Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(तिथि अमावस्या)
  • तिथि- मार्गशीर्ष कृष्ण अमावस्या
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32
  • व्रत/मुहूर्त-देवकार्य अमावस्या, एड्स जागरूकता दि.
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

महावीर स्वामी की माता महारानी त्रिशला ने देखे थे सोलह शुभ मंगलकारी सपने

हमें फॉलो करें महावीर स्वामी की माता महारानी त्रिशला ने देखे थे सोलह शुभ मंगलकारी सपने
Mata Trishla ke swapn
 
प्राचीन जैन ग्रंथ 'उत्तर पुराण' में तीर्थंकरों का वर्णन मिलता है। इस ग्रंथ के अनुसार वैशाली के राजा चेटक के दस पुत्र और सात पुत्रियां थीं।
 
राजा चेतक प्राचीन भारत के वैशाली लिच्छवि राजवंश मुखिया थे जो गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी के समकालीन थे। राजा चेतक की रानी का नाम सुभद्रा था। इनके दस पुत्र हुए जिनके नाम धनदत्त, धनप्रभ, उपेन्द्र, सुदत्त, सिंहभद्र, सुकुम्भोज, अकम्पन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास थे और सात पुत्रियां थीं उनमें सबसे बड़ी प्रियकारिणी (त्रिशला) थी, फिर मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलिनी, ज्येष्ठा और सबसे छोटी चंदना थी।
 
उनकी ज्येष्ठ पुत्री त्रिशला (प्रियकारिणी) का विवाह कुण्डलपुर (वैशाली गणराज्य) के तत्कालीन राजा का सिद्धार्थ से हुआ था। एक दिन कुण्डलपुर के लोग सोकर उठे और देखते हैं कि अचानक वहां कीमती रत्नों की वर्षा आरंभ हो गई हैं। लोगों ने अभी तक जल वर्षा देखी थी, रत्न वर्षा देखकर उनका चमत्कृत होना स्वाभाविक था। इन्द्र की आज्ञानुसार कोषाध्‍यक्ष कुबेर कुण्डलपुर में प्रतिदिन प्रात:, मध्याह्न, सायं और रात्रि को तीन-तीन करोड़ रत्नों की वर्षा कर रहे थे।

 
जैन मान्यतानुसार प्रत्येक तीर्थंकर के जन्म से छ: माह पूर्व से ऐसी रत्नवर्षा आरंभ हो जाती थी, जो उनके जन्मस्थल की सात पीढ़ियों तक संपन्न हो जाती थीं। कुण्डलपुरवासी इस अद्‍भुत रत्न वर्षा का कारण जानने के लिए उत्सुक थे। नगरभर में इसी बात की चर्चा थी। इतने रत्न बरस रहे थे कि घरों में रखने तक की जगह नहीं बची थी। कुण्डलपुर की सुख-समृद्धि स्वमेव बढ़ गई थी। नगर का वातावरण एक दिव्य आभा से आलोकित हो गया था।

 
जब महारानी त्रिशला भी नगर में हो रही अद्‍भुत रत्नवर्षा के बारे में सोच रही थीं। यह सोचते-सोचते वे ही गहरी नींद में सो गई। उसी रात्रि को अंतिम प्रहर में महारानी ने आषाढ़ शुक्ल षष्ठी के दिन सोलह शुभ मंगलकारी स्वप्न देखे।
 
सुबह जागने पर महारानी त्रिशला के महाराज सिद्धार्थ से अपने स्वप्नों की चर्चा की और उसका फल जानने की इच्छा प्रकट की। राजा सिद्धार्थ एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ ही ज्योतिष शास्त्र के भी विद्वान थे। उन्होंने रानी से कहा कि एक-एक कर अपना स्वप्न बताएं। वे उसी प्रकार उसका फल बताते महारानी को बताएंगे।

