Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(चतुर्थी तिथि)
  • तिथि- कार्तिक शुक्ल चतुर्थी
  • शुभ समय-10:46 से 1:55, 3:30 5:05 तक
  • व्रत/मुहूर्त-विनायकी चतुर्थी, सूर्य षष्ठी व्रतारंभ, छठ व्र.नि.पा. प्रारंभ
  • राहुकाल- दोप. 3:00 से 4:30 बजे तक
webdunia
Advertiesment

अंतरमन से कहें मिच्छामी दुक्कड़म्...

हमें फॉलो करें अंतरमन से कहें मिच्छामी दुक्कड़म्...
* संवत्सरी : क्षमा, अहिंसा और मैत्री का पर्व

भगवान महावीर ने कहा है-
 
खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे। 
मित्तिमे सव्व भुएस्‌ वैरं ममझं न केणई। 
 
- अर्थात सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ मेरा बैर नहीं है। यह वाक्य परंपरागत जरूर है, मगर विशेष आशय रखता है। इसके अनुसार क्षमा मांगने से ज्यादा जरूरी क्षमा करना है। 
 
भाद्रपद मास में जैन धर्मावलंबी (श्वेताम्बर और दिगंबर) पर्युषण पर्व मनाते हैं। पर्युषण पर्व मनाने का मूल उद्देश्य आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए आवश्यक उपक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। श्वेताम्बर संप्रदाय के पर्युषण 8 दिन चलते हैं। संवत्सरी पर्व यानी क्षमावाणी पर्व पर 'मिच्छामी दुक्कड़म्' कहकर सभी से क्षमा मांगी जाती है। उसके बाद दिगंबर संप्रदाय वाले 10 दिन तक पर्युषण मनाते हैं। उन्हें वे 'दसलक्षण' के नाम से भी संबोधित करते हैं।
 
इन दिनों कल्पसूत्र/ तत्वार्थ सूत्र का वाचन किया जाता है, संत-मुनियों तथा विद्वान पंडितों के सान्निध्य में स्वाध्याय किया जाता है। मंदिर, उपाश्रय, स्थानक तथा समवशरण परिसर में अधिकतम समय तक रहना जरूरी माना जाता है। 
 
पूजन, आरती, समागम, उपवास, त्याग-तपस्या में अधिक से अधिक समय व्यतीत किया जाता है और दैनिक क्रियाओं से दूर रहने का प्रयास किया जाता है। संयम और विवेक का निरंतर प्रयोग, अभ्यास चलता रहता है। इन दिनों उपवास, बेला, तेला, अठ्ठाई, मासखमण जैसी लंबी बिना कुछ खाए, बिना कुछ पिए, निर्जला तपस्या करने वाले लोग सराहना प्राप्त करते हैं। 
 
इन्हीं 8 दिनों में पर्व में दौरान क्षमा, अहिंसा और मैत्री का पर्व संवत्सरी आता है। संवत्सरी पर्व पर जैन धर्मावलंबी जाने-अनजाने हुई गलतियों के लिए एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं। गौरतलब है कि श्वेतांबर जैन समाज के पर्युषण पर्व संपन्न हुए हैं और क्षमावाणी दिवस मनाया जा रहा है। 
 
जैन धर्म की परंपरा के अनुसार पर्युषण पर्व के अंतिम दिन क्षमावाणी दिवस (मैत्री दिवस) पर सभी एक-दूसरे से 'मिच्छामी दुक्कड़म्' कहकर क्षमा मांगते हैं, साथ ही यह भी कहा जाता है कि मैंने मन, वचन, काया से जाने-अनजाने आपका दिल दुखाया हो तो मैं हाथ जोड़कर आपसे क्षमा मांगता हूं।
 
जैन धर्म के अनुसार 'मिच्छामी' का भाव क्षमा करने और 'दुक्कड़म्' का अर्थ गलतियों से है अर्थात मेरे द्वारा जाने-अनजाने में की गईं गलतियों के लिए मुझे क्षमा कीजिए। 
 
प्राकृत भाषा में काफी जैन ग्रंथों की रचना हुई है। 'मिच्छामी दुक्कड़म्' भी प्राकृत भाषा का शब्द है। पर्युषण महापर्व जैन धर्मावलंबियों में आत्मशुद्धि का पर्व है। इस तरह पर्युषण पर्व आत्मशुद्धि के साथ मनोमालिन्य दूर करने तथा सभी से क्षमा-याचना मांगने का सुअवसर प्रदान करने वाला महापर्व है। 
 
आचार्य महाश्रमण के अनुसार- क्षमापना से चित्त में आह्लाद का भाव पैदा होता है और आह्लाद भावयुक्त व्यक्ति मैत्रीभाव उत्पन्न कर लेता है और मैत्रीभाव प्राप्त होने पर व्यक्ति भाव विशुद्धि कर निर्भय हो जाता है। जीवन में अनेक व्यक्तियों से संपर्क होता है तो कटुता भी वर्षभर के दौरान आ सकती है। व्यक्ति को कटुता आने पर उसे तुरंत ही मन में साफ कर देनी चाहिए और संवत्सरी पर अवश्य ही साफ कर लेना चाहिए।
 
जैन धर्म के पयुर्षण पर्व से विदेश भी अछूता नहीं है। यहां रहने वाले जैन धर्मावलंबी भी इन दिनों तप-आराधना करके 'मिच्छामी दुक्कड़म्' का पर्व मनाते हैं और अपने से दूर रहने वाले अपने सगे-संबंधी तथा परिचितों-मित्रों से माफी मांगकर क्षमापना पर्व को मनाते हैं। यह पर्व भारत के अलावा दुनिया में अन्य कई जगहों, जैसे अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, जापान व अन्य अनेक देशों में भी यह पर्व धूमधाम से मनाए जाते हैं।
 
माना जाता है कि क्षमा देने से आप अन्य समस्त जीवों को अभयदान देते हैं और उनकी रक्षा करने का संकल्प लेते हैं। तब आप संयम और विवेक का अनुसरण करेंगे, आत्मिक शांति अनुभव करेंगे और सभी जीवों और पदार्थों के प्रति मैत्रीभाव रखेंगे। आत्मा तभी शुद्ध रह सकती है, जब वह अपने से बाहर हस्तक्षेप न करे और बाहरी तत्व से विचलित न हो। क्षमाभाव ही इसका मूलमंत्र है। 
 
अंत में इतना ही- 'मिच्छामी दुक्कड़म्' 
 
- राजश्री कासलीवाल 
 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

हरतालिका तीज : जानिए महत्व, कथा और संपूर्ण पूजा विधि