभी से मिलकर यानी अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, परिचितों से क्षमा मांगने का समय होता है। और सभी एक-दूसरे को 'michami dukkadam' ('मिच्छामी दुक्कड़म्') कहते हुए आत्म कल्याण के मार्ग पर चलते हैं। 


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