- शोभना जैन
14 से 21 जनवरी तक होगा पंचकल्याणक अनुष्ठान
रहली, सागर (मध्यप्रदेश)। मध्यप्रदेश के सागर नगर के निकट एक उनींदा-सा कस्बा रहली अचानक गुलजार हो उठा है। कस्बे की सुबह चमकदार-सी हो उठी है। तंग गलियों में एक-दूसरे से जुड़े मकानों से जहां-तहां रास्ता निकाल झांकती धूप में मुस्कराहट-सी है। आस-पास फुरसत में बैठे लोगों के जमघट हैं।
कस्बे में लगने वाले हाट के नियमित खरीदारों के चेहरों में कुछ अजनबी-से चेहरे हैं। ये नए-नए लोग छिटपुट खरीदारी कर रहे हैं। कस्बे के आस-पास छोटे-छोटे गांवों से आए ग्रामीण विस्फारित से नेत्रों से इन नए लोगों को कौतूहल से देख रहे हैं।
कस्बा जगह-जगह तोरणद्वारों व रंग-बिरंगी झंडियों से सजा हुआ है। मंदिर से घंटों की आवाजें आ रही हैं। कहीं-कहीं लोग 'आचार्य विद्यासागर' के जयघोष कर रहे हैं। अचानक एक शोर-सा मचता है। जयघोष रुक जाते हैं। लोग एक-दूसरे से सवाल पूछ रहे हैं कि क्या यह सही खबर है। मैं तो थोड़ी देर पहले ही वहीं था, तब तो चर्चा तक नहीं थी। और इन्हीं तमाम सवालों की उधेड़बुन में लगे श्रद्धालुओं का रेला जैन मंदिर की ओर बढ़ने लगता है।
तमाम घटनाक्रम बदला है जैन मुनि आचार्य विद्यासागरजी महाराज के अचानक ससंघ रहली से विहार करने की खबर से। एक 'वीतरागी अनियत विहारी' के यूं ही सब कुछ एकाएक छोड़ अगले पड़ाव पर चल देने से। रहली, वह जगह जहां आचार्यश्री पिछले कुछ समय से अपने संघ के मुनियों के साथ विराजे हुए थे और न केवल आस-पास के लोग बल्कि भारत और विदेशों से उनके भक्त उनके दर्शन के लिए यहां पहुंच रहे थे।
इस घोर तपस्वी व दार्शनिक संत की चर्या और विद्वता के प्रभामंडल से प्रभावित, उनकी जीवनचर्या और सद्वचनों से प्रेरित हो कितने ही लोग अपने जीवन की धारा को एक नया सकारात्मक अर्थ दे रहे हैं व जनकल्याण से जुड़ रहे हैं।
घोर तपस्वी, दार्शनिक संत की चर्या और विद्वता के प्रभामंडल से प्रभावित भारी तादाद में श्रद्धालु, आचार्यश्री जहां भी हो, वहां पहुंच ही जाते हैं। चाहे वह ऐसा स्थान ही क्यों हो, जहां आवाजाही बेहतर कठिन हो। घटनाक्रम फ्लैशबैक में चलने लगता है।
आज दोपहर तक सब कुछ सामान्य गति से चल रहा था। दिल्ली से मैं भी अपने परिवारजनों के साथ सुबह ही उनके दर्शन को पहुंची थी। सुबह के दर्शन के बाद जब उनसे कुछ समय धर्म चर्चा के लिए दिए जाने का आग्रह किया तो मुस्कराते हुए वे बोले- 'देखो'। तब एक पल भी नहीं लगा कि 'वीतरागी' ने अगले पड़ाव पर जाने की तैयारी कर ली है, लेकिन किसी को कुछ खबर नहीं।
कुछ देर बाद जब मैं अपनी बहन साधना, इस संक्षिप्त प्रवास में सागर शहर के साथी संजय भय्या, प्रियांश और धर्म-बंधु राकेश भय्या के साथ आचार्यश्री के सद्वचनों का लाभ लेने पहुंची तो पाया कि उत्साही श्रद्धालु आचार्यश्री के दोपहर के प्रवचन के लिए जुड़ने लगे थे।
आचार्यश्री के दर्शन और उनकी एक झलक पाने को उत्सुक व उत्साह से चमकते श्रद्धालुओं की भीड़ जमा थी। तभी अचानक वहां हलचल तेज होने लगती है। कुछ व्यवस्थापक और संघ के मुनिजन तेजी से इधर-उधर जाते हुए दिखाई देते हैं। हम आचार्यश्री के दर्शन के बाद खड़े-खड़े पूरे मंजर को देख रहे थे। कुछ समझ नहीं आ रहा था आखिर हो क्या रहा है?
