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आज के शुभ मुहूर्त

(सूर्य धनु संक्रांति)
  • तिथि- पौष कृष्ण एकम
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • व्रत/मुहूर्त- सूर्य धनु संक्रांति, खरमास प्रारंभ
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
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उवसग्गहरं स्तोत्र (‍हिन्दी अर्थ सहित)

हमें फॉलो करें उवसग्गहरं स्तोत्र (‍हिन्दी अर्थ सहित)
भगवान पार्श्वनाथ को प्रसन्न करने वाला उवसग्गहरं स्तोत्र


 

 
उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म-घण मुक्कं ।
विसहर विस निन्नासं, मंगल कल्लाण आवासं ।।1।।
 
अर्थ : प्रगाढ़ कर्म- समूह से सर्वथा मुक्त, विषधरों के विष को नाश करने वाले, मंगल और कल्याण के आवास तथा उपसर्गों को हरने वाले भगवान पार्श्वनाथ को मैं वंदना करता हूं !

विसहर फुलिंग मंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ ।
तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।।2।।
 
अर्थ : विष को हरने वाले इस मंत्ररूपी स्फुलिंग को जो मनुष्य सदैव अपने कंठ में धारण करता है, उस व्यक्ति के दुश ग्रह, रोग बीमारी, दुष्ट, शत्रु एवं बुढापे के दुःख शांत हो जाते है !

 


चिट्ठउ दुरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहु फलो होइ ।
नरतिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख-दोगच्चं।।3।।
 
अर्थ : हे भगवान ! आपके इस विषहर मंत्र की बात तो दूर रहे, मात्र आपको प्रणाम करना भी बहुत फल देने वाला होता है ! उससे मनुष्य और तिर्यंच गतियों में रहने वाले जीव भी दुःख और दुर्गति को प्राप्त नहीं करते है!  

तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि कप्पपाय वब्भहिए ।
पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ।।4।।
 
अर्थ : वे व्यक्ति आपको भलीभांति प्राप्त करने पर, मानो चिंतामणि और कल्पवृक्ष को पा लेते हैं और वे जीव बिना किसी विघ्न के अजर, अमर पद मोक्ष को प्राप्त करते है!

इअ संथुओ महायस, भत्तिब्भर निब्भरेण हिअएण ।
ता देव दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास जिणचंद ।।5।।
 
अर्थ : हे महान यशस्वी ! मैं इस लोक में भक्ति से भरे हुए हृदय से आपकी स्तुति करता हूं! हे देव! जिन चंद्र पार्श्वनाथ ! आप मुझे प्रत्येक भाव में बोधि (रत्नत्रय) प्रदान करें !



 

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