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आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज

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हमें फॉलो करें Vidyasagar Ji Maharaj
आचार्यश्री विद्यासागर महाराज का जन्म संवत 2003 तदनुसार 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के बेलगाम (बेलगांव) के चिक्कोड़ी ग्राम में आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) के दिन दिगंबर जैन परिवार में हुआ था। पिता का नाम मल्लपा जी अष्टगे तथा माता का नाम श्रीमतीजी था। माता-पिता दोनों ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। दोनों बाद में मुनि और आर्यिका हो गए थे। आचार्य जी के चार भाई और दो बहिन है।

आचार्यश्री बाल्यकाल से ही धार्मिक प्रवृत्ति के है। बचपन में भी खेलकूद के स्थान पर माता-पिता के साथ मंदिर दर्शन को जाना, शुद्ध आहार करना, प्रवचन सुनना, संस्कृत के कठिन पदों को कुछ ही समय में कंठस्थ याद कर लेना आदि अनेक घटनाएं उल्लेखनीय है। 
 
विद्यासागर जी ने सन् 1967 को आचार्य देशभूषण जी से ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। महाकवि आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज से आषाढ़ शुक्ल पंचमी 30 जून, 1968 रविवार को अजमेर में उन्होंने दिगंबर पद्धति से मुनि दीक्षा ली।
 
दीक्षा लेकर साधु हो जाना या मुनि हो जाना बहुत आसान है, किंतु समस्त शास्त्रों के ज्ञान के बाद व्यक्ति उपाध्याय हो जाता है और कठोर तप करते हुए वह आचार्य पद ग्रहण करता है। ऐसे ही आचार्य हैं आचार्यश्री विद्यासागर। जिनके अनुशासन और तप से अपने मन और तन को कुंदन बना रखा है। उनके चेहरे पर अलग ही तेज झलकता है।
 
दिगंबर जैन संतों में सबसे ऊंचा स्थान आचार्यों का है। उन्होंने नसिराबाद में आचार्य ज्ञानसागर द्वारा 22 नवंबर 1972 को आचार्य का पद ग्रहण किया।
 
जैन धर्म में आचार्य का दर्जा साधुओं और उपाध्यायों से उपर है। जो पांच नमस्कार कहें गए हैं, उनमें एक नमस्कार आचार्यों को नमन किया गया है। दोनों तरफ से गिनती करने पर तीसरे नंबर पर आचार्यों की उपस्थिति है।
 
विद्यासागरजी ने कन्नड़, हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत और बांग्ला भाषा आदि में कई शोध कार्य किए तथा अनेक लेख लिखे हैं। उनका महाकाव्य 'मूकमाटी' सर्वाधिक चर्चित रहा है।
 
आचार्यश्री एक महान संत, कुशल कवि, वक्ता एवं विचारक है। वे दिगंबर जैन सम्प्रदाय के महान आचार्य है। उनके संघ की विशेषता यह है कि अभी तक सभी दीक्षित शिष्य बाल ब्रह्मचारी ही है।
 
आचार्य श्री के अनुसार
 
- ग्रह उनको ही लगते हैं, जिन पर परिग्रह होती है।
- तन के अनुरूप ही मन का नग्न होना, आकिंचन है।
- जैसे आम को खाने से पहले आप उसे दबा-दबा कर ढ़ीला करते हैं, फिर उसके ऊपर से डंठल हटाते हैं, खाने से पहले चैंप निकालते हैं वर्ना फोड़े-फुंसी हो जाते हैं। वैसे ही त्याग धर्म में दबा-दबा कर ढ़ीला करने का मतलब- अंटी ढ़ीली करना। डंठल हटाने का मतलब- अपने घर के खजाने पर से ढ़क्कन खोलना। चैंप निकालने का मतलब- उपयोग से पहले त्याग करना। त्याग नहीं करोगे तो जीवन दूषित हो जाएगा।
- शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं।
 
आचार्यश्री विद्यासागरजी को शत-शत नमन। 

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