Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(गुड फ्रायडे)
  • तिथि- चैत्र कृष्ण चतुर्थी
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • व्रत/मुहूर्त-सर्वार्थसिद्धि योग, गुड फ्रायडे
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

पर्युषण 2019 : दशलक्षण के 10 दिन के महापर्व का महत्व जानिए

हमें फॉलो करें पर्युषण 2019 : दशलक्षण के 10 दिन के महापर्व का महत्व जानिए

राजश्री कासलीवाल

3 सितंबर 2019, मंगलवार से दिगंबर जैन समाज में पर्वों के राजा कहे जाने वाले महापर्व पर्युषण शुरू हो गए हैं। यह आने वाले 10 दिन सभी के जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, दसलक्षण के इन दिनों में सभी आत्मकल्याण के मार्ग पर प्रशस्त हो यही सभी का प्रयास होना चाहिए। 
 
पयुर्षण पर्व को जैन धर्म में सभी पर्वों का 'राजा' माना जाता है। इस पर्व की विशेष महत्ता के कारण ही इस पर्व को 'राजा' कहा जाता है। इसीलिए यह पर्व का जैन धर्मावलंबियों के लिए बहुत महत्व है, क्योंकि यह पर्व समाज को 'जिओ और जीने दो' का संदेश देता है। भगवान महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है।  
 
दिगंबर जैन समाज में पयुर्षण पर्व/ दशलक्षण पर्व के प्रथम दिन उत्तम क्षमा, दूसरे दिन उत्तम मार्दव, तीसरे दिन उत्तम आर्जव, चौथे दिन उत्तम शौच, पांचवें दिन उत्तम सत्य, छठे दिन उत्तम संयम, सातवें दिन उत्तम तप, आठवें दिन उत्तम त्याग, नौवें दिन उत्तम आकिंचन तथा दसवें दिन ब्रह्मचर्य तथा अंतिम दिन क्षमावाणी के रूप में मनाया जाएगा। दशलक्षण पर्व के दौरान जिनालयों में धर्म प्रभावना की जाएगी।
 
ये हैं दशलक्षण के 10 पर्व 
 
1. क्षमा- सहनशीलता। क्रोध को पैदा न होने देना। क्रोध पैदा हो ही जाए तो अपने विवेक से, नम्रता से उसे विफल कर देना। अपने भीतर क्रोध का कारण ढूंढना, क्रोध से होने वाले अनर्थों को सोचना, दूसरों की बेसमझी का ख्याल न करना। क्षमा के गुणों का चिंतन करना।
 
2. आर्जव- चित्त में मृदुता व व्यवहार में नम्रता होना।
 
3. आर्दव- भाव की शुद्धता। जो सोचना सो कहना। जो कहना सो करना।
 
4. शौच- मन में किसी भी तरह का लोभ न रखना। आसक्ति न रखना। शरीर की भी नहीं।
 
5. सत्य- यथार्थ बोलना। हितकारी बोलना। थोड़ा बोलना।
 
6. संयम- मन, वचन और शरीर को काबू में रखना।
 
7. तप- मलीन वृत्तियों को दूर करने के लिए जो बल चाहिए, उसके लिए तपस्या करना।
 
8. त्याग- पात्र को ज्ञान, अभय, आहार, औषधि आदि सद्वस्तु देना।
 
9. अकिंचनता- किसी भी चीज में ममता न रखना। अपरिग्रह स्वीकार करना।
 
10. ब्रह्मचर्य- सद्गुणों का अभ्यास करना और अपने को पवित्र रखना।

ALSO READ: भगवान ऋषभदेव के 10 रहस्य, हर हिन्दू को जानना जरूरी

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

पयुर्षण पर्व विशेष : जानिए दशलक्षण के 10 पर्व का महत्व