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(द्वितीया तिथि)
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आचार्य महाप्रज्ञ के सद्विचार

महाप्रज्ञजी की इंदौर यात्रा

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महाप्रज्ञजी मार्च 2004 में अहिंसा यात्रा के दौरान इंदौर में थे। उन्होंने कई आयोजनों के माध्यम से सद्विचार रखे थे।

- यदि अपराध व हिंसा को कम करना है तो समाज को भी संयम की जीवनशैली अपनाना होगी। यदि समाज के मुखिया ही नैतिक जीवन जिएँ तो हमारा चिंतन बदल सकता है तथा अपराध व हिंसा की समस्या भी कम हो जाएगी।

- धार्मिकता के लिए आत्मा का बोध होना जरूरी है। जिस व्यक्ति को आत्मा, कर्म और पुनर्जन्म का ज्ञान न हो व धार्मिक नहीं हो सकता

- मानव जाति में हिंसा का मुख्य कारण है हीनता व अहं की वृत्ति। मनुष्य यदि इन दो वृत्तियों से मुक्ति पा ले तो समाज से हिंसा, चोरी, अपराध आदि स्वाभाविक रूप से कम हो जाएँगे।

- लोग समस्या का रोना रोते हैं। समस्या हर युग में रही है। अगर समस्या न हो तो आदमी चौबीस घंटे कैसे बिताएगा? समस्या है तभी आदमी चिंतन करता है, समाधान खोजता है, सुलझाने के प्रयत्न करता है और दिन-रात अच्छे से बिता देता है। यदि समस्या न हो तो व्यक्ति निकम्मा बन जाए

- लोग केवल संग्रह करना जानते हैं। संयम की बात नहीं जानते। आज केवल आर्थिक व भौतिक विकास की बात पर बल दिया जा रहा है, नियंत्रण व संयम की बात पर नहीं। यही समस्या का सबसे बड़ा कारण है। आजकल प्रयोजन व उद्देश्य की पूर्ति के बिना कोई कार्य नहीं होता ।

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- शब्द से अधिक मौन की महत्ता है। जो शब्द ने कहा वह कह गया पर जो मौन ने कहा वह रह गया। साहित्य में कल्पना, सरसता और चुभन का महत्व है किंतु आज के साहित्य में चुभन कम हो गई है। विद्वान, पंडित, वनिता और लता को हमेशा सहारे की जरूरत होती है किंतु इन दिनों साहित्यकारों को समाज का सहयोग कम मिल रहा है। मेरा मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, अज्ञेय, बच्चन जैसे साहित्यकारों से नेकट्य रहा है। मेरी शुरुआत भी साहित्य से हुई विशेषकर कविता से। साहित्यकार, योगी और वैज्ञानिक को एकाग्रता की आवश्यकता होती है।

- जब तक किसी राष्ट्र का नैतिक स्तर उन्नात नहीं होता, तब तक जो भी प्रयत्न हो रहा है, वह फलदायी नहीं बनेगा। जरूरी है समाज में नैतिक स्तर ऊँचा हो।

- केवल दो शब्दों में संपूर्ण दुनिया की समस्या और समाधान छिपे हुए हैं, एक है पदार्थ जगत और दूसरा है चेतना जगत। पदार्थ भोग का और चेतना त्याग का जगत है। हमारे सामने केवल पदार्थ जगत है और इसकी प्रकृति है समस्या पैदा करना। इस जगत में प्रारंभ में अच्छा लगता है और बाद में यह नीरस लगने लगता है। दूसरा है चेतना जगत जो प्रारंभ में कठिन लगता है लेकिन जैसे-जैसे व्यक्ति उस दिशा में जाता है उसे असीम आनंद प्राप्त होने लगता है।

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