साध्वियों का एक ग्रुप आचार्यश्री से चर्चा कर रहा है। तभी पास से मुनि संघ के वरिष्ठ आचार्य योगसागर आते हैं। संक्षिप्त चर्चा पर वे कहते हैं- 'अब तो चर्चा विहार की है' और यह वाक्य संकेत दे गया कि आचार्यश्री ने यहां से जाने का या यूं कहे 'विहार' करने का मन बना लिया है। पास खड़े संजय भय्या कहते हैं कि आचार्यश्री कब उठकर चल दें, केवल वे ही यह जानते हैं।
साधना पूरा मंजर देखकर अभिभूत है। कहती है कि सब कुछ चमत्कारिक-सा है। जाने की बात अब सार्वजनिक हो गई है। कुछ समय पूर्व दमकते चेहरों पर चेहरों पर उदासी-सी फैलने लगी है, खासतौर पर स्थानीय लोगों के चेहरे पर उदासी गहरी होती जा रही है।
वहीं कपड़े की दुकान के एक मालिक धीमी-सी आवाज में फुसफुसाते-से कहते हैं कि सुना था कि आचार्यश्री कुछ दिन श्रद्धालुओं को सद्संगत का अमूल्य उपहार देकर अचानक छोड़कर चल देते हैं, लेकिन हमने सोचा नहीं था कि हमारे साथ इतनी जल्दी ऐसा ही होगा। शायद इसीलिए इन्हें 'अनियत विहारी' कहते हैं।
पल छिन में सब कुछ छोड़कर अगले पड़ाव के लिए यह वीतरागी चल देता है और इनके पीछे चल देते हैं संघ के मुनिजन, जो इंजीनियरिंग तथा उच्च शिक्षा प्राप्त हैं लेकिन शिक्षा पूरी करने के बाद भौतिक दुनिया को अपनाने की बजाय आत्मकल्याण से जनकल्याण की यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
एक व्यवस्थापक बता रहे हैं कि आचार्यश्री के निकटवर्ती तारादेही स्थान पर पहुंचने की संभावना है, जहां 14 से 21 जनवरी तक आचार्यश्री के सान्निध्य में पंचकल्याणक अनुष्ठान होने जा रहे हैं।
तपस्वी संत अगले पड़ाव पर जा रहे हैं। उनके संघ के 40 मुनिजन एक के बाद एक उनके पीछे चल रहे हैं। विदा देने के लिए साथ चल रहे हैं उदास चेहरों से इस कस्बे के निवासी। लगभग 16 किलोमीटर चलकर वे अगले पड़ाव तक पहुंचेंगे।
दिसंबर के जाड़े में दिगंबर अवस्था में रहने वाले मुनिजन, जो हिमालय से कन्याकुमारी तक की हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं, के नंगे पैरों से उड़ती धूल, प्रवचन स्थल से उतरते शामियाने, उठाई जा रहीं दरियां, श्रद्धालुओं की उदास आंखें, अचानक मेले से सूनेपन में पसरता कस्बा और इन सबसे बेखबर चले जा रहे वीतरागी और उनका संघ...! (वीएनआई)