 
1. रानी ने पहला स्वप्न बताया : स्वप्न में एक अति विशाल श्वेत हाथी दिखाई दिया।
राजा ने फल बताया : उन्हें एक अद्भुत पुत्र-रत्न उत्पन्न होगा।
2. दूसरा स्वप्न : श्वेत वृषभ।
फल : वह पुत्र जगत का कल्याण करने वाला होगा।
3. तीसरा स्वप्न : श्वेत वर्ण और लाल अयालों वाला सिंह।
फल : वह पुत्र सिंह के समान बलशाली होगा।
4. चौथा स्वप्न : कमलासन लक्ष्मी का अभिषेक करते हुए दो हाथी।
फल : देवलोक से देवगण आकर उस पुत्र का अभिषेक करेंगे।
5. पांचवां स्वप्न : दो सुगंधित पुष्पमालाएं।
फल : वह धर्म तीर्थ स्थापित करेगा और जन-जन द्वारा पूजित होगा।
6. छठा स्वप्न : पूर्ण चन्द्रमा।
फल : उसके जन्म से तीनों लोक आनंदित होंगे।
7. सातवां स्वप्न : उदय होता सूर्य।
फल : वह पुत्र सूर्य के समान तेजयुक्त और पापी प्राणियों का उद्धारक होगा।
8. आठवां स्वप्न : कमल पत्रों से ढंके हुए दो स्वर्ण कलश।
फल : वह पुत्र अनेक निधियों का स्वामी निधि‍पति होगा।
9. नौवां स्वप्न : कमल सरोवर में क्रीड़ा करती दो मछलियां।
फल : महाआनंद का दाता, दुखहर्ता।
10. दसवां स्वप्न : कमलों से भरा जलाशय।
फल : एक हजार आठ शुभ लक्षणों से युक्त पुत्र।
11. ग्यारहवां स्वप्न : लहरें उछालता समुद्र।
फल : भूत-भविष्य-वर्तमान का ज्ञाता केवली पुत्र।
12. बारहवां स्वप्न : हीरे-मोती और रत्नजडि़त स्वर्ण सिंहासन।
फल : राज्य का स्वामी और प्रजा का हितचिंतक पुत्र।
13. तेरहवां स्वप्न : स्वर्ग का विमान।
फल : इस जन्म से पूर्व वह पुत्र स्वर्ग में देवता होगा।
14. चौदहवां स्वप्न : पृथ्वी को भेद कर निकलता नागों के राजा नागेन्द्र का विमान।
फल :  जन्म से ही वह पुत्र त्रिकालदर्शी होगा।
15. पन्द्रहवां स्वप्न : रत्नों का ढेर।
फल : वह पुत्र अनंत गुणों से संपन्न होगा।
16.सोलहवां स्वप्न : धुआंरहित अग्नि।
वह पुत्र कर्मों का अंत करके मोक्ष (निर्वाण) प्राप्त करेगा।
 
इस तरह महारानी त्रिशला ने अपने सोलह स्वप्न फलों का वर्णन महाराजा सिद्धार्थ से प्राप्त किया। राजा सिद्धार्थ स्वप्न-फल बताकर शांत ही हुए थे कि उनके सामने कुछ दिव्य पुरुष प्रकट हुए। उनमें से एक ने अपना परिचय देते हुए कहा- 'हे राजन! मैं देवराज इन्द्र अपने साथियों सहित आपको व महारानी को नमन करता हूं। आप धन्य हैं, आपको तीनों लोकों के स्वामी का माता-पिता बनने का सौभाग्य मिला है। आपके यहां उत्पन्न होने वाला जीव- अंतिम तीर्थंकर महावीर के रूप में प्रसिद्ध होगा और पापियों का कल्याण करके स्वयं मोक्ष को प्राप्त करेगा।

 
यह कहकर देवराज इन्द्र ने अपने साथी देवताओं सहित महारानी त्रिशला का अभिषेक किया, उन्हें दिव्य वस्त्र, रत्नाभूषण आदि प्रदान किए और महावीर का गर्भ कल्याणक मनाकर वापस स्वर्ग लौट गए। यह समाचार सुनकर महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहा। पूरे राज्य में यह समाचार फैल गया। घर-घर में खुशियां मनाई जाने लगीं। चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म हुआ।

 
जैन धर्म के चौबीसवें अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर को कुण्डलपुर की पवित्र धरती पर जन्म देने वाली महारानी त्रिशला त्रिलोकपूजनीय माता हैं तथा कई ग्रंथों ने माता त्रिशला की स्तुति करते हुए उनके गुणों का वर्णन किया है।

- आरके. 

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं  समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। वेबदुनिया इसकी पुष्टि नहीं करता है। इनसे संबंधित किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi